रास्ता बंद होने से मंडी नहीं ले जा पा रहे उपज, खेत पर जाने 2 किमी का लगाना होगा चक्कर
टोरिया गांव में दलित बस्ती के रास्ते का विवाद जितना समझा जा रहा है, वह उससे कहीं ज्यादा गंभीर है। इस बस्ती में जाने पर पता चला कि यह विवाद नया नहीं है। 40 साल पहले तो इसे लेकर खूनी संघर्ष की नौबत आ गई थी। जिस कथित निजी जमीन से होकर यह रास्ता जाता है, वहां से गुजर रहे एक दलित पर धारदार हथियार से हमला हुआ था।
गांव के लोग बताते हैं कि इस हमले में उसका हाथ कट गया था। तनाव की स्थिति को देखते हुए प्रशासन ने निजी जमीन के मालिकों को रास्ता देने के लिए तैयार करवाया। करीब 4 दशक तक इस रास्ते से आवाजाही चलती रही। अब फिर से विवाद खड़ा होने लगा है।
दलित बस्ती में रहने वाले कई किसानों के खेत गुना-अशोकनगर स्टेट हाईवे के दूसरी ओर हैं। वहां तक पहुंचने के लिए जो सीधा रास्ता था, वह बंद हो गया है। अब किसानों को गांव के भीतर संकरी गलियों से होकर खेत तक पहुंचना पड़ेगा। इसके लिए उन्हें दो किमी का चक्कर लगाना होगा। पैदल आवाजाही तो हो जाएगी लेकिन वे ट्रैक्टर कैसे ले जाएंगे। गांव में दो परिवार ऐसे हैं, जिनके पास अपने ट्रैक्टर हैं। अब उन्हें निकालने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा है।
बेटी की शादी की चिंता
गांव में रहने वाले महेंद्र अहिरवार की चिंता यह है कि वे अपनी बेटी की शादी कैसे करेंगे। वे सोच रहे हैं कि रास्ते का विवाद खत्म होने तक वे शादी को टाल दें। उन्होंने बताया कि एक हफ्ते पहले गांव के एक परिवार में बुजुर्ग की मौत हो गई थी। तब तेहरवीं के कार्यक्रम के लिए बड़ी मुश्किल से रास्ते का अस्थाई इंतजाम हुआ था। अशोकनगर रोड से बस्ती के बीच पड़ने वाले शर्मा परिवार के एक खेत से सिर्फ दो दिन के लिए रास्ता दिया गया। इसी परिवार के एक अन्य सदस्य के खेत से ही वह रास्ता गुजरता है, जिसे लेकर विवाद चल रहा है।
कल हमारी टीम टोरिया गांव जाएगी
कल हमारी टीम टोरिया गांव जाएगी। फिलहाल वहां पुराने रास्ते को ही बहाल किया जाएगा। इसके बाद हम दोनों पक्षों की सुनवाई करेंगे। इससे स्थाई हल निकलने की उम्मीद है।
कल्पना कुशवाह, तहसीलदार गुना (ग्रामीण)
किसानों ने घरों और मंदिरों में रखी है अपनी फसल
गांव के किसानों ने रबी सीजन में जो फसल बोई थी, उसका एक बड़ा हिस्सा वे मंडी नहीं ले जा पा रहे हैं। गांव में रहने वाले वकील रामदयाल खरे ने बताया कि उनके यहां मसूर और धनिया की फसल रखी हुई है। इसे ले जाने के लिए ट्रैक्टर ट्रॉली की जरूरत होगी, लेकिन रास्ता न होने से वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं। बेमौसम बारिश से उनकी उपज के बर्बाद होने का खतरा अलग पैदा हो गया।
क्या है विकल्प
वकील श्री खरे बताते हैं कि राजस्व विभाग के अधिकारी 50 साल पूराने रास्ते को बहाल करने की जगह हमारे घरों को तोड़ने की बात करते हैं। हालांकि हमें कहा गया है कि रास्ते के लिए हम दोबारा अपील करें। लेकिन सवाल यह है कि अगर मौके पर निजी जमीन है तो उसमें से रास्ता कैसे दिया जाएगा। वहीं जानकारों का कहना है कि लोगों की आवाजाही का रास्ता किसी भी हालत नहीं बंद नहीं किया जा सकता है।
सौजन्य : Dainik bhaskar
नोट : समाचार मूलरूप से bhaskar.com में प्रकाशित हुआ है ! मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित है !