अब बैकफुट पर मायावती, मुस्लिमों को जोड़ने के लिए चला बसपा का पहला ही दांव उल्टा पड़ा
बहुजन समाज पार्टी का मुस्लिमों को जोड़ने के लिए चला पहला ही दांव उल्टा पड़ गया है। बसपा की अतीक की पत्नी को प्रत्याशी बनाकर मुस्लिमों के साथ खड़े होने की कोशिश की थी। पहले मायावती ने कहा था, अतीक की पत्नी तो अपराधी नहीं है। अब मायावती को बैकफुट पर आना पड़ा। अब पूरे परिवार को ही टिकट देने से इंकार किया है।
मुस्लिमों को जोड़ने की मंशा के साथ दूसरों को पटखनी देने के लिए चला बसपा का सियासी दांव शुरू में ही उल्टा पड़ गया। माफिया अतीक की पत्नी शाइस्ता को प्रयागराज से महापौर पद का उम्मीदवार घोषित कर बसपा ने मुस्लिमों को अपने साथ खड़ा करने की कोशिश तो की, लेकिन उमेशपाल हत्याकांड में शाइस्ता का नाम आने और उसके फरार होने के बाद बसपा को निर्णय बदलना पड़ा।
न केवल शाइस्ता बल्कि अतीक के परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट न देने का फैसला लेना पड़ा। हालांकि बसपा यह संदेश देने की पूरी कोशिश करेगी कि वह तो शाइस्ता के साथ थी, पर कानूनी अड़चन के कारण पीछे हटना मजबूरी बन गया।
बसपा प्रमुख मायावती ने शाइस्ता को प्रयागराज से महापौर का टिकट दिया था। गत दिनों जब उनसे पूछा गया था कि उन्होंने माफिया अतीक की पत्नी को टिकट दिया है, तो मायावती ने जवाब दिया था कि अतीक की पत्नी तो अपराधी नहीं है। यानी मायावती यह संदेश देना चाहती थीं, कि वास्तव में वह मुस्लिमों के साथ हैं।
उमेशपाल हत्याकांड में भी अतीक और उसकी पत्नी शाइस्ता का नाम आने के बावजूद बसपा ने तत्काल शाइस्ता का टिकट नहीं काटा। जब वह फरार हो गईं और उस पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया गया तब बसपा को बैकफुट पर आना पड़ा। मायावती ने सोमवार को घोषणा की कि न केवल अतीक की पत्नी बल्कि उसके परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट नहीं दिया जाएगा।
अभी पार्टी से नहीं किया निष्कासित
बावजूद इसके मायावती ने अतीक की पत्नी को पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया है। यह दांव भी सोच समझकर चला गया है। कहा गया है जब वह पुलिस गिरफ्त में आ जाएगी और केस को लेकर जो भी तथ्य उभरकर सामने आएंगे तब उसका फैसला किया जाएगा। यानी मायावती अभी यह संदेश देना चाहती हैं कि बसपा ने कानूनी अड़चन के कारण टिकट काटा है।
वैसे बसपा अभी भी उसके साथ है। यहां तक कि मायावती के भतीजे आकाश आनंद की शादी का न्यौता शाइस्ता को भेजने की चर्चा खूब रही। हालांकि बसपा के प्रयागराज जिलाध्यक्ष ने इससे इंकार कर दिया था।
दलित मुस्लिम समीकरण बनाने की है मशक्कत
दरअसल मायावती किसी भी सूरत में इस बार दलित मुस्लिम समीकरण बनाने की कोशिश कर रही हैं। इसके लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। बसपा कुछ पुराने मुस्लिम दिग्गजों पर भी दांव लगाने की तैयारी कर रही है। हालांकि पार्टी युवाओं पर फोकस कर रही है पर इस समीकरण को साधने के लिए पुराने रणनीतिकारों का भी सहारा लिया जा रहा है।
बसपाई टीम खास तौर से मुस्लिमों को यह समझा रही है कि सपा के साथ जाने से उनका कोई फायदा नहीं है। भाजपा की राह केवल बसपा रोक सकती है। दलित उनके पास हैं ही। यदि मुस्लिम आ गए तो बात बन जाएगी।
सौजन्य : Amar ujala
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