सेक्स वर्कर अलीशा कैसे बनीं ट्रांसजेंडरों की हेल्थ वर्कर
रात के अंधेरे में सज संवर कर सड़क पर खड़ी, गाड़ियों को ताकती अलीशा, इस इंतज़ार में कि कोई गाड़ी रुके और उन्हें आवाज़ दे|अलीशा एक सेक्स वर्कर हैं. वो रात को अक्सर गुरुग्राम की इसी सड़क पर मिलती हैं|एक रिपोर्टर की हैसियत से जब मैं अलीशा से थोड़ी दूर उसी सड़क पर खड़ी थी तो मन में एक डर था. वही डर जो शायद किसी भी लड़की को रात में ऐसी जगह खड़े होने पर होगा|
पर क्या अलीशा हम सबसे अलग हैं? बेख़ौफ़ दिख रही अलीशा के मन में क्या कोई डर नहीं है?
रात के अंधेरे के बाद सुबह के उजाले में जब अलीशा से ये सवाल पूछा तो वो बोलीं, “डर तो होता है. जब हम रात को किसी के साथ जाते हैं तो पता नहीं होता कि वापस ज़िंदा लौटेंगे या नहीं.”
सेक्स वर्कर अलीशा की ज़िंदगी की उलझी गुत्थी का ये एक पहलू है. वो इसके लिए शर्मिंदा नहीं, पर ये उनकी पहली पसंद भी नहीं.
कई सालों से हरियाणा के गुरुग्राम में रह रही अलीशा एक ट्रांसजेंडर हैं. वो आशू से अलीशा बनीं ताकि खुल कर अपनी पहचान के साथ रह सकें. लेकिन वो आज़ादी सेक्स-वर्क की क़ीमत पर आई| पटना की रहनेवाली अलीशा को बहुत छोटी उम्र में अपना घर छोड़ना पड़ा था. अकेले रहकर अपनी रोज़ी-रोटी कमाने का यही ज़रिया बना|
‘तू ना लड़कों में आता है, ना लड़कियों में’
घर छोड़ना बहुत दर्दभरा था. अलीशा को आज भी याद है, “वो मम्मी की साड़ी पहनना, लिपस्टिक लगाना, नेल पॉलिश लगाना, चूड़ियां पहनना, लड़कियों के साथ खेलना… और मम्मी का वो सब नापसंद करना.”
मम्मी की नज़र में बेटा पैदा हुआ था. उसका नाम आशु रखा गया और हमेशा उससे लड़कों जैसे बर्ताव की उम्मीद की गई.
लेकिन अलीशा कहती हैं कि उनके अंदर शुरू से ही लड़कियों वाली भावनाएं थी. इसका आभास उनकी मम्मी को शायद हो भी गया था लेकिन, “वो नहीं चाहती थीं कि किसी और को पता चले और मुझे भी हमेशा यही कहती थीं कि आशु तुम लड़कों की तरह रहा करो.”
एक घुटन-सी थी, और फिर एक हादसा हुआ जिसने सब बर्दाश्त के बाहर कर दिया.
वो कुछ 13 साल की रही होंगी जब उनके ट्यूशन टीचर ने उनके साथ ज़बरदस्ती की. साथ ही उनके अधूरेपन का मज़ाक बनाया.
अलीशा बताती हैं, “मेरे टीचर बोले कि तुझे पता है तू क्या है? ना तो तू लड़कों में आता है और ना लड़कियों में, तेरे जैसे लोगों को समाज में कोई नहीं अपनाता.”
अलीशा के मुताबिक़, टीचर ने उनके लिए काफ़ी ग़लत शब्दों का इस्तेमाल किया और धमकाया कि अगर इस बारे में उन्होंने किसी को कुछ भी बताया तो उनके परिवारवाले उन्हें घर से निकाल देंगे|
एक तरफ़ यौन हिंसा का दर्द, दूसरी तरफ़ टीचर का धिक्कार. साथ ही घर-परिवार का प्यार और हमदर्दी भी नदारद| अलीशा काफ़ी दर्द में थी. एक दो बार परिवार में बहन या मां को बताने की कोशिश भी की, लेकिन खुल कर कुछ नहीं कह सकी. आख़िरकार घर छोड़ने के अलावा कोई और रास्ता समझ में नहीं आया|
आशु से अलीशा
एक लड़के के शरीर में बंद आशु अपनी नई पहचान – अलीशा – बनाना चाहती थी. लेकिन उसके लिए बहुत सारे पैसों की ज़रूरत थी|वो अपने एक दोस्त के भरोसे दिल्ली आ गईं. यहां वो अपने ‘गुरु’ से मिलीं|
ट्रांसजेंडर समुदाय में अक्सर परिवार को छोड़ अकेले रह रहे लोग, एक साथ मिल कर एक गुरु की शरण में रहते हैं|
अलीशा कहती हैं, “उनको हम अपने माता-पिता समान मानते हैं, उन्हीं की वजह से मैं यहां पर अपने पैरों पर खड़ी हूं. मैं जब दिल्ली आई तो उन्होंने ही मुझे सेक्स वर्क के काम पर लगाया था.”
जब पहली बार अलीशा को सेक्स वर्क के लिए भेजा गया तो उनको 4,000 रुपये मिले.
अलीशा कहती हैं, “मैंने उस समय पहली बार इतने पैसे देखे थे और सिर्फ़ 10 मिनट के काम के लिए मुझे इतने पैसे मिल गए, मैं बहुत ख़ुश हो गई थी!”
पर ये ज़िंदगी काफ़ी मुश्किलों भरी है. उन्हें हर समय ख़ौफ़ का सामना करना पड़ता है.
14-15 साल से ये काम कर रही अलीशा कहती हैं, ”कई बार कस्टमर हमारे साथ बदतमीज़ी करते हैं, मारपीट करते हैं, ग़लत बोलते हैं और कई बार तो हमारा पर्स भी चुरा कर ले जाते हैं.”
धीरे-धीरे इतने पैसों की बचत हो गई कि वो सर्जरी करवाकर लड़की जैसा शरीर पा लें. क़रीब तीन साल पहले एक लंबे इलाज के ज़रिए आशु पूरी तरह अलीशा बन गईं.
अब अगला पड़ाव था ज़िंदगी को और मायने देना. ट्रांसजेंडर और सेक्स वर्कर की पहचान से आगे ले जाना|
पहचान की तलाश
ऐसा नहीं कि अलीशा ने कोई और काम ढूंढने की कोशिश नहीं की थी. ये वही दौर था जब भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को पहचान और कई अधिकार मिले.साल 2014 में एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे लिंग के रूप में ट्रांसजेंडर्स को मान्यता दी थी|
कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे कि पिछड़ा वर्ग होने की वजह से इन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए|
संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 भी देश के हर नागरिक को शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक मान्यता का समान अधिकार देते हैं| फिर साल 2019 में संसद ने ट्रांसजेंडरों के इन्हीं अधिकारों को क़ानून की शक्ल देते हुए ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स क़ानून बनाया|
पर ज़मीनी हक़ीक़त अभी भी बदली नहीं है. अलीशा के लिए रोज़गार पाना नामुमकिन-सा बना हुआ है|
ये तब जब अलीशा ने छोटी उम्र में घर छोड़ने के बावजूद बहुत जद्दोजहद कर दिल्ली में स्कूल की पढ़ाई भी पूरी की| अलीशा बताती हैं, “कहीं जाओ तो सबसे पहले ट्रांसजेंडर का सर्टिफ़िकेट ही मांगा जाता है, और गार्ड देखते ही सीढ़ियों से नीचे उतार देते हैं.”
अलीशा अब अपने समुदाय में किसी लीडर से कम नहीं हैं. वो अब ट्रांसजेंडरों के स्वास्थ्य और यौन संबंधी मुद्दों पर काम करनेवाले एनजीओ के साथ काम करती हैं
अपने समुदाय में बनी लीडर
लेकिन एक जगह अलीशा को मौका मिला. जब उनकी गुरु ने एक कार्यक्रम में उन्हें ट्रांसजेंडरों के स्वास्थ्य और यौन संबंधी मुद्दों पर काम करनेवाले एक एनजीओ से मिलवाया|
अलीशा के बातचीत के लहजे और आत्मविश्वास से प्रभावित होकर उन्होंने उसे नौकरी दे दी. अब वो हेल्थ वर्कर के तौर पर अपने समुदाय में किसी लीडर से कम हैसियत नहीं रखतीं|अलीशा कहती हैं, “कहावत है कि आप जब तक समाज में ख़ुद न उठो, आपको दबाया ही जाता है.”
अब वो ट्रांसजेडरों और सेक्स वर्करों को ‘एड्स’ और कई अन्य बीमारियों के बारे में जागरूक करती हैं, उनको दवाइयां दिलवाती हैं, और अस्पताल में उनका इलाज भी करवाती हैं|
गुरुग्राम के इस एनजीओ, ‘सोसाइटी फ़ॉर सर्विस टू वॉलंटरी एजेंसीज़’, में अलीशा को परिवार जैसा अपनापन लगता है| आए दिन यहां ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग इकट्ठे होते हैं और अपनी परेशानियों के समाधान के अलावा त्योहार और ख़ुशियां भी साथ मिलकर मनाते हैं|अलीशा को गांव में ताने मिलते थे, तरह-तरह के उपनाम से बुलाया जाता था. लेकिन अब अलीशा सिर उठा कर चलती हैं|
समाज के लिए अधूरे, भगवान की नज़र में पूरे
इस सबके बावजूद अलीशा कहती हैं, “इतने सालों बाद भी जो ताने गांव में सुनने को मिलते थे, वही यहां शहर में भी मिलते हैं, जब हम रोड पर चलते हैं तो लोग हमें हिजड़ा, छक्का, जुगाड़ू… जैसे कई नामों से बुलाते हैं.”
मैं भी जब अलीशा के साथ थी, जब उसका इंटरव्यू कर रही थी तो हर वक़्त महसूस किया कि उनको देखने का लोगों का नज़रिया बिल्कुल अलग था.
शायद इसी वजह से अलीशा की अपनी नज़र में भी वो अधूरी ही हैं, “ना तो हम लड़कों की लाइन में लग सकते हैं और ना ही लड़कियों की लाइन में. भगवान ने हमें बनाया तो पर पूरा नहीं किया. हम तो क़ुदरत के बनाये हुए बस पुतले हैं.”
जीने का हौसला बनाए रखने के लिए वो ईश्वर भक्ति करती हैं, ख़ुद को कृष्ण की सखी मानती हैं|
सर उठाकर चलती हैं और भगवान के सामने झुकाती भी हैं.समाज ने जो अधूरापन उन्हें महसूस करवाया है, अलीशा कहती हैं कि ‘भगवान ने उन्हें संपूर्ण किया है.’
सौजन्य : Betul varta
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