टोरंटो के स्कूलों में खत्म होगा जातिगत भेदभाव, स्कूल बोर्ड ने पास किया ये बड़ा प्रस्ताव
बोर्ड ने ट्रस्टी यालिनी राजकुलासिंगम की ओर से पेश एक प्रस्ताव भी पास किया। 16 ट्रस्टियों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग किया, जबकि पांच ने इसके खिलाफ। ऐसा करके टोरंटो स्कूल बोर्ड देश का पहला बोर्ड बन गया है, जिसने जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए ऐसा कदम उठाया है।
टोरंटो डिस्ट्रिक्ट स्कूल बोर्ड ने ये माना है कि शहर के स्कूलों में जातिगत भेदभाव होते हैं। इसे खत्म करने के लिए बोर्ड ने बड़ा कदम उठाया है। बोर्ड ने इस समस्या को हल करने के लिए प्रांतीय मानवाधिकार निकाय की मदद लेने का फैसला लिया है। मानवाधिकार निकाय से इसके लिए रूपरेखा भी बनाने को कहा है। बोर्ड ने ट्रस्टी यालिनी राजकुलासिंगम की ओर से पेश एक प्रस्ताव भी पास किया। 16 ट्रस्टियों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग किया, जबकि पांच ने इसके खिलाफ। ऐसा करके टोरंटो स्कूल बोर्ड देश का पहला बोर्ड बन गया है, जिसने जातिगत भेदभाव खत्म करने के लिए ऐसा कदम उठाया है।
बोर्ड ने क्या कहा?
बोर्ड की ट्रस्टी यालिनी राजकुलासिंगम ने कहा, ‘यह कदम क्षेत्र के दक्षिण एशियाई डायस्पोरा, विशेष रूप से भारतीय और हिंदू समुदायों के महत्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करता है। भारत की जाति व्यवस्था कठोर सामाजिक स्तरीकरण के दुनिया के सबसे पुराने रूपों में से एक है। इस प्रस्ताव से समुदायों को सशक्त बनाया जा सकेगा और उन्हें सुरक्षित स्कूल प्रदान किया जा सकेगा, जिसके वे छात्र पात्र हैं।’
राजकुलासिंगम ने कनाडा के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत ओंटारियो के मानवाधिकार आयोग और टोरंटो के स्कूल बोर्ड के बीच साझेदारी का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ‘जाति व्यवस्था हजारों साल पहले की है और उच्च जातियों को कई विशेषाधिकार देती है लेकिन निचली जातियों का दमन करती है। दलित समुदाय हिंदू जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर है और उन्हें “अछूत” माना जाता है। 70 साल पहले भारत में जातिगत भेदभाव को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था फिर भी पूर्वाग्रह बना हुआ है। हाल के वर्षों में कई अध्ययनों के अनुसार, जिसमें निम्न जातियों के लोगों को उच्च वेतन वाली नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व मिला।’
उन्होंने आगे कहा, ‘भले ही भारत ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगा दिया है फिर भी पूरे देश में दलितों को बड़े पैमाने पर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। जहां सामाजिक उत्थान के उनके प्रयासों को कई बार हिंसक रूप से दबा दिया गया है। जाति व्यवस्था के पदानुक्रम पर बहस भारत और विदेशों में विवादास्पद है। इस मुद्दे के साथ धर्म जुड़ा हुआ है। कुछ लोग कहते हैं कि भेदभाव अब दुर्लभ है। शीर्ष भारतीय विश्वविद्यालयों में निचली जाति के छात्रों के लिए सीटें आरक्षित करने वाली भारत सरकार की नीतियों ने हाल के वर्षों में पश्चिम में कई लैंड टेक नौकरियों में मदद की है।’
सौजन्य : Amar ujala
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