अडानी केस: रिपोर्टिंग पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को झटका दिया है जो अडानी-हिंडनबर्ग मामले में मीडिया को रिपोर्टिंग पर रोक लगवाना चाहते हैं। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को अदालत का आदेश आने तक ऐसी रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले का उल्लेख करने वाले अधिवक्ता एमएल शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए कहा, ‘हम मीडिया को कोई निषेधाज्ञा जारी नहीं करने जा रहे हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने क़रीब हफ़्ते भर पहले हिंडनबर्ग रिसर्च के धोखाधड़ी के आरोपों के बाद अडानी समूह के शेयरों में आई गिरावट को लेकर जनहित याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष अदालत ने सोमवार को याचिकाकर्ताओं में से एक के सुझाव और जनहित याचिकाओं के एक बैच में फोर्ब्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लेने से इनकार कर दिया था।
यह मामला इसलिए चल रहा है कि अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने गौतम अडानी के नेतृत्व वाले समूह के खिलाफ कई आरोप लगाने वाली एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि इसकी कंपनियां शेयर की कीमतों का प्रबंधन और हेरफेर करती हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च ने उद्योगपति गौतम अडानी की कंपनियों पर स्टॉक में हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमने अपनी रिसर्च में अडानी समूह के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों सहित दर्जनों व्यक्तियों से बात की, हजारों दस्तावेजों की जांच की और इसकी जांच के लिए लगभग आधा दर्जन देशों में जाकर साइट का दौरा किया। हालाँकि, अडानी समूह ने इन आरोपों का खंडन किया है। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद से अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों की क़ीमतें धड़ाम गिरी हैं।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी के शेयरों में भारी गिरावट से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 फ़रवरी को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को तगड़ा झटका दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने तब ‘सीलबंद लिफाफे’ में विशेषज्ञों की एक समिति के केंद्र के सुझाव को खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा कि समिति में किसे सदस्य होना चाहिए, इस पर सरकार या याचिकाकर्ताओं से सुझाव नहीं लेगी बल्कि अपने हिसाब से विशेषज्ञों का चयन करेगी।
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा व जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि वह निवेशकों के हितों में पूरी पारदर्शिता बनाए रखना चाहती है।
अदालत की यह टिप्पणी इसलिए आई थी कि सुनवाई के दौरान केंद्र और सेबी की ओर से पेश भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, ‘मेरे पास निर्देश हैं कि सेबी और अन्य एजेंसियाँ पूरी तरह से तैयार हैं, न केवल संचालन के लिहाज से, बल्कि दूसरी स्थितियों को भी ध्यान रखने के लिए। हालाँकि, अदालत के सुझाव के अनुसार सरकार को एक समिति गठित करने में कोई आपत्ति नहीं है।’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि समिति के सदस्यों के नामों के संभावित सुझाव के साथ हम एक सीलबंद कवर में नाम दे सकते हैं क्योंकि खुली अदालत की सुनवाई में चर्चा करना ठीक नहीं हो सकता है।
इस मुद्दे पर वकील एम एल शर्मा और विशाल तिवारी, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और कार्यकर्ता मुकेश कुमार ने अब तक शीर्ष अदालत में चार जनहित याचिकाएं दायर की हैं।
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