कब आएगा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए अमृत काल?
1 फरवरी को पेश किए गए आम बजट में एक बार फिर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आने वाले सुनहरे कल का सपना दिखाते हुए अमृत काल का डंका पीटा। लेकिन बजट में महंगाई औऱ बेरोजगारी जैसी चुनौतियों से निपटने की कोई राह नहीं बताई गई है।
वित्त वर्ष 2023-24 का कुल बजट 49,90,842.73 करोड़ रुपए है और अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल आवंटन 1,59,126.22 करोड़ रुपए (3.1%) और अनुसूचित जनजाति के लिए कुल आवंटन 1,19,509.87 करोड़ रुपए (2.3 %) है। इनमें से दलितों को पहुंचने वाली लक्षित राशि 30,475 करोड़ रुपए है और आदिवासियों को पहुंचने वाली लक्षित राशि 24,384 करोड़ रुपए है।
बता दें कि देशभर के दलित संगठन लंबे समय से पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के लिए 10,000 करोड़ रुपए के आवंटन की मांग कर रहे हैं। हालांकि इस वर्ष का कुल आवंटन इस मांग से कम है, लेकिन योजना के आवंटन में की गई बढ़ोत्तरी स्वागत-योग्य है। इस योजना के लिए अनुसूचित जाति बजट के तहत 6,359.14 करोड़ रुपए और अनुसूचित जनजाति बजट के तहत 1,970 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
महिला और बाल विकास मंत्रायल के अंतर्गत आने वाली सक्षम आंगनवाड़ी और मिशन शक्ति योजना के लिए कुल आवंटन 20,554 करोड़ रुपए है। जिसमें से 5,038 करोड़ रुपए अनुसूचित जाति महिलाओं के लिए और 2,166 करोड़ रुपए अनुसूचित जनजाति महिलाओं के लिए आवंटित किए गए हैं। लेकिन अगर बजट देखा जाए तो इस योजना के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किए गए हैं और इसलिए यह योजना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए लक्षित योजना नहीं है।
विश्लेषण से उभरकर आता है कि इन समुदायों की खास और महत्वपूर्ण ज़रूरतों की अनदेखी करते हुए, मंज़ूर किए गए बजट के एक बड़े हिस्से को अप्रासंगिक और सामान्य योजनाओं के लिए आवंटित किया गया है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले कुल 50,000 अपराधों के मामले दर्ज किए गए। जिसमें 8,000 अपराध दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ किए गए थे।
इसके बावजूद, POA और PCR अधिनियमों के क्रियान्वयन के लिए आवंटित किए गए 500 करोड़ रुपए के बजट में दलित महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों से निपटने के लिए सिर्फ 150 करोड़ रुपए ही आवंटित किए गए हैं।
बहुत दुखद है कि ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध अधिनियम 2013’ के पारित किए जाने के एक दशक बाद भी मैला ढोने की घिनौनी प्रथा अभी भी ज़िंदा है। MSJE द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, देश भर में 58,089 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई है।
लेकिन निराशाजनक बात है कि ‘मैला उठाने वालों के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना’ को इस साल हटा दिया गया है और इसके लिए कोई आवंटन नहीं किया गया है। “अस्वच्छ और स्वास्थ्य की दृष्टि से जोखिम भरे व्यवसाय में काम करने वाले माता-पिता के बच्चों के लिए विशेष पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना” के लिए भी कोई आवंटन नहीं किया गया है।
नमस्ते नाम की एक नई योजना के लिए 97 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जिसका उद्देश्य स्वछता कार्य में मशीनीकरण को बढ़ावा देना है। विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों (PVTG) के विकास के लिए 256 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ नए मिशन का गठन एक स्वागत-योग्य कदम है।
एकलव्य आदर्श आवासीय स्कूलों पर ध्यान दिया जाना अनूसूचित जाति समुदायों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इस वित्त वर्ष में इसके आवंटन को बढ़ाकर 5,943 करोड़ रुपए किया गया है। बजट में कहीं ज़्यादा समुदाय-केंद्रित कार्यक्रमों की ज़रूरत थी लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकास की बजाय बजट का ज़ोर इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर ज़्यादा है।
ये तमाम बातें दलित आर्थिक अधिकार आन्दोलन (NCDHR) के द्वारा एचआरडीसी, रांची में किये गये प्रेस कांफ्रेस में उभरकर सामने आई हैं। प्रेस कांफ्रेंस में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि “हम सरकार से आह्वान करते हैं कि इन कमियों को दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं और आवंटित राशि को दलित और आदिवासी समुदायों के विकास के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ उपयोग किया जाए।“
“इसके तहत यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बजटीय राशि का उपयोग इन समुदायों की विशिष्ट ज़रूरतों और चुनौतियों को संबोधित करने वाली विशेष कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जाए।“
वहीं अल्पसंख्यक समुदाय के लिए मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजना को वितीय वर्ष 2023-24 के बजट में मात्र 10 करोड़ रुपए ही आवंटित किये गए हैं। जबकि 2022-23 के बजट में 160 करोड़ रुपए आवंटित किये गये थे, उस हिसाब से यह 93 प्रतिशत कम है।
अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा सशक्तिकरण के लिए बजट का कुल आवंटन जो पिछले साल 2,515 करोड़ रुपए था, उसे इस साल घटाकर 1,689 करोड़ रुपए कर दिया गया है। अल्पसंख्यकों के लिए अनुसंधान योजनाओं का बजट भी पिछले साल के बजट 41 करोड़ से घटाकर 20 करोड़ रुपए कर दिया गया है। पीएमजेवी का बजट पिछले साल 1,650 करोड़ रुपए था, जिसे इस साल घटाकर 600 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
सरकार को मुख्य सिफारिशें और सुझाव दिए गए जिसमें –
1 . कुल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बजट में से करीब 50% आवंटन वाली 46 योजनाएं सामान्य योजनाएं हैं। जिनके लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किए गए हैं। हमारी सिफारिश है कि स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करने और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
2. करीब 50,000 करोड़ रुपए अप्रासंगिक योजनाओं के लिए आवंटित किए गए हैं। इस बजटीय राशि को MSJE और MOTA को वापस लौटाया जाना चाहिए।
3. नीति आयोग के 2018 के दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी अनिवार्य मंत्रालयों द्वारा दलितों और आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में बजटीय राशि आवंटित की जानी चाहिए।
4. पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, छात्रावास और कौशल विकास कार्यक्रम जैसी सीधे तौर पर लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं के बजटीय आवंटन को बढ़ाया जाना चाहिए। राष्ट्रीय ओवरसीज योजना को लागू किया जाना चाहिए।
5. दलित महिलाओं के लिए कम से कम 50% आवंटन और विशेष संघटक योजना का गठन किया जाए।
6. मैला ढोने का काम करने वाली महिलाओं के पुनर्वास के लिए योजनाओं को फिर से शुरू किया जाना चाहिए और इस प्रथा को खत्म करने के लिए पर्याप्त आवंटन किया जाना चाहिए। स्वच्छता के मशीनीकरण के लिए नमस्ते नामक योजना को महिलाओं को भी उपलब्ध कराई जाए।
7. विकलांग व्यक्तियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सभी स्कूलों और छात्रावासों को विकलांगों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
8 .अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए SCP/TSP कानून पारित करने की तुरंत आवश्यकता है।
9. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों द्वारा अनुभव किए जा रहे विशेष जलवायु जोखिमों, और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित सिफारिशें की गईं हैं–
1.राष्ट्रीय जलवायु बजट की शुरुआत की जाए।
2. AWSC और AWST के तहत जलवायु से जुड़े कार्यक्रमों के बजट में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी के अनुपात में बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए।
3. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उनके अनुकूल बदलाव लाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा लागू किए जा रहे कार्यक्रमों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति लक्ष्यों को AWSC और AWST के तहत अनिवार्य रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उनके अनुकूल बदलाव लाने के लिए किए जा रहे बजट आवंटन को जाति, जनजाति, लिंग, उम्र और विक्लांगता-वार अनुपात के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए।
4. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उनके अनुकूल बदलाव लाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों द्वारा लागू किए जा रहे कार्यक्रमों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए कवरेज लक्ष्यों को AWSC और AWST के तहत अनिवार्य रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए।
5. जलवायु बजट और मौजूदा जेंडर बजट, बाल बजट और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण और विकास बजट के बीच समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।
6. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए भूमि आवंटन, स्थानीय और स्थायी रोज़गार और आय सृजन कार्यक्रमों में भूमिहीन, बेघर और बटाई पर खेती करने वाले परिवारों को शामिल करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
7. 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों को तेज़ी से लागू किया जाए।
8. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष की योजनाओं के तहत AWSC और AWST आवंटन को अनिवार्य बनाया जाए।
9. राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण कोष के तहत AWSC और AWST आवंटन को अनिवार्य बनाया जाए।
10. आपदा प्रबंधन से संबंधित मौजूदा और नई केंद्रीय क्षेत्र की और केंद्र प्रायोजित योजनाओं और लक्ष्यों के लिए श्रेणी-वार आंकड़े इकट्ठे किए जाने चाहिए।
11. सीधे तौर पर नकद सहायता उपलब्ध कराने वाली सभी योजनाओं के तहत सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह सहायता जल्द से जल्द और बिना किसी भ्रष्टाचार के लाभार्थियों तक पहुंचे।
12. दलित महिलाओं, पुरुषों, बच्चों, विकलांग व्यक्तियों और ट्रांस व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम के लिए POA कानून के कार्यान्वयन के लिए आवंटन को बढ़ाया जाना चाहिए। आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए, और जाति और जातीयता-आधारित अत्याचारों के पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाया जाना चाहिए।
सौजन्य :janchowk
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