राजस्थान के दलित युवक के हौसले की कहानी,12वीं में कम मार्क्स, तीन बार सरकारी नौकरी से चूके, फिर किया टॉप
जीवन में असफलता के बिना कभी सफलता नहीं मिलती. लेकिन कई बार लगातार असफल होने से आत्मविश्वास टूटने लगता है. लेकिन इससे पर पाने वाले ही सफल हो पाते हैं. कुछ इसी तरह बाड़मेर के दलित परिवार में जन्में कानाराम ने कर दिखाया है. कानाराम जीवन में कई बार गिरे, फिर संभाले और आज जीवन की उचांईयों पर है. 10 वीं 12 वीं में कम नंबर आए तो लोगों ने ताने मारे, लेकिन कानाराम का आत्मविश्वास कभी डगमगाया नहीं. सरकारी नौकरी भी कई बार हाथ आते आते रह गई, जिसके बाद ना सिर्फ कानाराम ने संस्कृत लेक्चरर परीक्षा में पास की बल्कि अपनी केटेगरी में टॉप भी किया.
बाड़मेर के छोटे से गांव कापराउ में कानाराम मेघवाल का जन्म किसान के घर हुआ. बचपन से ही गरीबी देखी और उसी में पले बढ़े भी, मेघवाल को 12वीं की बोर्ड परीक्षा में महज 48 फीसदी अंक ही प्राप्त हुए. लोगों ने ताना मारा यहां तक कि उन्होंने सामजिक आयोजनों और कार्यक्रमों में जाना तक बंद कर दिया, लेकिन वो कभी निराश नहीं हुए. वजह थी जब कुछ बन जाऊंगा, तब सभी के सामने आऊंगा.
कानाराम ने स्नातक राजकीय महाविद्यालय बाड़मेर से और स्नातकोत्तर संस्कृत स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में 2006 में किया है. जबकि बीएड 2007 में की पास की थी. इसी साल उनका थर्ड ग्रेड शिक्षक में चयन हुआ, लेकिन बीएड डिग्री न होने से उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई. साल 2009 से 2010 तक एक बार फिर तृतीय श्रेणी संस्कृत विभाग में कानाराम का चयन हुआ. साल 2010 में वरिष्ठ अध्यापक संस्कृत विभाग आरपीएससी टॉपर भी बने, लेकिन शास्त्री डिग्री नहीं होने से यह वरिष्ठता भी उन्हें नहीं मिल पाई. साल 2016 में संस्कृत व्याख्याता पद पर प्रमोशन हुआ. साल 2017 में आरपीएससी स्कूल व्याख्याता पद सीधी भर्ती से चयन बांसवाड़ा के लिए हुआ, लेकिन पहले से व्याख्याता पद पर कार्यरत होने के कारण उन्होंने बांसवाड़ा में कार्यभार नहीं संभाला.
इसके बाद भी कानाराम ने कभी कोशिशें नहीं छोड़ी. 22 सितम्बर 2021 को कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर की परीक्षा दी, जिसका इंटरव्यू 10 अक्टूबर 2022 को हुआ. इसका परिणाम आया तो उन्होंने फिर साबित किया कि वो फेलियर नहीं है. उन्होंने एससी वर्ग में प्रदेशभर में टॉप किया.
सौजन्य : Zee news
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