विश्व कप जीता लेकिन धूमधाम नहीं- झारखंड के नेत्रहीन क्रिकेटर बच्चों के लिए बेहतर स्कूल चाहते हैं
झारखंड के जसप्रीत बुमराह कहे जाने वाले सुजीत मुंडा ने कहा, ‘वर्ल्ड कप जीतने के बाद भी मेरा जीवन नहीं बदला. पता नहीं अब और किस चीज से बदल सकता है.’
26 साल के सुजीत मुंडा झारखंड से हैं. भारत के लिए टी20 क्रिकेट वर्ल्डकप खेलना उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धी रही है. वर्ल्डकप जीतकर लाने के बाद उन्होंने नई दिल्ली में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात की. सुजीत जब इनसे मिले तो उन्होंने बड़े ही गर्व के साथ नीले रंग की यूनिफॉर्म पहनी थी. उन्होंने वर्ल्डकप जीतकर लाने के बाद कई हेडलाइन्स तो बनााई लेकिन उनका असल जीवन बिल्कुल नहीं बदला|
सुजीत मुंडा आज भी झारखंड के रांची में एक कच्ची कॉलोनी में एक घर की झोपड़ी में रहते हैं. जीतकर आने के बाद उनका कोई भव्य स्वागत नहीं हुआ. किसी ऑफिशियल ने उनसे मुलाकात नहीं की. कोई नेता भी उनसे मिलने नहीं आया. यह वो समय था जब सुजीत को अहसास हुआ था कि वह एक भारतीय क्रिकेटर नहीं बल्कि ब्लाइंड भारतीय क्रिकेटर हैं और दोनों में बहुत बड़ा फर्क है. भारतीय ब्लाइंट क्रिकेट टीम ने फाइनल में बांग्लादेश को 120 रनों से हराया|
सुजीत मुंडा कहते हैं, “वर्ल्डकप जीतने के बाद भी मेरा जीवन नहीं बदला. पता नहीं अब और किस चीज से बदल सकता है ”
सुजीत मुंडा के इलाके लोग उन्हें झआरखंड का जसमीत बुमराह कहते हैं. क्योंकि वो भी 140 किमी की स्पीड से गेंद फेंकते हैं.
दिसंबर में बेंगलुरु में टी20 विश्व कप के लिए जाने से पहले, मुंडा ने रांची में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य के खेल मंत्री हफीजुल हसन से मुलाकात की और तीन अनुरोध किए – अपने दो बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा, रहने के लिए जगह और खेल कोटा के तहत सरकारी नौकरी|
“मुख्यमंत्री ने मेरी सभी मांगों को पूरा करने का वादा किया था और मैंने जीतकर वापस आने का वादा किया था. वे कहते थे कि एक बार हम वर्ल्ड कप जीत गए तो सब कुछ बदल जाएगा. अब मैं विश्व कप जीत चुका हूं, लेकिन मेरी हालत में कोई बदलाव नहीं आया है.’ सुजीत मुंडा अपने सपनों और निराशा के बारे में बात करते हुए कहते हैं|
सुजीत मुंडा जैसे दिग्गज क्रिकेटर लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन उस तरह का ग्लैमर नहीं पा रहे जो भारतीय क्रिकेट टीम को मिलता है. प्रशंसक महिला क्रिकेट टीम या ब्लाइंड क्रिकेट टीम के लिए समान प्रशंसा नहीं करते हैं. प्रशंसकों के बिना, उन्हें तत्काल मान्यता, आकर्षक कॉन्ट्रक्टैस, स्पोनसर्शिप और सेलिब्रिटीडम नहीं मिलता है|
सुजीत मुंडा रांची में एक कमरे की झोपड़ी में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं. क्रिकेट में उनके योगदान का उल्लेख करते हुए एक फ़्रेम किया हुआ प्रमाण पत्र, एक टूटी हुई रसोई की दीवार पर टंगा हुआ है जो एक लोकल संस्था ने उन्हें सम्मान के रूप में दिया था. सुजीत की ‘मैन ऑफ द मैच’ ट्रॉफी जो उसने कई साल पहले एक जिला टूर्नामेंट में जीती थी, एक नीले फ्रिज पर अनिश्चित रूप से रखी है|
कुछ पत्रकारों ने सुजीत को ट्रैक किया था, लेकिन वे भी गायब हो गए. उन्हें स्थानीय स्कूलों से पहचान मिली. लेकिन सरकार की ओर से कोई सम्मान नहीं मिला. मुंडा कहते हैं, “सभी ने प्यार और सम्मान दिया. सरकार ने सिर्फ आश्वासन दिया. मैं नाराज हूं.”
वह जानते हैं कि वह अपने पिछले मैच जितने ही अच्छे है और अब वह नागेश ट्रॉफी के लिए 25 जनवरी को तमिलनाडु में होने वाले अगले मैच की तैयारी कर रहे हैं जिसमें 28 राज्य भाग लेंगे|
मुंडा भाला और शॉट पुट में भाग लेने के लिए 2011 में अमेरिका गए थे और दक्षिण अफ्रीका, दुबई और बांग्लादेश में क्रिकेट खेल चुके हैं.
लेकिन हर बार जब वह वापस लौटते हैं, तो उन्हें उसी झोपड़ी में वापस आना पड़ता है और जहां गर्मियों में बहुत गर्मी और सर्दियों में बहुत ठंड लगती है.
“मैं हमेशा देश के लिए कुछ करना चाहता था और मैंने किया. मैं देश के लिए खेलना जारी रखूंगा. इससे मेरा मनोबल नहीं टूटा है, ” सुजीत मुंडा कहते हैं, जिन्होंने रांची में ब्लाइंड स्कूल में 12 वीं कक्षा तक पढ़ाई की और 2014 में झारखंड क्रिकेट टीम में शामिल हुए. उन्होंने 2018 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपना पहला क्रिकेट मैच खेला|
लेकिन क्रिकेट उनके खर्चे पूरा नहीं कर पाता. मुंडा ब्लाइंड पेंशन (1,000 रुपये प्रति माह) जैसी सरकारी सहायता पर निर्भर हैं और अपने भाइयों से उधार लेते हैं जो अपने परिवार का समर्थन करने के लिए मजदूरी का काम करते हैं|
खेलना और कीमत चुकाना
जब वह टी20 विश्व कप के लिए रांची से रवाना हुए तो उम्मीद से भरे हुए थे. उनके पूरे मोहल्ले ने उन्हें एयरपोर्ट पर विदा किया. यह एक उत्सव जैसा था, लेकिन मुंडा के लिए यह अपने जीवन को बदलने का अवसर भी था.
17 दिसंबर को, जब उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ फाइनल जीता, तो बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में समर्थकों ने देश का झंडा हवा में फहराया. मुंडा अपने जीवन के अगले अध्याय के लिए तैयार थे|
अन्य खिलाड़ियों के भी ऐसे ही सपने थे, जो अब धूल फांक रहे हैं. “हमने खिलाड़ियों और कोचों को 10 लाख रुपये देने के लिए कर्नाटक सरकार को लिखित एप्लिकेशन दी. पर कुछ नहीं हुआ. सभी ने तस्वीरें क्लिक कीं, अच्छी बातें कीं और चले गए, ”आसिफ पाशा, जो भारतीय दृष्टिहीन क्रिकेट टीम के कोच हैं, टेलीफोन पर बातचीत में कहते हैं.
जब वह अपनी टीम की तुलना रोहित शर्मा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय क्रिकेट टीम से करते हैं तो उनकी आवाज में कड़वाहट आ जाती है. उन्होंने कहा, ‘अगर उन्होंने विश्व कप जीता होता तो पूरा देश उनके इर्द-गिर्द नाच रहा होता. लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं, ”वह कहते हैं|
क्रिकेट एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड इन इंडिया (CABI) के सदस्य भी इसी तरह के भाव रखते हैं.
नाम न छापने की शर्त पर कैबी के एक सदस्य कहते हैं, ‘खिलाड़ियों ने इसके लिए काफी मेहनत की है और सरकार को उनके लिए कुछ करना चाहिए. सुजीत मुंडा जैसे लोग बेहद गरीब बैकग्राउंड से आते हैं और ईमानदारी से खेलते हैं. उन्हें सम्मान के तौर पर कम से कम 2 लाख रुपये दिए जाने चाहिए.’
CABI को डिफरेंटली-एबल्ड क्रिकेट काउंसिल ऑफ इंडिया (DCCI) द्वारा चलाया जाता है.
समस्या झारखंड तक ही सीमित नहीं है. मुंडा की टीम के अन्य खिलाड़ी भी इसी तरह के अनुभव कर रहे हैं|
हरियाणा से लेकर कर्नाटक तक दृष्टिबाधित खिलाड़ी विजेता बनकर स्वदेश लौटे लेकिन उनकी प्रतिभा और उपलब्धि को सरकार पहचानने का इंतजार कर रही है.
“कोई नेता या अधिकारी मुझसे मिलने नहीं आया. मुझे सरकार से कोई इनाम नहीं मिला, ”हरियाणा के एक नेत्रहीन क्रिकेटर दीपक मलिक ने कहते हैं.
2018 में, उत्कृष्ट खिलाड़ियों की भर्ती की हरियाणा की नीति के माध्यम से मलिक को सरकारी नौकरी मिली. आज, वह 30,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से क्रिकेट कोच के रूप में काम करते हैं.
मलिक के विपरीत, बेंगलुरु के प्रकाश जयरमैया एक निजी स्वास्थ्य क्लिनिक में एकाउंटेंट के रूप में काम करते हैं. “मैं महीने में 11,000 रुपये कमाता हूं. वर्ल्ड कप के लिए मैंने 20 दिन की छुट्टी ली थी. उन्होंने मेरा वेतन काट दिया और मुझे उस महीने केवल 3,000 रुपये मिले,” जयरामैया कहते हैं.
“बीसीसीआई हमें कोई वित्तीय सहायता नहीं देता है. वे हमें स्टेडियम, मैदान, प्रदान करते हैं लेकिन कोई वित्तीय सहायता नहीं, ”कैबी उत्तर क्षेत्र के अध्यक्ष सेलेंद्र यादव कहते हैं. उन्होंने कहा कि हरियाणा और केरल जैसे कुछ राज्य अपने खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देते हैं, लेकिन ज्यादातर नेत्रहीन क्रिकेटरों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है.
“बीसीसीआई ने अभी तक CABI को मान्यता नहीं दी है, लेकिन हम अपने खिलाड़ियों को वह देने की कोशिश कर रहे हैं जो हम कर सकते हैं. प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मैच के लिए प्रत्येक खिलाड़ी को 3,000 रुपये मिलते हैं. हमें समर्थनम ट्रस्ट से भी कुछ फंड मिलता है, लेकिन बीसीसीआई या सरकार से कुछ नहीं मिलता है.” CABI प्रेसिडेंट डॉ महंतेश जीके कहते हैं|
उन्होंने अन्य देशों में अपने समकक्षों की तुलना में भारतीय दृष्टिबाधित क्रिकेट टीम के साथ किए जाने वाले व्यवहार में असमानता पर भी प्रकाश डाला. “वित्तीय सहायता या ब्रांडेड किट के मामले में पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की टीमें बेहतर स्थिति में हैं. वे अपने संबंधित राष्ट्रीय बोर्डों के अंतर्गत आते हैं, ”उन्होंने कहा. पाकिस्तान ब्लाइंड क्रिकेट टीम का संचालन पाकिस्तान ब्लाइंड क्रिकेट काउंसिल द्वारा किया जाता है, जो देश के राष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड का सदस्य है.
अन्य खिलाड़ियों ने भी इन अंतरों का अनुभव किया है. “मैंने पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला है. वे अपनी टीमों के साथ बेहतर व्यवहार करते हैं,” मुंडा कहते हैं|
अभी भी कुछ उम्मीद बाकि है
मुंडा उम्मीद कर रहे हैं कि वह जिस खेल से प्यार करते हैं और पेशेवर रूप से खेलते हैं, वह उन्हें गरीबी के चक्र से निकालने में मदद करेगा. पिछले साल सितंबर में, सोरेन सरकार ने एक नई झारखंड खेल नीति 2022 शुरू की, जिसका उद्देश्य “खिलाड़ियों के मार्ग से बाधाओं को कम करना” था. कागज पर यह बुनियादी ढांचे में सुधार से लेकर एथलीटों के लिए एक मंच प्रदान करने और खेल से रिटायर होने पर उनके भविष्य को सुरक्षित करने तक सभी मुद्दों को यह नीति एड्रेस कर रही थी.
सोरेन ने रांची में नीति की घोषणा करते हुए कहा था, ‘मैंने झारखंड के युवाओं में खेल के प्रति रुचि, जागरूकता और झुकाव को समझने के लिए बारीकी से काम किया है.’
राज्य के खेल मंत्री हफीजुल हसन ने भी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण समेत इसी तरह के वादे किए थे. लेकिन अभी तक मुंडा को इसके फायदे देखने को नहीं मिले हैं. हसन ने दिप्रिंट को बताया कि क्रिकेट बीसीसीआई के दायरे में आता है|
“लेकिन सीएम और मैं सुजीत मुंडा को घर उपलब्ध कराने सहित उनके लिए व्यवस्था करेंगे. इस बारे में कोई नियम नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री कुछ तो करेंगे.’
मुंडा की पत्नी 26 वर्षीय अनीता तिग्गा खुद एक पूर्व क्रिकेटर हैं, लेकिन शादी और मां बनने के बाद उन्होंने एक कदम पीछे खींच लिया. वह सरकार की उदासीनता को गूढ़ मानती हैं. “मैं अभी भी इंतज़ार कर रही हूँ, शायद वे व्यस्त हैं,” एक छोटी सी खाट पर रंगीन चादरें व्यवस्थित करते वह कहती हैं.
जब सुजीत बाहर जाते हैं, तो अनीता घर और उनके दो बच्चों की देखभाल करती है- एक सात साल की बेटी जो पास के स्कूल में पढ़ती है, और एक पांच साल का बेटा. बेटी पुलिस अधिकारी बनना चाहती है और बेटा अपने माता-पिता की तरह ही क्रिकेटर बनना चाहता है|उनका बेटा कहता है, ‘मैं भी एक दिन अपने देश के लिए खेलूंगा|
सौजन्य : hindi.theprint.
नोट : यह समाचार मूलरूप से hindi.theprint.in में प्रकाशित हुआ है| मानवाधिकारों के प्रति सवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशिकिया है !