कलकत्ता हाईकोर्ट के वकीलों ने किया प्रदर्शन, जस्टिस मंथा की कोर्ट का बहिष्कार
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमें 5 साल तक इंतज़ार नहीं करतीं। तो अब लोकतंत्र का इतना फैलाव हो गया है और आपातकाल तथा अघोषित आपातकाल का इतना मुखर विरोध हो रहा है कि अदालतों में बैठने वाले माननीय “मी लार्ड” यदि खुलकर न्याय में पक्षपात करने की कोशिश करते हैं तो उसका खुलकर मुखर विरोध होने लगता है, क्योंकि अदालत की अवमानना से अब वकील डरते नहीं हैं। यह पूरा देश प्रशांत भूषण के मामले में देख चुका है। अब स्थिति इतनी गम्भीर हो चुकी है कि सुप्रीम कोर्ट को न्यायाधीशों के चयन में यह मानदंड निर्धारित करना समय की जरुरत बन गया है कि किसी भी बार सदस्य को तभी जज के लिए चुना जाएगा जो पिछले दस साल से किसी रजनीतिक दल या संगठन या उसके अनुषांगिक संगठन से जुड़ा न हो वर्ना आये दिन उसी तरह माननीय मी लार्ड का विरोध सामने आएगा, जैसा कोलकाता हाईकोर्ट में आया है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकीलों के एक गुट ने मंगलवार को जस्टिस राजशेखर मंथा के भाजपा और उसके नेताओं का पक्ष लेते हुए उनके कुछ फैसलों पर सवाल उठाया है और उनके समक्ष कार्यवाही में हिस्सा लेने से भी इनकार कर दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो उनके कोर्ट का बहिष्कार कर दिया है। इससे एक दिन पहले सोमवार को वकीलों ने न्यायमूर्ति मंथा के कोर्टरूम के बाहर उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था। जस्टिस मंथा के खिलाफ हुए प्रदर्शन का मामला हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव तक पहुंच गया है। चीफ जस्टिस ने इस घटना के फोटो और वीडियो सुरक्षित रखने का आदेश जारी किया है।
प्रदर्शनकारी वकील सुबह कोर्ट रूम नंबर 13 के बाहर जमा हो गए और न्यायमूर्ति मंथा को कार्यवाही जारी रखने से रोक दिया। प्रदर्शनकारियों ने कुछ वकीलों के साथ हाथापाई भी की जो कार्यवाही में शामिल होना चाहते थे।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकीलों के एक समूह ने सोमवार को जस्टिस राजशेखर मंथा के अदालत कक्ष के बाहर प्रदर्शन किया, जबकि अदालत परिसर और न्यायाधीश के आवास के पास पोस्टर लगाए गए थे, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनका फैसला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता शुभेंदु अधिकारी के पक्ष में आया था।
कोर्ट परिसर के पास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, अधिकारी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह की तस्वीरों वाले पोस्टर चिपकाए गए। अंग्रेजी और बांग्ला दोनों भाषाओं में लिखे पोस्टरों में जस्टिस मंथा पर आरोप लगाया गया है, ”शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ सभी आपराधिक मामलों को माफ कर दिया गया है। सभी जांचों पर रोक लगाता है और भविष्य में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का आदेश देता है।”
पोस्टर में एक लाइन टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी की भाभी मेनका गंभीर द्वारा पिछले साल सितंबर में उन्हें बैंकॉक जाने से रोकने के प्रवर्तन निदेशालय के कदम को चुनौती देने वाली याचिका को रद्द करने के जस्टिस मंथा के आदेश को संदर्भित करती है।
शुभेंदु अधिकारी का नाम 2020 के बाद से पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा दर्ज की गई 26 प्राथमिकियों में है, जब उन्होंने भाजपा में शामिल होने के लिए टीएमसी छोड़ दी थी। पिछले साल 8 दिसंबर को जस्टिस मंथा ने अधिकारी के खिलाफ सभी प्राथमिकी में पुलिस कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दिया और कहा कि अदालत की अनुमति के बिना कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती।
जस्टिस राजशेखर मंथा पर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए, कलकत्ता उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन के सदस्यों ने मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव से उन्हें मुक्त करने का अनुरोध किया। मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में, बार एसोसिएशन के सदस्यों ने लिखा है कि एक न्यायाधीश की शक्ति की स्थिति न केवल अनुशासन और क्रूर अंतर्दृष्टि की मांग करती है, बल्कि उस कुर्सी के उपांग के रूप में भी बाहरी हो जाती है जिस पर वह बैठता है, इससे अनाथ हो जाता है, जिसकी व्यवस्था न्याय प्रदान करना आवश्यक समझता है। यह बहुत खेद के साथ है कि हमें जस्टिस राजशेखर मंथा के कार्यों पर विचार-विमर्श करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए, जो शायद हाल के दिनों में अपने सामान्य मानकों से कम हो गए हैं।
गौरतलब है कि जस्टिस मंथा ने पिछले साल 8 दिसंबर को बीजेपी विधायक और विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ दर्ज 26 से अधिक एफआईआर पर रोक लगाते हुए एक आदेश पारित किया था और राज्य सरकार को कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से पहले अदालत की अनुमति लेने का निर्देश दिया था। उसके खिलाफ भविष्य में इससे पहले न्यायमूर्ति मंथा ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी की भाभी मेनका गंभीर को दी गई सुरक्षा को हटा दिया था।
प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की कि पुलिस की मनमानी या पुलिस की निष्क्रियता से संबंधित सभी मामले, जो वर्तमान में मंथा की अदालत में सूचीबद्ध हैं, को एक अलग बेंच में ले जाया जाना चाहिए।
यह पहली बार नहीं था जब वकीलों के एक वर्ग ने हाल के दिनों में “न्यायिक सक्रियता” के खिलाफ विरोध किया और किसी विशेष न्यायाधीश के अदालत कक्ष में सुनवाई का बहिष्कार करने का आह्वान किया। बमुश्किल कुछ महीने पहले जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय, जो एसएससी भर्ती घोटाले के अधिकांश मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और इस मामले में कुछ ऐतिहासिक निर्णय पारित कर चुके हैं, उच्च न्यायालय के कानूनी बिरादरी के अभ्यास के एक वर्ग के अंत में भी थे।
कलकत्ता उच्च न्यायालय में इस प्रदर्शन को लेकर मामलों की सुनवाई प्रभावित हुई है। यहां तक कि इस ममाले को शांत कराने के लिए एडवोकेट जनरल ने वकीलों से अपील की कि प्रदर्शन बंद करें। एडवोकेट जनरल ने प्रदर्शनकारियों से कहा,’यह ठीक नहीं चल रहा है। ऐसा नहीं करना चाहिए। यहां से विरोध उठाओ। मैं आपसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हूं।
तृणमूल वकीलों के एक समूह ने एजी का विरोध करते हुए कहा कि कई मामलों में समस्याएं आ रही हैं। अगर और दिक्कतें आती हैं या केस खारिज हो जाता है, तो जिम्मेदारी कौन लेगा? गौरतलब है कि वकीलों ने मंथा की बेंच से पुलिस की निष्क्रियता और अति सक्रियता के आरोपों से जुड़े मामलों को हटाने की मांग को लेकर पिछले सितंबर में विरोध प्रदर्शन किया गया था।
उधर, कलकत्ता उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने इस प्रदर्शन से पल्ला झाड़ लिया है। अध्यक्ष अरुणाभ घोष ने कहा कि इस आंदोलन से एसोसिएशन का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा है कि हमने मुख्य न्यायाधीश को भी इस स्थिति से अवग त करदिया है। वहीं, दक्षिण कोलकाता के जोधपुर पार्क इलाके में जस्टिस मंथा के आवास के बाहर भी दीवारों पर भी इसी तरह के आरोपों के साथ पोस्टर चिपकाए गए हैं। (जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)
सौजन्य :janchowk
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