बार-बार की चेतावनियों पर सरकार की उदासीनता जोशीमठ संकट की जड़: पर्यावरणविद
चिपको आंदोलन संबद्ध रहे रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि जोशीमठ में गुप्त ख़तरों की चेतावनी दो दशक पहले राज्य सरकार को दी गई थी. एक के बाद एक अध्ययन तब तक मदद नहीं करेगा, जब तक कि सरकारें सुझावों पर कार्रवाई शुरू नहीं करतीं
गोपेश्वर/नई दिल्ली: पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट ने सोमवार को कहा कि भूगर्भीय कारकों के अलावा जोशीमठ और आसपास के क्षेत्रों में संभावित खतरों के बारे में विशेषज्ञों द्वारा दी गईं चेतावनियों पर कार्रवाई करने में क्रमिक सरकारों की विफलता भूमि धंसने के संकट का एक प्रमुख कारण है.
‘चिपको आंदोलन’ से संबद्ध रहे भट्ट ने कहा कि दरकते शहर में संकट से जुड़ी स्थिति की उपग्रह तस्वीरों की मदद से वैज्ञानिक अध्ययन के लिए राज्य सरकार द्वारा एक और प्रयास किया गया है.
भट्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी (एनआरएसए) सहित देश के लगभग 12 प्रमुख वैज्ञानिक संगठनों द्वारा सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का उपयोग करके किए गए अध्ययन को 2001 में राज्य सरकार को प्रस्तुत किया गया था.
जोशीमठ सहित पूरे चार धाम और मानसरोवर यात्रा मार्गों को कवर करने वाले क्षेत्र का मानचित्रण उस समय देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, नैनीताल और चमोली के जिला प्रशासन को भी प्रस्तुत किया गया था.
भट्ट ने कहा कि इस क्षेत्र मानचित्रण रिपोर्ट में जोशीमठ के 124.54 वर्ग किमी क्षेत्र को भूस्खलन की संवेदनशीलता के अनुसार छह भागों में विभाजित किया गया था.
उन्होंने कहा कि मानचित्रित क्षेत्र के 99 प्रतिशत से अधिक हिस्से को अलग-अलग श्रेणी में भूस्खलन-संभावित क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था.
भट्ट ने बताया कि 39 प्रतिशत क्षेत्र को उच्च जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में, 28 प्रतिशत को मध्यम-जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में, 29 प्रतिशत को कम जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में और शेष क्षेत्र को सबसे कम जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में दिखाया गया था.
उन्होंने कहा कि तत्पश्चात अध्ययन को लेकर देहरादून में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक दिवसीय बैठक भी हुई, जिसमें संबंधित जिलाधिकारियों ने अध्ययन के आलोक में आवश्यक सुरक्षा उपाय करने पर सहमति व्यक्त की.
रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित भट्ट ने कहा कि हालांकि कुछ भी नहीं किया गया और चार हजार से अधिक लोगों की जान लेने वाली 2013 केदारनाथ आपदा (हिमालयी सुनामी) के मद्देनजर अध्ययन पर कार्रवाई नहीं करने के चलते राज्य सरकार को बहुत अधिक आलोचना का सामना करना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘विशेषज्ञों की चेतावनियों पर कार्रवाई करने में क्रमिक सरकारों की विफलता जोशीमठ संकट की जड़ प्रतीत होती है.’
भट्ट ने कहा, ‘एक के बाद एक अध्ययन तब तक मदद नहीं करेगा जब तक कि सरकारें सुझावों पर कार्रवाई शुरू नहीं करतीं.’
आपदाओं के प्रति क्षेत्र की संवेदनशीलता पर सलाहकार के रूप में सरकार के साथ हुईं विभिन्न चर्चाओं का हिस्सा रहे भट्ट ने कहा, ‘अध्ययन के नाम पर एक बार फिर समस्या की अनदेखी की जा रही है.’
उन्होंने कहा, ‘2001 में प्रस्तुत राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी की भूस्खलन जोखिम क्षेत्र मानचित्रण और मिश्रा समिति की 1976 की रिपोर्ट, जिसमें मैं भी शामिल था, में जोशीमठ जैसे शहरों और उनके निवासियों को बचाने के लिए अपनाए जाने वाले सुरक्षा उपायों के बारे में पर्याप्त सुझाव शामिल हैं.’
भट्ट ने कहा, ‘कार्रवाई की जरूरत है, सिर्फ एक और अध्ययन की नहीं.’
मालूम हो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ को भूस्खलन और धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है तथा दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रह रहे परिवारों को अस्थायी राहत केंद्रों में पहुंचाया गया है.
बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग गंतव्य औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ शहर आपदा के कगार पर खड़ा है|
आदिगुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ निर्माण गतिविधियों के कारण धीरे-धीरे दरक रहा है और इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं. तमाम घर धंस गए हैं.
नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीसीपी) की पनबिजली परियोजना समेत शहर में बड़े पैमाने पर चल रहीं निर्माण गतिविधियों के कारण इस शहर की इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.
लोगों का आरोप है कि नवंबर 2021 में ही जमीन धंसने को लेकर प्रशासन को आगाह किया गया था, लेकिन इसके समाधान के लिए सरकार द्वारा एक साल से अधिक समय तक कोई कदम नहीं उठाया गया.
स्थानीय लोग इमारतों की खतरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.
जोशीमठ समुद्र तल से 6,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है और भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-5’ में आता है. यानी अगर भूकंप आता है तो क्षेत्र में भारी जनहानि और संपत्ति का नुकसान होगा.
शहर का मारवाड़ी इलाका सबसे अधिक प्रभावित है, जहां कुछ दिन पहले एक जलभृत फूटा था. क्षेत्र के कई घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जबकि जलभृत से पानी का बहाव लगातार जारी है. इसके अलावा हाल के दिनों में रविग्राम, गांधीनगर, मनोहरबाग, सिंघाधर वार्ड में भूस्खलन की सर्वाधिक घटनाएं देखी गई हैं|
जोशीमठ मामला: सुप्रीम कोर्ट 16 जनवरी को याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत
इस बीच मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट जोशीमठ में जमीन धंसने से उत्पन्न संकट को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के लिए अदालत के हस्तक्षेप के अनुरोध वाली याचिका पर 16 जनवरी को सुनवाई करने पर मंगलवार को सहमत हो गया.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने हालांकि, तत्काल सुनवाई के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा दायर याचिका को सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया और कहा कि हर जरूरी चीज सीधे न्यायालय के पास नहीं आनी चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘इस पर गौर करने के लिए लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित संस्थाएं हैं. हर जरूरी चीज हमारे पास नहीं आनी चाहिए. हम इसे सुनवाई के लिए 16 जनवरी को सूचीबद्ध करेंगे.’
याचिका का उल्लेख स्वामी सरस्वती की ओर से पेश अधिवक्ता परमेश्वर नाथ मिश्रा ने किया.
याचिकाकर्ता सरस्वती ने दावा किया है कि यह घटना बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण हुई है और उन्होंने उत्तराखंड के लोगों के लिए तत्काल वित्तीय सहायता और मुआवजे की मांग की है.
याचिका में इस चुनौतीपूर्ण समय में जोशीमठ के निवासियों को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.
याचिका में कहा गया है, ‘मानव जीवन और उनके पारिस्थितिकी तंत्र की कीमत पर किसी भी विकास की जरूरत नहीं है और अगर ऐसा कुछ भी होता है, तो उसे युद्ध स्तर पर तत्काल रोकना राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व है.’
जोशीमठ की त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे सरकार: कांग्रेस
इस बीच कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि उत्तराखंड में जोशीमठ में जमीन धंसने की त्रासदी को केंद्र सरकार को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए तथा रेलवे एवं अन्य परियोजनाओं के कार्यों को उचित अध्ययन के बाद ही चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने की मंजूरी प्रदान करनी चाहिए|
पार्टी के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने यह आरोप लगाया कि जोशीमठ की त्रासदी की खबरें पहले से आ रही थीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र एवं उत्तराखंड की ‘डबल इंजन’ की सरकार बहुत देर से जागीं.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘यह अति गंभीर विषय है और मोदी सरकार केवल एक कमेटी बनाकर अपना पल्ला झाड़ नहीं सकती. हमारा देवस्थल जोशीमठ मानव निर्मित कारणों से धंस रहा है. खबरें 3 जनवरी से आ रही हैं. पर ‘डबल इंजन’ भाजपा सरकार, खासकर केंद्र की मोदी सरकार बहुत बाद में जागी है, वो भी केवल खानापूर्ति के लिए.’
खेड़ा ने यह भी कहा, ‘जोशीमठ में 610 घरों में दरारें आईं हैं, जिसमें से कुछ ही विस्थापितों को अलग शेल्टर दिया गया है और केवल 5000 रुपये का मुआवजा दिया गया है.’
कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव ने कहा, ‘स्थानीय लोग एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली संयंत्र के अंतर्गत बन रहे एक सुरंग को इसके लिए जिम्मेदार मान रहे हैं. पर एनटीपीसी ने इसको खारिज किया है और आईआईटी-रुड़की, जीएसआई आदि संस्थानों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया अभी तक व्यक्त नहीं की है. जोशीमठ के धंसने के विशेषज्ञों और पर्यावरणविद द्वारा कई कारण बताए जा रहे हैं.’
उन्होंने दावा किया, ‘अनियोजित बंदोबस्त और पानी के रिसाव के कारण कोई जल निकासी प्रणाली नहीं होने से असर क्षमता में और कमी आई है. मोदी सरकार की चारधाम रेल परियोजना, जिसकी आधारशिला तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने मई 2017 में रखी थी और उसका निर्माण कार्य शुरू हो चुका है. पहाड़ों की ढलान लगभग खड़ी कर दी गई है और वहन क्षमता के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की अवहेलना की जा रही है.’
यादव ने कहा, ‘मोदी सरकार इस त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करे. जोशीमठ शहर के विस्थापितों की मुआवजा राशि प्रधानमंत्री राहत कोष से दी जाए और प्रत्येक परिवार को राज्य सरकार 5,000 रुपये दे, पर मोदी सरकार भी उचित मुआवजा दे.’
उन्होंने यह आग्रह भी किया, ‘इस मानव निर्मित आपदा के लिए जिम्मेदार सुरंग को बंद किया जाए और जो बंद की गईं लोहारीनाग-पाला और पाला-मनेरी परियोजना की सुरंगें हैं, उनको भरने का कार्य उचित अध्यन के बाद तत्काल प्रभाव से शुरू किया जाए. रेलवे का कोई भी कार्य, जिसमें पर्वतीय आपदा का खतरा हो, उसे बंद किया जाए. उसका गहरा अध्ययन कर ही कार्यों को चरणबद्ध तरीके से मंजूरी दी जाए.’ (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
सौजन्य :thewirehindi
नोट : यह समाचार मूलरूप से thewirehindi.comमें प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संदया गया सवेनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया है !