रेलवे ने अतिक्रमण के नाम पर आदिवासियों-दलितों को किया बेघर, ठण्ड में खुले आसमान के नीचे रहने हैं मजबूर
सर्वोच्च न्यायालय ने 5 जनवरी को हल्द्वानी, उत्तराखंड में रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को बेघर करने पर रोक लगा दी, वहीं दूसरी ओर झारखंड की राजधानी रांची में रेलवे विभाग व प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर बेघर कर लोगों को ठंड के हवाले कर छोड़ दिया गया है। पिछले 28 दिसम्बर 2022 को ओवरब्रिज, रांची के नीचे बसी बस्ती (लोहरा कोचा) को रेलवे विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर जमींदोज कर दिया गया, जिसके बाद वहां बसे लगभग 40 दलित-आदिवासी-पिछड़े व मेहनतकश परिवार बेघर हो गए। इस तबाही के एक सप्ताह बाद भी अधिकांश परिवार वहीं या रोड के किनारे खुले आसमान के नीचे ठण्ड में रह रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि लोहरा कोचा में लोग 50-60 साल से बसे हैं। कई परिवारों की तीन-तीन पीढ़ियां यहीं बसी हैं। रोज़गार और काम की तलाश में आए लोग रेलवे लाइन के किनारे थोड़ी सी ज़मीन पर बस गए थे। सोचने की बात है कि यहां लगभग सभी परिवारों के पास राशन कार्ड, आधार व वोटर कार्ड है जिसपर इस बस्ती का ही पता दर्ज है। लोगों के घर में बिजली का कनेक्शन भी था। यहां बसे अधिकांश लोग दैनिक मज़दूरी पर निर्भर हैं। जिस दिन से इनके घरों को तोड़ कर इन्हें बेघर किया गया, कई लोग मज़दूरी करने भी नहीं जा सके हैं।
यह सच है कि बस्ती तोड़ने से पहले लोगों को रेलवे द्वारा कई बार नोटिस भेजा गया था। कुछ महीने पहले पक्ष-विपक्ष के कई नेता बस्ती के लोगों के साथ मीटिंग कर उन्हें आश्वासन भी दिए थे कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था के उनके घरों को तोड़ने नहीं दिया जाएगा। लेकिन बस्ती टूटने के दिन से उन सभी नेताओं का रुख बदल गया है। लगभग एक महीने पहले हटिया व बिरसा चौक के आसपास भी रेलवे द्वारा लोगों को बेघर किया गया था।
इस तोड़फोड़ के बाद झारखंड जनाधिकार महासभा के प्रतिनिधिमंडल द्वारा बस्ती जाकर के लोगों से मामले की जानकारी ली गयी। झारखंड जनाधिकार महासभा ने कहा है कि ठण्ड के समय गरीबों को बेघर करना रेलवे व प्रशासन के अमानवीय चेहरे को उजागर करता है। एक ओर राज्य के सत्ताधारी दल व विपक्ष आदिवासी-दलित-पिछड़े अस्तित्व व गरीबों के नाम की राजनीति करने में पीछे नहीं रहते और वहीं दूसरी ओर ठण्ड में बेघर हुए गरीब आदिवासी-दलित-पिछड़ों के लिए कोई सामने नहीं आया। इन परिवारों की स्थिति ने फिर से 2022 तक सभी परिवारों को पक्का मकान मिलने के प्रधानमंत्री के वादे के खोखलेपन को उजागर किया है।
मामले को लेकर झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज्य सरकार व केंद्र सरकार से मांग किया है कि रेलवे तुरंत अतिक्रमण हटाने के अभियान को रोके एवं लोहरा कोचा समेत अन्य क्षेत्रों में रेलवे द्वारा बेघर किए गए लोगों को तुरंत मूलभूत सुविधाओं के साथ वैकल्पिक ज़मीन व घर दिया जाए। साथ ही, इस हिंसा के एवज़ में उन्हें मुआवज़ा दिया जाए। सभी परिवारों को तुरंत ठण्ड से राहत के लिए कम्बल, गर्म कपड़े, टेंट आदि दिया जाए। ठंड में लोगों को बेघर करने के लिए ज़िम्मेवार पदाधिकारियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्रवाई की जाए। (झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)
सौजन्य :janchowk
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