भारत में पहली बार एसिड अटैक पीड़िता को 35 लाख के मुआवजे का आदेश, एडवोकेट स्निग्धा तिवारी की पहल पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला
एसिड पीड़िता गुलनाज के साथ एडवोकेट स्निग्धा तिवारी एडवोकेट स्निग्धा तिवारी के दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा निकली दलीलों की रोशनी में आया यह फैसला देश का ऐसा ऐतिहासिक फैसला बताया जा रहा है, जो देशभर की एसिड अटैक पीड़िताओं के मामले में एक बड़ी नजीर का काम करेगा…
देशभर में एसिड अटैक के बाद अपनी जिंदगी को एक लाश की तरह ढो रही तमाम लड़कियों की जिंदगी में एक रोशनी की उम्मीद बनकर आए एक ऐतिहासिक फैसले की शुरुआत उत्तराखंड उच्च न्यायालय से शुक्रवार 16 दिसंबर को तब हुई जब एक एसिड अटैक पीड़िता को हाई कोर्ट ने 35 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का निर्णय दिया। एडवोकेट स्निग्धा तिवारी के दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा निकली दलीलों की रोशनी में आया यह फैसला देश का ऐसा ऐतिहासिक फैसला बताया जा रहा है, जो देशभर की एसिड अटैक पीड़िताओं के मामले में एक बड़ी नजीर का काम करेगा। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद स्निग्धा तिवारी को देशभर से बधाईयों के संदेश प्राप्त हो रहे हैं।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय की ओर से शुक्रवार 16 दिसंबर को देशभर की एसिड अटैक पीड़िताओं के लिए नजीर बनने वाले आए इस फैसले की पृष्ठभूमि में उधमसिंहनगर जिले के जसपुर क्षेत्र के सरफराज नाम के एक मजदूर की बेटी गुलनाज खान थी। साल 2014 के नवम्बर की वह 29 तारीख थी जब 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली नाबालिग गुलनाज पर फरहान उर्फ आशु नाम के एक दरिंदे ने अपने एकतरफा प्रेम में असफल रहने के बाद गुलनाज को सबक सिखाने के उद्देश्य से उस पर एसिड अटैक किया था। इस एसिड अटैक में गुलनाज साथ फीसदी से भी ज्यादा जल गई थी। उसका दाहिना कान पूरी तरह चला गया था और दूसरे कान की 50 प्रतिशत सुनने की क्षमता भी चली गई थी। गुलनाज के चेहरे, छाती और हाथ सहित शरीर के ऊपरी हिस्से में ऐसे गंभीर जलन की चोटें आई थी, जिन्हें मेडिकल की भाषा में थर्ड डिग्री बर्न का दर्जा दिया जाता है।
एसिड अटैक की इस आरोपी को साल 2016 के 14 मार्च को दस साल की सजा के साथ ही बीस हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अपराधी को मिली सजा से गुलनाज के जख्म नहीं भर पाए थे। बड़ा सवाल यह था कि गुलनाज़ के साथ हुए इस जघन्य अपराध की प्रतिपूर्ति क्या राज्य सरकार के द्वारा हो सकती है, जो उनकी सुरक्षा और एक उनके इज्जत से जीने के अधिकार को बनाए रखने में अक्षम रहा? कटोचने वाले इसी सवाल के साथ गुलनाज खान साल 2019 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय की चौखट पर एक माकूल जवाब की तलाश में दस्तक देती है, जिसके कानूनी पहलुओं को समझने के साथ उसकी इस राह में उसे उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस कर रही युवा अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी का मार्गदर्शन मिलता है। मामला कोर्ट में चला तो अपनी जिम्मेदारी से बचने वाली गैरजिम्मेदार सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर कोर्ट में पेश हुए सरकारी पक्ष ने दलील दी कि “उनको हर चीज का प्रमाण एक अलग फोरम पर देना चाहिए माननीय उच्च न्यायालय में सीधे रिट याचिका नहीं करनी चाहिए।” इतना ही नहीं, सरकारी पक्ष ने कोर्ट में यह तक कह डाला कि “एक ऐसे प्रकरण में लाभ देने से सभी लोग ऐसी प्रतिपूर्ति चाहेंगे।”
सौजन्य :जनज्वार
दिनाक :18 दिसंबर 20 22