आरक्षण पर बहस जारी लेकिन ………..
-दर्शन सिंह बाजवा (पंजाब )
कल फेसबुक पर किसी भाई ने आरक्षण नीति के खिलाफ कमेंट किया। मैंने आरक्षण की जानकारी लेकर ही बहस करने को कहा, उन्होंने कहा बहस किस लिए है। भाई लोग ! बहस का मतलब जरूरी नहीं कि लड़ना हो। बहस ही चर्चा का अर्थ है। आरक्षण के सवाल पर पहले भी चर्चा हो चुकी है लेकिन लगा कि एक बार और चर्चा होनी चाहिए। चलो इस विषय पर कुछ चर्चा हो जाये। संविधान के अनुसार आरक्षण अंग्रेजों के समय में शुरू हुआ था। वैसे इसकी जड़ गुरु गोबिंद सिंह जी है। गरीबों को नौकरी देना आरक्षण की गलतफहमी है।
आरक्षण इसलिएदिया गया क्योंकि शैक्षणिक योग्यता पूरी होने के बावजूद सवर्ण जातियों को किसी विशेष वर्ग को अवसर नहीं दिया जाता। जैसे आजादी के बाद UPSC की लिखित परीक्षा में देश का टॉपर अचुता नंदन बंगाली लड़का था लेकिन इंटरव्यू में सबसे कम अंक मिलने पर IAS के लिए चुने गए उम्मीदवारों की सूची में उसका नाम सबसे पहले आया था। अगर वह लिखित परीक्षा में टॉपर नहीं होता तो शायद वह रेस से बाहर हो जाता। इसी तरह महाभारत के अर्जुन को सुना होगा जिसने एकलव्य का अंगूठा अपने गुरु द्रोणाचार्य से काट कर तीरंदाजी का सिद्ध किया था।
एकलव्य गरीब परिवार से नही आदिवासी भीलवाड़ा राजा का बेटा था लेकिन ब्राह्मण की जाति व्यवस्था के अनुसार उसकी जाति नीच थी, उसे अच्छी तीरंदाजी शैली से रोका गया। जब उसने कड़ी मेहनत से एक अच्छा तीरंदाजी बनने की क्षमता साबित की तो उसका अंगूठा धोखे से काट दिया गया ताकि वह दोबारा गोली नहीं मार सके। हर जगह ऐसे दारोणाचार्य जैसे पाखंडी बैठे हैं जो एक विशेष वर्ग को आगे नहीं आने देते। उस विशेष वर्ग के लोग भी नौकरियों में आगे आते हैं इसलिए उनके हिस्से को अलग रखा गया है। आरक्षण एक वर्ग के सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होने का आधार है। जानें कि उन लोगों को कैसे देना है जो धार्मिक कानूनों द्वारा प्रतिबंधित हैं और नस्लवादी रूप से दुर्व्यवहार किया गया है उनकी जनसंख्या के अनुसार स्टॉक कैसे दें।
दूसरा यह कहता है कि एक ही परिवार में रोजगार पैदा होते रहते हैं इस प्रकार कुछ चुनिंदा लोग बाकी को खा जाते हैं। लेकिन यह गलत है क्योंकि उनकी सीटें हर समय खाली रहती हैं। अगर कुछ परिवार आरक्षण का लाभ लेते हैं तो बाकी का हिस्सा गरीबों को क्यों नहीं दिया जाता?
तीसरा भ्रम यह है कि योग्यता का गला ऐसे घुटा जाता है। यह बिल्कुल गलत है क्योंकि आरक्षण लेने वाली श्रेणी अपनी श्रेणी से प्रतिस्पर्धा कर रही है। भगवंत मान की सरकार में पुलिस भर्ती में मेरिट के आधार पर जनरल चुने गए SC वर्ग के लोगों को जबरन रिजर्व कोटे में शामिल किया गया।
चौथा यह कि अब रिजर्व कोटे के मेहनती लोगों को भी दस प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है जबकि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ था। फिर भी देना शुरू हो गया है क्योंकि जज जज खुद कैटेगरी के हैं। वैसे वह वर्ग आरक्षण का हकदार कैसे हो सकता है जिसके पास राजतंत्र हो, उच्च सामाजिक दर्जा हो, उच्च भूमि हो? अर्थव्यवस्था ही सब कुछ है तो पंजाब में किसी गरीब जाट या गरीब ब्राह्मण का बहिष्कार करते कभी सुना है? या गरीब होने के कारण कुए से पानी भरने से रोका जा रहा है? सामाजिक स्थिति जाति के आधार पर तय होती है तो जातियों के आधार पर दिया गया आरक्षण डंक क्यों?
आरक्षण के बारे में गुरु गोबिंद सिंह जी कहते हैं:
किसकी जात और कुल माही,
सरदारी तो कभी रही ही नहीं।
मैं तुझे सरदार क्यों बनाऊँ,
इसीलिए तो मुझे गोबिंद सिंह कहा जाता है।
गुरु साहिब के अनुसार जिन लोगों को पढ़ाई, जमीन, धन, कुआं खाने, कुआं का पानी पीने से रोका गया था, मैं चाहता हूं कि वे सरदार बने। उन्होंने तो यहां तक कहा कि अगर मैं ऐसा कर पाता तभी मैं अपने आप को गुरु कहलाने के योग्य मानूंगा। संविधान के अनुसार आरक्षण पाने वालों के साथ ये सब हुआ है। इसलिए इनको आरक्षण देना पड़ रहा है। आरक्षण का विरोध करने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी की विचारधारा के खिलाफ जाते हैं।