गुजरात के आदिवासी जिले ‘दाहोद’ में BJP को बढ़ाने, और ‘धर्मांतरण’ से निपटने के लिए RSS अपना रही लोन व बचत योजना
बीजेपी इस क्षेत्र में बार-बार अपनी हार के लिए ‘ईसाई मिशनरियों द्वारा कराए जा रहे आदिवासियों के धर्मांतरण’ को बड़ा कारण मानती है. सदस्यों का मानना है कि आरएसएस के प्रयासों के बावजूद घर वापसी का विचार आगे नहीं बढ़ पा रहा है|
दाहोद, गुजरात: भारतीय जनता पार्टी तीन-चौथाई आदिवासी आबादी वाले गुजरात के दाहोद जिले में दो दशकों से ज्यादा समय से नहीं जीती है. फिलहाल इस महीने होने वाले विधानसभा चुनावों में इस बार कांटे की टक्कर है. लेकिन यह लड़ाई दाहोद जीतने की नहीं है, बल्कि विश्वास जीतने की है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ईसाई मिशनरियों के साथ एक लड़ाई लड़ रहा है. यह लड़ाई धर्मांतरण को रोकने और जो कथित तौर पर ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुके हैं, उन आदिवासियों की ‘घर वापसी’ की है.
भाजपा इस क्षेत्र में अपनी बार-बार हार के लिए ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों के कथित धर्मांतरण को बड़ा कारण मानती है. वोटर लिस्ट के मुताबिक यहां की करीब 75 फीसदी आबादी आदिवासी है.
दाहोद में धर्म जागरण के आरएसएस प्रभारी नरेश भाई मावी ने दावा किया कि अब तक (पिछले एक दशक में) लगभग 50 से 60 फीसदी ग्रामीण परिवार अपना धर्म परिवर्तन कर चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘दाहोद तालुका में 70 चर्च हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है.’
‘पहले विश्वास और फिर चुनाव’ स्लोगन के साथ इस खोई हुई जमीन को बचाने के लिए आरएसएस ने खुद को पूरी तरह से झोंक दिया है. इसके स्थानीय नेता स्वीकार करते हैं कि घर वापसी या आदिवासियों को हिंदू धर्म में वापस लाने के विचार से बहुत निराशा हुई है. दरअसल यह विचार आगे नहीं बढ़ पा रहा है.
संगठन कथित धर्मांतरण का मुकाबला करने के लिए कुछ क्रिएटिव आइडियाज पर भी काम कर रहा हैं. दाहोद के गांवों और आदिवासी बस्तियों की अपनी यात्रा में दिप्रिंट ने लोगों के एक बड़े हिस्से और स्थानीय नेताओं से बात की. बातचीत से पता चला कि आरएसएस अब अपनी विचारधारा को आर्थिक पहल के जरिए आगे लाने का काम कर रहा है. सीधे तौर पर की जाने वाली धार्मिक अपील कहीं पीछे छूट गई है.
आरएसएस से जुड़े संगठनों की ओर से चलाई जा रही सहकारी समितियों द्वारा चार प्रतिशत ब्याज वाली लघु बचत योजनाएं, कम ब्याज वाला लोन, खेती की जमीन का संरक्षण और हिंदू अनुष्ठानों पर केंद्रित कार्यक्रम, जैसे वीज पूजन (बीजों की पूजा), वनवाजी महोत्सव (ट्राइबल फूड फेस्टिवल और आदिवासी महिलाओं के पाक कौशल को बढ़ावा देना), वन पूजन और जल पूजन आरएसएस के कुछ हथियार हैं, जिन पर भाजपा-आरएसएस मिलकर इस इलाके में कथित धर्मांतरण की गति को धीमा करने के लिए काम कर रहे हैं|
कथित धर्मांतरण पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने ‘कैथोलिक बिशप सम्मेलन ऑफ इंडिया’ से संपर्क करने की भी कोशिश की थी. लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. जवाब मिलते ही कॉपी को अपडेट कर दिया जाएगा.
दाहोद जिले में छह निर्वाचन क्षेत्र हैं – दाहोद, फतेपुरा, झालोद, लिमखेड़ा, गढ़बाड़ा, देवगढ़ बारिया. इनमें से पांच इलाके अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों के लिए आरक्षित हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भील जनजाति का यहां ज्यादा दबदबा है, जो इस क्षेत्र की आबादी का 50 फीसदी हिस्सा है. पिछले 20 सालों में भाजपा दाहोद में लगातार तीन विधानसभा चुनाव कांग्रेस से हारती आई है.
इस साल के विधानसभा चुनावों के लिए जिले में दूसरे चरण में 5 दिसंबर को मतदान होगा|
सौजन्य :द प्रिंट
दिनाक :03 दिसंबर 20 22