8 साल लिव-इन-रिलेशन के नाम पर किया शारीरिक शोषण, कई बार कराया दलित युवती का गर्भपात
शादी के बंधन में बंधे बिना पति-पत्नी की तरह रहने वाले यानी लिव-इन रिलेशन में रहने का चलन तेजी से बढ़ा है। हाल ही में हुए श्रद्धा हत्याकांड के बाद भी लिव-इन रिलेशन को लेकर पूरे देश में काफी चर्चाएं भी हुई थी। इसी बीच उत्तर प्रदेश के कौशांबी से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमे एक युवती ने पुलिस थाने पहुंच कर गुहार लगाई है कि ‘साहब मेरी शादी करवा दो।’ उसका कहना है कि पिछले 8 सालों से वह अपने प्रेमी के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही है और कई बार गर्भवती भी हो चुकी है।
युवक ने कई बार कराया गर्भपात दरअसल, कौशांबी के सैनी के एक गांव की रहने वाली युवती का पडोसी गांव के युवक से 8 सालो से प्रेम संबंध चल रहा था। पीड़ित युवती का आरोप है कि युवक ने उससे शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाये। गर्भवती होने पर आरोपी युवक ने गर्भपात करा दिया। 10 नवम्बर की शाम जब वह उसके घर पहुंची तो आरोपी युवक व् उसके चाचा ने उसे मारपीट कर भगा दिया। युवक अब उससे शादी करने की बात से मुकर गया है। पीड़ित ने कई बार प्रेमी युवक से शादी करने की गुजारिश की लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। पीड़ित ने मामले की शिकायत थाना पुलिस से कर दी है और आरोपी युवक से शादी कराये जाने की मांग की है। पीड़ित युवती के मुताबिक आरोपी युवक उससे शादी नहीं करना चाहता। वह कहता है कि चाहे नाक रगड़ डालो मै तुमसे शादी नहीं करुगा। थाना प्रभारी सैनी भुवनेश चौबे ने बताया, एक दलित युवती ने पडोसी गांव के युवक पर शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया है। सोमवार को थाना पुलिस को शिकायती पत्र देकर आरोपी युवक से शादी करवाए जाने की मांग की है। पीड़ित की शिकायत पर पुलिस ने मामले में जाँच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि मामले की जाँच कर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप भारत में लिव-इन को बेहद लूज रिलेशनशिप माना जाता है। शादीशुदा महिला को जितने कानूनी अधिकार मिलते हैं, उतने लिव-इन में रहने वाली महिला को नहीं मिल पाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसको कानूनी मान्यता दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लिव-इन रिलेश न अपराध है और न ही पाप। शादी करने या न करने और सेक्सुअल रिलेशनशिप बनाने का फैसला पूरी तरह से निजी है। लिहाजा 18 की उम्र पूरी कर चुकी लड़की और 21 की उम पूरी कर चुका लड़का लिव-इन में रह सकते हैं। शीर्ष कोर्ट ने लिव-इन को कानूनी कवच जरूर पहना दिया है, लेकिन लिव-इन पार्टनर को आज भी वो पूरे कानूनी अधिकार नहीं मिलते हैं, जो एक शादीशुदा महिला को अपने पति की संपत्ति में मिलते हैं। इसके चलते कई बार महिला लिव-इन पार्टनर को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
लिव-इन-रिलेशन के नाम पर ‘योन शोषण’ यौन शोषण (हिंसा) के अधिकांश मामले, अनियंत्रित काम-वासना को संतुष्ट करने के लिए, बेहद सावधानी से रचे होते हैं। कामुक फिल्मी छवियों का एहसास और उद्दाम ‘फैंटेसी’ का एक मात्र उद्देश्य, महिलाओं पर हावी होना है। दरअसल, वास्तविक बलात्कार या ‘डेट रेप’ करने से पहले, बलात्कारी के दिमाग में नशे की तरह, कई बार इसकी ‘रिहर्सल’ की गई होती है। मगर प्राय पीड़िता को ही सदा दोषी ठहराया और अपमानित किया जाता है। परिजनों द्वारा कथित ‘खानदान की इज्ज़त’ के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है।
शादी की आड़ में ‘यौन शोषण’ शादी का झांसा देकर किसी लड़की के साथ शारीरिक रिश्ते बनाना और बाद में शादी से मना करना, बलात्कार के दायरे में आता है। वह भी तब, जब लड़के का लड़की से शुरू से ही शादी करने का कोई इरादा न हो। हम इसे ‘शादी की आड़ में ‘यौन शोषण’ भी कह सकते हैं। अधिकतर लड़के शादी का झांसा देकर, शारीरिक रिश्ते बनाते हैं और तब तक बनाते रहते हैं, जब तक लड़की गर्भवती नहीं हो जाती। कुछ समय बाद, गर्भपात कराना भी मुश्किल हो जाता है और अंतत: मामला परिवार और पड़ोसियों की नजर में आ ही जाता हैं। बाद के अधिकतर मामलों में, ऐसे दोषियों के खिलाफ मामले दर्ज होते हैं। रोज़ हो रहे हैं।
15 से 20 साल लग जाते हैं न्याय मिलने में विवाह करने संबंधी वायदे के साथ सेक्स करना और गर्भवती होने पर पुलिस रिपोर्ट वर्ग, धर्म, क्षेत्र, आयु या सामाजिक स्तर संबंधी ज्यादातर मामले एक जैसे होने पर आदमी लड़की पर सेक्स के लिए दबाव बनाता है, विवाह करने का भरोसा देकर गर्भवती करता है, परिवार और पुलिस का रिपोर्ट के संदर्भ में बरी होने, संदेह का लाभ पाने या उच्च अदालत में अपील और इस तरह अंतिम न्याय मिलने में पांच से बीस साल लगना। ये वे मामले हैं, जो समूचे मामलों की नजीर भर हैं।
सहमति और तथ्यों के उलझाव में उलझे हुए हैं फैसले इस खास संदर्भ में कानूनी राय और फैसले सीधे-सीधे बंटे हुए हैं। सहमति और तथ्यों के उलझाव में उलझे हुए हैं, क्योंकि कानून पूरी तरह पारदर्शी नहीं है और फैसले हर मामले के तथ्यों और हालातों के आधार पर होते हैं। इसके मुताबिक, विवाह के झूठे वायदे को लेकर पति-पत्नी जैसा शारीरिक रिश्ता बनाने संबंधी सहमति हासिल करना कानूनी नजरिये से सहमति ही नहीं है। ऐसे मामलों में सबसे कठिन काम यह साबित करना होता है कि आरोपी का शुरू से ही पीड़ित लड़की से विवाह करने का कोई इरादा नहीं था। वह कह सकता है कि मैं विवाह करना तो चाहता हूं लेकिन मेरा माता-पिता, धर्म, जाति, ‘खाप’ आदि इसके लिए अनुमति नहीं देते। औरत के खिलाफ अपराध संबंधी किंतु-परंतु को लेकर जब तक कानून में संशोधन नहीं होता, न्याय से जुड़े ऐसे कानूनी पेंच यूं ही कायम रहेंगे।
सौजन्य : One india
नोट : यह समाचार मूलरूप से oneindia.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !