सवर्ण लड़की और दलित लड़के की प्रेम कहानी का ख़ूनी अंत
उत्तराखंड की ख़ूबसूरत वादियों में बसे अल्मोड़ा ज़िले के भिकियासैंण के बिल्टी गांव की गीता ने जब एक संघर्षशील दलित युवक जगदीश को देखा तो लगा कि उसे अपने सपनों का राजकुमार मिल गया है.
जगदीश की बातों, उसके व्यक्तित्व और वादों से गीता इस क़दर प्रभावित हुई कि उसने पहली नज़र में ही धन-दौलत की लालसा, जाति-धर्म का बंधन, अगड़े-पिछड़े जैसी सभी बातों को नज़रंदाज़ करते हुये जगदीश के साथ जीवन भर का रिश्ता जोड़ने की ठान ली थी.
समाज की परवाह किए बग़ैर सवर्ण जाति से ताल्लुक रखने वाली गीता ने दलित युवक जगदीश से शादी तो कर ली, लेकिन गीता के घरवालों की आंखों में दलित दामाद खटक रहा था.
एक सितंबर को जगदीश की मौत हो गई.
जगदीश के घरवालों के अनुसार गीता के घरवालों ने जगदीश को सिर्फ़ इसलिए बेरहमी से मार दिया क्योंकि उसने दलित होकर एक सवर्ण लड़की से प्रेम करने और शादी करने की हिमाक़त की थी.
जगदीश की हत्या के आरोप में गीता के घरवाले पुलिस हिरासत में हैं और गीता फिलहाल नारी निकेतन में रह रही हैं.
जगदीश चंद्र अल्मोड़ा ज़िले की तहसील सल्ट के गांव पनवाद्योखन के रहने वाले थे. इस गांव में तक़रीबन 50 दलित परिवार रहते हैं.
जगदीश ‘घर-घर नल, घर-घर जल’ सरकारी योजना के तहत पनवाद्योखन से 40 किलोमीटर दूर भिकियासैंण इलाक़े में ग्राम विकास अधिकारी कविता मनराल की देखरेख में काम करते थे.
गीता नाम की जिस लड़की से जगदीश ने शादी की वो भिकियासैंण इलाक़े के बिल्टी गांव की रहने वाली है. उन दोनों ने बीती 21 अगस्त को ही मंदिर में शादी की थी.
सामान्य जाति के परिवार में जन्मी गीता उर्फ़ गुड्डी अपनी माँ के साथ सौतेले पिता जोगा सिंह और सौतेले भाई के साथ बिल्टी गांव में रहती थीं. जगदीश के घरवालों का दावा है कि जगदीश के दलित होने की वजह से गीता के परिवार को ये रिश्ता मंज़ूर नहीं था.
मंदिर में शादी करने के बाद जगदीश ने गीता को कहां रखा था इस बारे में पता होने को लेकर पनवाद्योखन और बिल्टी दोनों गांवों के लोगों में मतभेद हैं. दोनों की मुलाक़ात कैसे हुई और प्यार कब परवान चढ़ा, इस बारे में भी गांववाले कुछ भी नहीं बोल रहे हैं. गांव में ज़्यादातर लोगों का यही कहना था कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.
भले ही गांववाले इस मामले में खुलकर बोलने से बच रहे हैं लेकिन जगदीश चंद्र के गांव सहित आसपास के इलाक़ों में सभी जगह ये चर्चा ज़रूर है कि दलित होने की वजह से ही उन्हें प्यार करने की सज़ा मौत की शक्ल में मिली.
उत्तराखंड में बीते 40 सालों से दलितों के हितों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दर्शन लाल ने इस पूरे मामले में कहा, “गीता ने अनुसूचित जाति के लड़के साथ तालमेल से शादी की. लेकिन उसके परिवार वालों को ये बात पची नहीं और यह बुरी घटना सामने आयी है.”
दर्शन लाल ये भी दावा करते हैं कि उत्तराखंड में दलितों के साथ आज भी काफ़ी भेदभाव होता है और उनके अपमान की पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पाती है, क्योंकि अधिकांश मामले दर्ज नहीं हो पाते हैं. हालांकि इस दावे के पक्ष में वे कोई विश्वसनीय आंकड़े नहीं दे पाते हैं लेकिन समय समय पर उत्तराखंड से दलितों के साथ भेदभाव वाली कहानियां सामने आती रही हैं.
गीता ने अल्मोड़ा एसएसपी को लिखा था पत्र
गीता के साथ उसके सौतेले पिता और भाई का रवैया कभी ठीक नहीं रहा. अपने ही परिजनों से ख़तरे की आशंका जताते हुए 27 अगस्त को गीता ने एसएसपी अल्मोड़ा को एक पत्र लिखा था और अपनी और अपने पति की सुरक्षा की गुहार लगाई थी.
गीता के पत्र के मुताबिकट “26 मई को घर से वो जगदीश चंद्र के साथ अल्मोड़ा आ गयी थी. दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन उसके पास प्रमाण पत्र नहीं थे. वो अपने प्रमाण पत्र की व्यवस्था कर रही थी. एक दिन अचानक उसका सौतेला पिता 17 जून को अल्मोड़ा में मिल गया उसे ज़बरदस्ती अपने साथ ले गया और उसके साथ मारपीट की. पिता की धमकियों से परेशान होकर गीता 7 अगस्त को घर से भागकर भिकियासैंण जगदीश चंद्र के पास पहुंच गई. जिसके बाद 21 अगस्त को मंदिर में दोनों ने शादी कर ली.”
अल्मोड़ा के एसएसपी प्रदीप कुमार राय ने इस पूरे मामले पर कहा, “इस मामले की जांच सीओ रानीखेत को सौंपी गई है.”
लेकिन गीता के पत्र पर पुलिस ने कोई सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं उपलब्ध कराई, इस बारे में उन्होंने कहा, “27 अगस्त को पीड़िता द्वारा जब सुरक्षा संबंधी पत्र दिया गया था तो इसके बाद पुलिस ने पत्र में दिए गए पते पर खोजबीन की, लेकिन वहां कोई नहीं मिला था. पत्र में दिए गए फोन नंबर से भी कोई संपर्क नहीं हो पाया था.”
अब जगदीश की हत्या के बाद अल्मोड़ा के एसएसपी का दावा है कि हत्याकांड में लिप्त लोगों को किसी भी हाल में नहीं बख्शा जाएगा.
वहीं इस मामले की जांच कर रानीखेत के सीओ टी.आर वर्मा ने बताया, “लड़का शेड्यूल कास्ट से था. जिसके तहत 302 एस.सी/एस.टी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई. लड़का दलित समुदाय से था और लड़की राजपूत जाति की थी, जिसकी वजह से लड़की के परिवार वाले बहुत खफा थे.”
टी.आर वर्मा ने कहा, “प्रथम दृष्टया इसी प्रकरण को लेकर लड़के का अपहरण किया गया और उसकी हत्या की गई.”
जगदीश की आर्थिक स्थिति भी कमज़ोर थी
जगदीश के परिवार में उनकी मां भागुली देवी, बड़े भाई पृथ्वीपाल, छोटा भाई दिलीप कुमार और छोटी बहन गंगा हैं.
बड़े भाई पृथ्वीपाल गांव के इलाक़े में ही छोटी-मोटी मज़दूरी करके परिवार पालते हैं.
छोटा भाई दिलीप कुमार विद्युत विभाग के लिए काम करने वाले ठेकेदार के साथ मज़दूरी करता है. छोटी बहन गंगा गांव के ही स्कूल से बारहवीं तक की पढ़ाई करके घर के कामकाज में मां का हाथ बंटाती है.
फ़िलहाल जगदीश की मौत के बाद से पूरा परिवार ग़म में डूबा है और ख़ुद को बिखरा हुआ महसूस कर रहा है.
यह गांव रामनगर के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से तक़रीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर है.
जगदीश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही स्कूल से की थी. बचपन में ही पिता की मौत होने के बाद उनकी ज़िंदगी संघर्ष करते हुए बीती.
पिछले 12 सालों से जल संस्थान में संविदा पर पाइप लाइन के रख-रखाव और रिपेयरिंग का काम करके जगदीश अपना और परिवार का गुज़र बसर करते थे.
जगदीश लम्बे वक़्त से उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी से भी जुड़े थे. परिवर्तन पार्टी के टिकट पर ही जगदीश ने पिछले दो विधानसभा चुनाव लड़े थे. हालांकि जगदीश दोनों ही बार चुनाव हार गए थे. लेकिन पार्टी में एक सक्रिय सदस्य के तौर पर उनकी ख़ासी पहचान थी.
जगदीश की मौत के बाद उनकी बूढ़ी मां भागुली देवी का रो-रो कर बुरा हाल है. उनके घर पर सांत्वना देने वालों का तांता लगा है. जगदीश की मां बताती हैं कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके बेटे को प्यार करने की सज़ा इस तरह से दी जाएगी. वह इंसाफ़ की गुहार लगा रही हैं.
जगदीश के घर पहुंचे अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष
जगदीश के घर उत्तराखंड अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष मुकेश कुमार भी पहुंचे.
उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले अशिक्षा की वजह से बढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि इसके लिए वो लोगों को जागरूक करने के प्रोग्राम भी शुरू करेंगे. आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक़ कमीशन की वेबसाइट भी बनाई गई है जिसकी मॉनिटरिंग एक कर्मचारी करता है और कंप्लेंट आने पर कार्रवाई भी की जाती है.
मुकेश कुमार ने जगदीश चंद्र के परिवार को इंसाफ़ दिलाने का दिलासा दिया है और अब नारी निकेतन में रह रही गीता के भविष्य के बारे में भी चिंता ज़ाहिर की.
गीता के गांव में सब ख़ामोश हैं
वहीं गीता के गांव बिल्टी में भी लोग इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहते.
बहुत कोशिशों के बाद बात करने पर राज़ी हुए कुछ लोगों का कहना है कि वो पहले से जगदीश और गीता के प्रेम प्रसंग बारे में नहीं जानते थे. ये घटना उनके लिए भी बेहद चौंकाने वाली है.
ग्राम प्रधान भावना देवी हमसे बात करने को तैयार हुईं. उन्होंने कहा कि “आने वाले वक़्त में अगर गीता कभी वापस गांव का रुख़ करती हैं, तो वो और गांववाले आपसी सलाह और बातचीत के बाद ही उन्हें वापस आने देने के लिए अनुमति देंगे.
पुलिस का क्या कहना है?
इस मामले की जांच कर रहे पुलिस के सीओ टीआर वर्मा के मुताबिक़ मृतक जगदीश और उनका एक साथी महिला ठेकेदार कविता के यहां काम करते थे.
एक सितम्बर की सुबह लगभग आठ बजे काम पर जाते वक़्त इन्हें दो लोग सेलापानी भिकियासैंण रोड पर मिले. इन्होंने जगदीश को ज़बरदस्ती रोक लिया और उनके साथी को डराकर भगा दिया.
जगदीश के साथी ने भागने के बाद कविता को फ़ोन कर इस घटना की जानकारी दी. लेकिन वो उस वक़्त वहां मौजूद नहीं थीं. वापस लौटने पर वो शाम के क़रीब छह बजे तहसील भिकियासैंण पहुंचीं और पूरी घटना की जानकारी देते हुए तहसील के रेवेन्यू सब-इंस्पेक्टर के पास एफ़आईआर दर्ज करवाई.
दरअसल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाक़ों में पुलिस का काम दो भागों में बंटा होता है. कुछ इलाक़े रेगुलर पुलिस देखती है और कुछ इलाक़े रेवेन्यू यानी राजस्व पुलिस देखती है.
जहां पर यह घटना हुई थी, वो राजस्व पुलिस के मातहत आता है. एफ़आईआर के बाद दोनों पुलिस ने मामले की तहकीकात शुरू की.
पुलिस के अनुसार एक सितंबर की रात लगभग 10.30 बजे एक वैन को पुलिस ने रोका. उस वैन को गीता के सौतेले भाई चला रहे थे और गीता के माता-पिता पीछे बैठे थे.
पुलिस ने वैन की तलाशी ली तो सीट के नीचे मरने जैसी हालत में जगदीश को पड़ा पाया. पुलिस सभी को लोकर अस्पताल पहुंची जहां डॉक्टरों ने जगदीश चंद्र को मृत घोषित कर दिया.
पुलिस ने गीता के माता-पिता और भाई तीनों पर आईपीसी की धारा 364 और 302 के तहत मामला दर्ज किया है.
जगदीश दलित समुदाय से आते थे और उनकी हत्या के अभियुक्त सामान्य जाति से आते हैं इसलिए पुलिस ने उनपर एससी-एसटी एक्ट भी लगाया है.
मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच रानीखेत के सीओ को सौंप दी गई है. फ़ोरेंसिक की टीम भी जांच में सहयोग कर रही है.
जगदीश अब इस दुनिया में नहीं हैं. गीता ख़ुद नारी निकेतन में रह रही हैं, उनका परिवार जेल में है.
जगदीश की बूढ़ी मां और भाई-बहन का क्या होगा ये भी कहना मुश्किल है. लेकिन जगदीश की मां को उम्मीद है कि उन्हें इंसाफ़ मिलेगा.
सौजन्य : Bbc
नोट : यह समाचार मूलरूप से bbc.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !