मात्र 3,000 रुपये मासिक सैलरी, आंकड़ों से समझे दलित भेदभाव और अत्याचार की दास्तां
झारखंड की भाजपा नेत्री सीमा पात्रा पर अपनी घरेलू सहायिका सुनीता के साथ अत्याचार करने आरोप लगा है। विकलांग आदिवासी लड़की का आरोप है कि भाजपा नेत्री ने उसे आठ साल तक अपने घर में बंधक बनाकर रखा और लगातार अत्याचार किया। शरीर पर दर्जनों जख्म के साथ वीडियो में दिख रही सुनीता बताती हैं कि उन्हें गरम तवे से कई जगहों पर दागा गया, जीभ से फर्श की सफाई कराई गई, पेशाब चटाया गया और रॉड से दांत तोड़े दिए गए। मंगलवार को भाजपा नेत्री के बेटे की ही मदद से पुलिस ने सुनीता को सीमा पात्रा के अशोक नगर स्थित आवास से रेस्क्यू किया।
मामला सामने आने के बाद भाजपा महिला विंग की राष्ट्रीय कार्य समिति की सदस्य और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की राज्य संयोजक सीमा पात्रा को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। पुलिस ने सीमा के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट समेत विभिन्न धाराओं मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा है।
हालांकि झारखंड के घरेलू नौकरों के साथ अत्याचार का यह कोई पहला मामला नहीं है। राज्य में यह समस्या इतनी विकराल है कि पिछली रघुवर दास सरकार में इसके लिए एक एक्ट (निजी नियोजन अभिकरण तथा घरेलू कामगार विनियमन विधेयक) पेश किया गया था। बाद में सरकार ने त्रुटियों का हवाला देकर एक्ट वापस ले लिया।
73 प्रतिशत घरेलू कामगार दलित और आदिवासी
29 मार्च 2022 को ‘Status of Domestic Workers in Jharkhand’ शीर्षक से प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में 73 प्रतिशत से अधिक घरेलू कामगार आदिवासी और दलित समुदायों से आते हैं। रिपोर्ट के लिए दिसंबर 2021 से फरवरी 2022 तक गोड्डा, दुमका, पश्चिमी सिंहभूम, लोहरदगा, खूंटी, सिमडेगा, चतरा, देवघर, कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह और रांची जिला में शोध किया गया था। अध्ययन ने निष्कर्ष में बताया गया है कि 41.6 फीसदी घरेलू कामगार आदिवासी समुदाय और 32.1% दलित समुदाय से आते हैं।
कम वेतन और ज्यादा यातना
रिपोर्ट से पता चलता है कि झारखंड में करीब 70% घरेलू कामगार मात्र 3,000 रुपये के मासिक वेतन पर काम करते हैं। सिर्फ 10% को अधिकतम 5000 रुपये प्रति माह मिल पाता है। शेष 20% तो 2000 रुपये से भी कम के मासिक वेतन पर काम करने को मजबूर हैं।
घरेलू कामगारों में से 40.9% साक्षर हैं यानी उन्हें लिखना और पढ़ना आता है। 22.6% ने पांचवीं तक पढ़ाई की है। 3.6% 10वीं और 1.5% 12वीं तक की पढाई करने के बावजूद घरेलू नौकर का काम करने को मजबूर हैं।
वेतन की तरह इन्हें छुट्टी भी बहुत कम मिलती है। रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 68.6% घरेलू कामगारों को महीना में मात्र चार दिन की छुट्टी मिलती है। खान-पान के स्तर पर भी घरेलू नौकरों के साथ होने वाला भेदभाव का आंकड़ा बेहद भयावह है। 50% से अधिक घरेलू कामगार दोपहर का अपना भोजन साथ लेकर जाते हैं। उन्हें नियोक्ता के घर का खाना खाने की इजाजत नहीं होती। उन्हें अक्सर फर्श पर बैठकर या अपार्टमेंट की सीढ़ियों के नीचे बैठकर खाना पड़ता है।
रिपोर्ट में करीब 22% घरेलू कामगार स्वीकार करते हैं कि उनके साथ कार्यस्थल पर भेदभाव किया जाता है। लगभग 33% ने यह माना कि उनके नियोक्ता अपमानजनक और कभी-कभी हिंसक व्यवहार करते हैं।
सौजन्य : Jansatta
नोट : यह समाचार मूलरूप से jansatta.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !