भगवानों की जाति बताना क्यों जरूरी है?
पिछले कुछ दिनों से भारत में भगवानों की जाति बताने का चलन शुरू हुआ है। भाजपा के नेता या भाजपा सरकार में उच्च शैक्षणिक पदों पर नियुक्त किए गए लोग आए दिन किसी न किसी भगवान की जाति बताते रहे हैं। पिछले दिनों जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की नई वाइस चांसलर शांतिश्री धुलपडी पंडित ने बताया कि हिंदुओं के कोई भी भगवान सवर्ण जाति के नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान शिव एससी, एसटी जाति के हो सकते हैं। अपने दावे को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने कहा कि भगवान शिव शमशान में निवास करते हैं और गले में नाग धारण करते हैं इसलिए दलित या आदिवासी हो सकते हैं।
कुछ ही दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जाति बताई थी। मुख्यमंत्री ने अपने जातीय गौरव का बखान करते हुए कहा था कि वे उफस जाति से आते हैं, जिसमें भगवान पैदा होते हैं। इसका मतलब है कि भगवान राम राजपूत हैं। भगवान विष्णु के एक अन्य अवतार कृष्ण को पहले ही यदुवंशी घोषित किया जा चुका है। यानी वे यादव हैं। उससे पहले भाजपा के नेताओं ने हनुमानजी की जाति का विवाद खड़ा किया था। किसी ने उनके पिछडा बताया तो किसी ने दलित बताया। इसमें उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक के कई नेता शामिल थे। बाद में कई नेताओं ने हनुमान चालीसा का दोहा पढ़ कर बताया कि तुलसीदास ने लिखा है कि ‘कांधे मूंज जनेऊ साजे’ इसका मतलब है कि वे ब्राह्मण थे। सोचें, भारत का समाज इस तरह जातियों में बंटा है और सरकार जाति जनगणना नहीं कराना चाहती है!
सौजन्य : Nayaindia
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