मकान कब्जे के मामले में एडीसीपी साउथ की जांच में उठे सवाल, वेस्ट को सौंपी गई
कानपुर । बर्रा दो में दलित परिवार के मकान में कब्जे के मामले में अब एडीसीपी की जांच रिपोर्ट पर भी सवाल उठने लगे हैं। विवेचना करने वाले एडीसीपी साउथ ही पुलिसकर्मियों के आरोपों की जांच कर रहे थे। जांच रिपोर्ट मिलने के बाद उच्चाधिकारी ने इसकी जांच दोबारा कराने का निर्णय लेते हुए एडीसीपी वेस्ट को जांच सौंपी है।
बर्रा निवासी दलित परिवार ने उमराव व उसके साथियों पर लूट, एससीएसटी एक्ट समेत अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। दलित परिवार ने एसीपी पर मुकदमे से लूट की धारा हटाने का आरोप लगा उच्चाधिकारी से शिकायत की थी।
उच्चाधिकारी के आदेश पर विवेचना एडीसीपी साउथ मनीषचंद्र सोनकर को सौंप दी गई। वह मामले की विवेचना कर रहे थे। उसके बाद उन्हें तत्कालीन डीसीपी साउथ ने पुलिस अधिकारी व पुलिसकर्मियों की विभागीय जांच भी एडीसीपी साउथ को दे दी। उन्होंने मामले में धाराएं बढ़ाईं और आरोपित को जेल भेज दिया।
एडीसीपी साउथ ने अपनी जांच में एसीपी विकास पांडेय, तत्कालीन बर्रा थाना प्रभारी दीनानाथ मिश्रा, तत्कालीन बर्रा की यादव मार्केट चौकी प्रभारी आशीष व सिपाही अश्वनी को ठोषी ठहराते हुए रिपोर्ट उच्चाधिकारी को सौंपी, लेकिन जब उच्चाधिकारी ने रिपोर्ट देखी तो जिस मामले के विवेचक एडीसीपी साउथ दिखे।
उसी मामले में विभागीय जांच भी उन्हीं की थी। जिसके बाद रिपोर्ट में सवाल उठे तो एडीसीपी वेस्ट बृजेश श्रीवास्तव को दोबरा विभागीय जांच सौंपी।
यह था मामला: बर्रा दो निवासी दलित परिवार के व्यक्ति ने 2014 में अपना मकान उमराव नाम के व्यक्ति को बेचा था। आरोप था कि उमराव ने 10 लाख नगर और आठ लाख की कीमत का खाड़ेपुर स्थित एक प्लाट उनके नाम कर बर्रा के मकान की लिखापढ़ी करा ली।
बकाया 17 लाख न मिलने पर उन्होंने मकान पर अपना कब्जा जमाए रखा। जिस पर उमराव ने कोर्ट में चला गया। इसी दौरान कोर्ट ने उमराव के पक्ष में फैसला कर दिया। जिसका फायदा उठा जबरन सामान लूटकर परिवार को बाहर कर दिया था। तब दलित परिवार ने बर्रा थाने में मुकदमा दर्ज कराया था।
सौजन्य : Dainik jagran
नोट : यह समाचार मूलरूप से jagran.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !