सरकारी स्कूलों में दलित बच्चों को अलग बैठाकर मिलता है मिड डे मील का खाना, अनुसूचित जाति आयोग ने मांगी रिपोर्ट
जयपुर । राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को राजस्थान के स्कूलों में मिड डे मील परोसने में कथित भेदभाव की शिकायत मिली है। आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने रविवार को कहा कि हमें राजस्थान में स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के दौरान अनुसूचित जाति के बच्चों को अलग बैठाए जाने की सूचनाएं मिल रही है और वहां सामान्य श्रेणी के बच्चों को अलग बैठाया जाता है। सांपला ने कहा कि रविवार को ऑल इंडिया एससी-एसटी वेलफेयर एसोसिएशन फेडरेशन के एक कार्यक्रम में उन्हें इस बारे में बताया गया तो उन्होंने उन स्कूलों की लिस्ट भी मांगी है। जहां ऐसा हो रहा है। सांपला ने जयपुर में मीडिया से बातचीत में दावा किया कि उन्हें कार्यक्रम के दौरान एक बात और बताई गई कि मिड डे मील के लिए अनुसूचित जाति के लोगों से खाना बनवाने का काम नहीं लिया जा रहा है। इसकी सच्चाई जानने और पुष्टि के लिए रिपोर्ट मांगी गई है।
अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि अगर ऐसा सरकारी स्कूलों में हो रहा है तो यह बहुत बुरी बात है और निंदनीय भी है। सांपला ने कहा कि आयोग देश के अन्य राज्यों को भी पत्र लिख रहा है कि जब स्कूलों को मान्यता दी जाती है तो उसमें उस स्कूल प्रबंधन से अनुसूचित जाति के प्रति जागरूकता का शपथ पत्र भी लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्कूलों में भेदभाव नहीं होना चाहिए और शिक्षकों को भी इस संबंध में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं। आयोग जयपुर में 24- 25 अगस्त को सभी विभागों के साथ विभिन्न मुद्दों की समीक्षा बैठक करेगा।
राजस्थान के जालौर में शिक्षक की पिटाई से दलित छात्र की मौत पर राष्ट्रीय एससी आयोग ने माना है कि मटके से पानी पीने पर यह घटना हुई है। आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने जयपुर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि राज्य सरकार की कार्रवाई संतोषप्रद है। आयोग आगे भी इस पूरे मामले पर अपनी निगरानी रखेगा। सांपला ने कहा कि बच्चे की मौत को लेकर शुरुआत में अलग बातें सामने आई और बाद में उसमें कुछ बदलाव भी सुनने में आया। लेकिन घटना मटके का पानी पीने के कारण ही हुई है और यह बात प्रारंभिक जांच में सामने आई है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में दलित अत्याचारों की कई घटनाएं आयोग के सामने आती रहती है। जिस पर राजस्थान सरकार और पुलिस महकमे को नोटिस भी जारी किए जाते हैं। लेकिन इसका जवाब नहीं मिलता।
सौजन्य : Oneindia
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