क्या 2047 तक पूरा हो जाएगा छुआछूत-मुक्त भारत का सपना? 75 साल बाद भी दलित तलाश रहे आजादी का सही अर्थ
हम खास तौर से डिजाइन किया गया 1,000 किलोग्राम वजन वाला सिक्का नए संसद भवन में रखे जाने के लिए राष्ट्रपति को सौौपना चाहते थे ताकि सांसदों को इसकी याद रहे। यह सिक्का 10 फीट का है और इस पर यह सवाल खुदा हुआ है कि ‘अस्पृश्यता-मुक्त भारत का 1947 का सपना क्या 2047 में वास्तविक होगा?’ दलित परिवारों ने अपने पीतल के बर्तन इस सिक्के के लिए दान किए। इन्हें गलाकर यह सिक्का बनाया गया है। इसे एक ट्रक पर रखा गया था। इस पर एक-एक रुपये के 20 लाख सिक्के भी थे। इनके अतिरिक्त, बाबा साहब डॉ. भीमराव आम्बेडकर की प्रतिमा और संविधान की प्रतिकृति भी साथ में थी। लेकिन गुजरात में मेहसाना और बनासकांठा तथा राजस्थान से तो यात्रा गुजर गई, हमें 7 अगस्त की शाम राजस्थान-हरियाणा सीमा पर हरियाणा पुलिस ने रोक दिया।
उन लोगों ने सूचना दी कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से उन्हें इस सिक्का यात्रा को दिल्ली की तरफ न जाने देने का निर्देश है। पुलिस वाले शालीन थे और उन लोगों ने भोजन और रात में ठहरने के इंतजाम के प्रस्ताव भी किए जिन्हें विनम्रतापूर्वक मना कर दिया गया। हम कोई दान मांगने दिल्ली नहीं जा रहे थे। हम नए संसद भवन के लिए पैसे दान करने जा रहे थे। हम यह पूछने जा रहे थे कि क्या अगले 25 साल में भी छुआछूत खत्म हो पाएगी या नहीं। दलितों के लिए आजादी का क्या मतलब है अगर उन्हें लक्ष्य कर की जा रही हिंसा का कोई अंत नहीं है?
जाति भेद के खिलाफ डरबन में 2001 में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान भारत सरकार ने दावा किया कि भारत में कोई छुआछूत नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 और ‘आरक्षण’ के प्रावधान इस दावे के समर्थन में उद्धृत किए गए। और फिर भी इसी साल 2022 में कर्नाटक सरकार ने छुआछूत मिटाने के लिए ‘विनय समरस्य योजना’ शुरू की और तमिलनाडु सरकार ने 500 से अधिक गांवों की सूची जारी की जहां छुआछूत की चिंताजनक प्रथा अब भी जारी है। साफ है कि छुआछूत अब भी जारी है। तो फिर, गृह मंत्रालय ने यात्रा रोकने का आदेश क्यों जारी किया?
आखिरकार, यह यात्रा 1,000 किलोग्राम का पीतल का सिक्का और लोगों से चंदे के तौर पर एकत्र 20 लाख सिक्के उपहार के तौर पर संसद को देने के लिए गुजरात से आ रही थी। निश्चित तौर पर संसद के पास इसे अस्वीकार करने का विकल्प था। लेकिन 14 राज्यों के 350 लोगों और 104 महिलाओं की यात्रा को हरियाणा सीमा पर वाटर कैनन, आंसू गैस के गोले, बड़े-बड़े पत्थर, बैरिकेट, वज्र वाहनों और कमांडो से रोकना ऐसा लग रहा था, मानो निःशस्त्र लोग सरकार पर कुछ भयावह ढाहने जा रहे हैं। सरकार को क्या भय था?
क्या इस किस्म के भय की वजह वह सवाल था जो सिक्के पर खुदा हुआ था? यह निश्चित ही इस बात को सामने लाना चाहता था कि पिछले 75 साल में तमाम विकास के बावजूद देश छुआछूत खत्म करने में विफल रहा है। यात्रा इस किस्म की विफलता के लिए भारत के सभी राजनीतिक दलों को सामूहिक तौर पर जिम्मेदार ठहरा रही थी।
गुजरात में नवसर्जन ट्रस्ट ने 569 गांवों में 98,000 लोगों के बीच चार साल तक किए गए अध्ययन के बाद 2010 में पाया कि दलित, भले ही वे हिन्द हों, 90.2 प्रतिशत गांवों के ग्राम मंदिरों में प्रवेश नहीं पा सकते; 54 प्रतिशत पब्लिक स्कूलों में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग कर मिड डे मील दिए जाते हैं और 64 प्रतिशत पंचायतों में दलित सरपंच और पंचायत सदस्यों के लिए अलग से कप और गिलास हैं।
1997 तक दलित हिंसा को लेकर प्रामाणिक आंकड़े गायब थे। पिछले 42 साल के उपलब्ध आंकड़े के आधार पर अनुमान इस तरह हैंः हत्याः 25,947 (दलित), 5,336 (आदिवासी); बलात्कारः 54,903 (दलित महिलाएं), 22,004 (आदिवासी महिलाएं); पुलिस में दर्ज उत्पीड़न के मामलेः 12,04,665 (दलित), 2,11,331 (आदिवासी)। मीडिया में छपी-दिखाई गई स्टोरीज भी संकेत देती हैं कि दलितों और आदिवासियों पर निर्मम हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या जाति और छुआछूत को जड़ से मिटाया जा सकता है? डॉ. आम्बेडकर ने इसके रास्ते के तौर पर हिन्दू धर्म को छोड़ना बताया था। लेकिन इस्लाम और ईसाईयत समेत सभी धर्म जाति के विषाणु से ग्रस्त हैं। आगे एकमात्र प्रभावी रास्ता संविधान के प्रति निर्भीक निष्ठा है।
(लेखक नवसर्जन ट्रस्ट, अहमदाबाद के संस्थापक हैं।)
सौजन्य : Navjivanindia
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