दलित महिला क्रांतिकारी ऊदा देवी ने अकेले 36 अंग्रेजों को उतारा था मौत के घाट
लखनऊ: ऊदा देवी पासी दलित समाज से थीं. उनका जन्म लखनऊ में ही हुआ था. वह अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की सेविका होने के साथ ही उनकी अंगरक्षक भी थीं. ऊदा देवी के पति मक्का पासी नवाबों की फौज में शामिल थे. जब 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई शुरू हुई और इस दौरान चिनहट में जब भारतीय क्रांतिकारी और अंग्रेजों की फौज का आमना-सामना हुआ, तब भीषण युद्ध हुआ था. दोनों के बीच में हुए युद्ध में ऊदा देवी के पति मक्का पासी मारे गए थे. जब यह खबर ऊदा देवी को पता चली, तब उन्होंने एक सैनिक की तरह हाथों में रायफल उठा ली और 1857 की पहली आजादी की लड़ाई में जब रेजीडेंसी में फंसे ब्रिटिश सैनिकों और उनके परिवार को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए ब्रिटिश सेना के अधिकारी कॉलिन कैंपबेल के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिक रेजीडेंसी की ओर बढ़ रहे थे, तभी सिकंदर बाग में छिपे हुए दो हजार से ज्यादा भारतीय क्रांतिकारियों ने उनके ऊपर हमला कर दिया था. ऐसे में खुद को बचाने के लिए अंग्रेजी सैनिकों ने गोले बारूद के जरिए सिकंदर बाग पर हमला कर दिया था. इस हमले के दौरान दो हजार से ज्यादा भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी.
पीपल के पेड़ पर चढ़कर 36 अंग्रेजों को मार गिराया
16 नवंबर 1857 को ऊदा देवी पासी सिकंदर बाग के कुछ ही दूरी पर पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं. पीपल का पेड़ घना होने के कारण उन्हें कोई नहीं देख पाया. वहां से राइफल के जरिए उन्होंने एक-एक करके 36 अंग्रेजों को मार गिराया था. जो ब्रिटिश सेना के कैप्टन थे, उनको यह हैरानी हुई कि सबके शरीर में गोली लगी हुई थी और सभी की मौत पेड़ के पास हुई थी. तभी उन्होंने अपने सैनिकों को पीपल के पेड़ को गोलियों से उड़ा डालने का आदेश दे डाला और उनकी सैनिक फौज ने ऐसा ही किया. पीपल के पेड़ को चारों ओर से गोलियों से उड़ा दिया. तब ऊपर से ऊदा देवी का शव नीचे आकर गिरा. अंग्रेजों ने जब चेहरा देखा तो उनको लगा यह तो एक महिला है. जब अंग्रेजों ने इस महिला की पहचान कराई तब सामने आया कि यह जो महिला है, यह मक्का पासी की पत्नी हैं, जो कि अंग्रेजों से लड़ते हुए मारे गए थे.
इतिहास के पन्नों से गायब है नाम
ऊदा देवी पासी का नाम इतिहास के पन्नों से गायब हैं. उन्हें वो जगह नहीं मिली जो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हजरत महल के साथ ही दूसरी क्रांतिकारी महिलाओं को मिली हुई है. ऐसे में पहली आजादी की लड़ाई में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद अकेली महिला जिसने 36 अंग्रेजों को मार गिराया था, उसकी कहीं पर भी इतिहास में जानकारी नहीं मिलती है. हालांकि, उनको याद रखने के लिए लखनऊ के सिकंदर बाग परिसर में ही उनकी एक प्रतिमा लगाई गई है. इसके अलावा सिकंदर बाग चौराहे पर भी राइफल लिए हुए उनकी प्रतिमा को लगाया गया है. इतिहासकार मानते हैं कि कम से कम इस महान दलित महिला क्रांतिकारी का एक पाठ बच्चों के पाठ्यक्रम में जोड़ दिया जाए तो लोगों को जानकारी तो हो जाएगी कि वह कौन थीं. शिया पीजी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर अमित राय ने बताया कि ऊदा देवी ने अकेले 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा था.
सौजन्य : News18
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