दलित के हाथ का बना खाना खाने से छात्रों ने किया इनकार, अधिकारी बोले- कोई जातिगत भेदभाव नहीं
गुजरात के मोरबी जिले के एक गांव में प्राथमिक विद्यालय में मिड-डे मील का खाना ओबीसी समुदाय के छात्रों ने नहीं खाया क्योंकि यह दलित द्वारा बनाया गया था। इस घटना के सामने आने के बाद शिक्षा और राजस्व विभाग के अधिकारियों ने छात्रों के अभिभावकों के साथ बैठक की।
मोरबी जिले के प्रभारी जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी (डीपीईओ) भारत विद्या ने कहा, “जिला कलेक्टर ने एक डिप्टी मामलातदार भेजा था। टीम ने मिड डे मील ठेकेदार की उपस्थिति में शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बैठक की और एक रिपोर्ट जमा की है।” जांच समिति के एक सदस्य ने कहा कि स्कूल में करीब 153 छात्र हैं और उनमें से 138 गुरुवार को मौजूद थे। जांच टीम के सदस्य ने कहा, “बच्चे अपना लंचबॉक्स ले जाते हैं और स्कूल में दोपहर का भोजन खाने के बजाय घर का बना खाना पसंद करते हैं।”
भारत विद्जा ने कहा कि टीम और शिक्षकों ने माता-पिता को अपने बच्चों को सरकार द्वारा परोसे जाने वाले भोजन को खाने के लिए मनाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि जांच समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यह जातिगत पूर्वाग्रह का मुद्दा नहीं है। यह सिर्फ इतना है कि बच्चे स्कूल में मिड डे मील का भोजन नहीं करने का विकल्प चुन रहे हैं।
जांच टीम के सदस्य ने कहा, “मिड डे मील सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों को पौष्टिक भोजन देकर बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने की एक सरकारी योजना है। हालांकि एक छात्र के लिए स्कूल में परोसा गया खाना खाना अनिवार्य नहीं है। स्कूल के शिक्षक और मिड डे मील ठेकेदार की उपस्थिति में अभिभावकों के साथ बैठक में हमने पूछा कि क्या उन्हें भोजन की गुणवत्ता और मात्रा के बारे में कोई शिकायत है, सबने न कहा।”
मिड डे मील के दलित ठेकेदार के पति ने कहा, “गर्मी की छुट्टी के बाद जब स्कूल फिर से खुला, तो प्रिंसिपल ने मेरी पत्नी को 100 छात्रों के लिए खाना बनाने के लिए कहा। लेकिन अनुसूचित जाति के केवल सात छात्र ही भोजन के लिए पहुंचे। दूसरे दिन प्रिंसिपल ने 50 छात्रों के लिए खाना बनाने को कहा, लेकिन सिर्फ दलित छात्रों ने ही खाया।”
वहीं गांव के सरपंच ने कहा, “एक दलित को स्कूल में पहली बार ठेका दिया गया है और ठेकेदार के पति का दावा है कि बच्चे खाना नहीं खा रहे हैं क्योंकि यह दलितों द्वारा पकाया जाता है। लेकिन मामला यह नहीं है। मैंने इस मुद्दे पर ग्रामीणों के साथ बैठक की है और उनसे अपील की है कि वे अपने बच्चों को स्कूल का खाना खाने के लिए मनाएं।”
सौजन्य : Jansatta
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