चुनौतियों में पले और समाज के सामने छोड़ गए चुनौतियां, लमही में रचे 15 प्रसिद्ध उपन्यास
किस्से कहानियां, उपन्यास की दुनिया में अमर किरदार हैं मुंशी प्रेमचंद…।
सदी बीत गई, आज भी उनकी कहानियां, उपन्यास की तासीर जस की तस है।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद चुनौतियों में पैदा हुए, चुनौतियों में पले और वर्तमान में सभी के सामने चुनौतियां छोड़ गए हैं। आज भी पूस की रात, गोदान, ईदगाह और गबन की कहानियां हर किसी के मन को बरबस ही छू जाती हैं और यथार्थ के धरातल से रूबरू कराती हैं।
वाराणसी के लमही गांव में ही कथा सम्राट ने 15 से अधिक उपन्यासों की रचना की और कालजयी हो गए। खुद पर भी जो बीती उसको भी साफगोई से शब्दों से साकार किया। काशी विद्यापीठ के हिंदी विभाग के प्रो. श्रद्धानंद ने बताया कि भोजपुरी की कहावत हे तेतरी बिटिया राज रजावे, तेतरा बेटवा भीख मंगावे…। मुंशी प्रेमचंद जब पैदा हुए तो रुढ़ियां पूरी तरह से समाज पर हावी थीं।
किसान, दलित और औरतों पर लेखन रहा केंद्रित
लमही गांव में 31 अक्तूबर 1880 में उनका जन्म हुआ था। रुढ़ियों की चुनौती के बीच उन्होंने होश संभाला तो अंग्रेजों के शासनकाल से उनका सामना हुआ। साहित्यकार अपने देशकाल से प्रभावित होता है। उन्होंने अपने लेखनी से समाज के दर्द को शब्दों में पिरोया। भारतीय समाज में सर्वाधिक शोषित तीन तबकों किसान, दलित और औरतों पर अपने लेखन को केंद्रित किया।
अपनी लेखनी से समाज के सामने चुनौतियां छोड़कर चले गए। लमही में ही उन्होंने 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियों की रचना की। हर वर्ग की सच्चाई काले अक्षरों में दुनिया के सामने पेश की। इसके अलावा तीन नाटक, 10 पुस्तकों का अनुवाद, सात बाल साहित्य और न जाने कितने लेख इस बात की गवाही देते हैं कि उस समय अंधविश्वास कितना चरम पर था।
उनके साहित्य में गरीबी को बिल्कुल ठंडे दिमाग से झेलने की क्षमता भी है। सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को झेलते हुए उन्होंने दैनिक जीवन की तमाम दुश्वारियों को अपनी लेखनी से कहानियों में ढाल दिया।
हर शोषित व उपेक्षित के साथ खड़े होते हैं मुंशी प्रेमचंद
वरिष्ठ साहित्यकार व भोजपुरी अध्ययन केंद्र बीएचयू के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद दुख के अहसास के रचनाकार हैं जो उन्हें गहरी सामाजिकता से जोड़ता है। उनका दुख निम्न वर्गीय दुख है जहां वे हर शोषित व उपेक्षित से साथ खड़े होते हैं। उनके यहां शोषण के बहुआयामी तंत्र के ताकत का दुख है जो प्रसरणशील है।
वह शनिवार को पुलिया प्रसंग संस्था द्वारा प्रेमचंद की 142वीं जयंती की पूर्व संध्या पर आईआईटी बीएचयू चौराहे पर प्रेमचंद का दुख विषय पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे। बीएचयू के भौतिक विभाग में आचार्य प्रो. देवेंद्र मिश्र ने कहा कि साहित्यानुरागी व्यक्ति निडर होता है, इसके ज्वलंत उदाहरण हैं प्रेमचंद।
युवा आलोचक डॉ. विंध्याचल यादव ने कहा कि प्रेमचंद का सारा साहित्य भूख के लहराते सागर से सना हुआ दिखाई पड़ता है। काशी के अस्सी की प्रतिनिधि आवाज कवि डॉ. शैलेंद्र सिंह ने कहा कि प्रेमचंद की प्रखर और सजग पत्रकारिता भी उनके दुख को व्यंजित करती है। इस अवसर पर शोधार्थी उमेश गोस्वामी, अक्षत पांडेय, अमित कुमार, नीलेश देशमुख, शुभम चतुर्वेदी व निखिल द्विवेदी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। शोध छात्र उदय पाल ने संचालन किया तो मनकामना शुक्ल पथिक ने आभार व्यक्त किया।
सौजन्य : Amarujala
नोट : यह समाचार मूलरूप से .amarujala.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !