दीवार में दरार
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक साथ घटी कई घटनाओं से अंदरूनी गुटबाजी के संकेत साफ दिख रहे हैं। पहले पीडब्लूडी विभाग के तबादलों में भ्रष्टाचार की बात मुख्यमंत्री सचिवालय के स्तर से ही बाहर आई। कई बड़े इंजीनियरों के तबादले हुए। मंत्री जितिन प्रसाद के ओएसडी पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते हुए उन्हें हटा दिया गया। पर मंत्री के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई।
कौन नहीं जानता कि विभाग में बड़े अफसरों के तबादले ओएसडी नहीं करता। विभाग के प्रमुख सचिव और मंत्री दोनों की मंजूरी जरूरी होती है। तो क्या मंत्री जितिन प्रसाद इतने नादान थे कि उनके मातहत इस स्तर का भ्रष्टाचार करते रहे। या फिर उनकी भी कोई मिलीभगत थी।
जितिन प्रसाद ने खुद कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई। पर, लखनऊ से दिल्ली जाकर आलाकमान को अपनी पीड़ा सुनाई कि कैसे मुख्यमंत्री के नजदीकी कुछ अफसरों की लाबी मंत्रियों के खिलाफ साजिश कर सत्ता का केंद्रीकरण कर रही है।
शिकायत उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को भी अपने स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद से कम नहीं। उनके खिलाफ तो पीएमओ तक शिकायत हुई है। दूसरे उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शुरू से ही पटरी नहीं बैठ पाई। उनका एक दर्द यह भी है कि उनकी सूबेदारी में 2017 में पार्टी को सूबे में सत्ता मिली थी।
लिहाजा मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें मिलनी चाहिए थी। विधानसभा चुनाव से पहले उनकी बगावत को रोकने के लिए आरएसएस और भाजपा दोनों के शिखर नेतृत्व को मशक्कत करनी पड़ी थी। मुख्यमंत्री की चर्चा किए बिना वे भी आए दिन नौकरशाहों को मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के प्रोटोकाल की नसीहत देते हैं।
असंतोष औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल नंदी ने भी नोएडा प्राधिकरण को लेकर जताया है। यह प्राधिकरण मुख्यमंत्री के अधीन है। इसी तरह दलित मंत्री दिनेश खटीक ने गृहमंत्री अमित शाह को इस्तीफा भेजकर न केवल राज्यमंत्री की कोई औकात न होने की पीड़ा जताई बल्कि खुद के दलित होने को भी अपनी अनदेखी होने की वजह बताया।
योगी खेमा सफाई दे रहा है कि भ्रष्टाचार की छूट नहीं मिलने से मंत्री बौखला रहे हैं। पर मंत्रियों का दर्द यह है कि उन्हें न अधिकार हैं और न अफसर कोई भाव देते हैं। जाहिर है कि दाल में कुछ तो काला जरूर है।
तीन तिगाड़ा
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को सरकारी खजाने से बिना काम के अधिकारियों की जेब में जाने वाली बड़ी रकम का कोई रंज नहीं है। मुख्यमंत्री ने अपना मुख्य सचिव बदला तो नए मुख्य सचिव से जो तीन वरिष्ठ नौकरशाह थे उन्हें सरकार का सलाहकार लगा दिया। इन तीनों सलाहकारों को मुख्य सचिव के बराबर ही ढाई-ढाई लाख रुपए की मासिक पगार मिलती है।
सरकार ने इन सलाहकारों को कोई काम नहीं दे रखा है। इन सलाहकारों में एक तो पूर्व मुख्य सचिव राम सुभाग सिंह, उनके बाद वरिष्ठता सूची में दूसरे नंबर पर उनकी पत्नी निशा सिंह हैं जो अतिरिक्त मुख्य सचिव थीं। ये दोनों पति-पत्नी 1987 बैच के आइएएस अधिकारी हैं जबकि तीसरे सलाहकार संजय गुप्ता हैं जो 1988 बैच के आइएएस अधिकारी हैं।
कहा जा रहा है कि राम सुभाग सिंह को मुख्य सूचना आयुक्त बनाने का भरोसा दिया गया है। अगर ऐसा होता है तो उन्हें कुछ काम तो मिल जाएगा। रही निशा सिंह व संजय गुप्ता तो यह तय है कि सरकार बदली तो दिसंबर तक उनका कुछ होने वाला नहीं है।
अगर इन तीनों को कोई काम ही नहीं दिया गया तो दिसंबर तक इन तीनों की जेबों में सरकारी खजाने से वेतन के तौर पर कम से कम पचास लाख रुपए तो चले ही जाएंगे। सचिवालय में ताना मारा जा रहा है कि जिस मुख्यमंत्री के ढाई लाख के तीन हों तो उन्हें “मिशन रिपीट” दोहराने से आखिर कौन रोक सकता है।
दो सत्ता और हजार अफसाने
कांग्रेस आलाकमान के लिए हर तरफ से बुरी खबरें आ रही हैं। राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के बाद अब सोनिया गांधी से पूछताछ शुरू हुई है। गोवा विधायक दल टूट के कगार पर है। राष्ट्रपति चुनाव में कई दलों के नेताओं ने आलाकमान की अनदेखी कर क्रास वोटिंग कर दी। पंजाब में पार्टी पहले ही रसातल में चली गई।
राजस्थान में भी असंतोष और गुटबाजी खत्म नहीं हो पाई है। अब छत्तीसगढ़ में सुगबुगाहट फिर तेज हो गई है। टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल के मन कभी मिल नहीं पाए। पिछले साल गुटबाजी खुलकर सतह पर आई थी जब सिंहदेव ने आलाकमान को याद दिलाया था कि मुख्यमंत्री पद वादे के मुताबिक उन्हें मिले।
भूपेश बघेल पद भला क्यों छोड़ेंगे। अब सिंहदेव ने पंचायती राज व ग्रामीण विकास विभाग यह कहते हुए छोड़ दिया है कि उनके विभाग में मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप उन्हें पसंद नहीं। इस नाराजगी को भूपेश बघेल समर्थक विधायक मुद्दा बना रहे हैं। वे इसे सिंहदेव की अनुशासनहीनता बताते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
अब ले-देकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही पार्टी की सरकारें बची हैं। ये भी गिर गई तो देश बेशक कांग्रेस मुक्त न हो पर कांग्रेस जरूर पूरी तरह सत्ता मुक्त हो जाएगी।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)
सौजन्य : Jansatta
नोट : यह समाचार मूलरूप से jansatta.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !