राष्ट्र चिन्ह ‘अशोक स्तंभ’ का दुरुपयोग करने पर है सजा का प्रावधान, जानिए क्या कहता है कानून
देश में अशोक स्तंभ की डिजाइन को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को नए संसद की छत पर 9.5 टन के विशालकाय अशोक स्तंभ का अनावरण किया. इसकी तस्वीरें और वीडियो वायरल होने के बाद एक नया विवाद शुरू हो गया है. विवाद की वजह अशोक स्तंभ में बने शेर हैं. विपक्ष ने केंद्र सरकार पर इतिहास से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है और अशोक स्तंभ में बने शेर बदले-बदले से होने की बात कही है. अशोक स्तंभ देश का राष्ट्रीय चिन्ह है. भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1950 को अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय चिन्ह के तौर पर अपनाया था. इसे शासन, शांति और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है. इसका इस्तेमाल हर इंसान नहीं कर सकता. इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए बाकायदा कानून भी पारित किया गया है.
क्या है राष्ट्रीय चिन्ह का दुरुपयोग रोकने वाला कानून, राष्ट्रीय का इस्तेमाल करने पर क्या सजा मिल सकती है, अशोक स्तंभ का निर्माण कैसे हुआ, जानिए इन सवालों के जवाब
यह है अशोक स्तंभ से जुड़ा कानून
राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का इस्तेमाल संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति ही कर सकते हैं. जैसे- देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, न्यायपालिका और संरकारी संस्थानों के अधिकारी. संवैधानिक पद को छोड़ने यानी रिटायर होने के बाद वो व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल नहीं कर सकता.
देश में राष्ट्रीय चिन्हों को अपनी मर्जी के मुताबिक इस्तेमाल करने के मामले बढ़ने पर इसका दुरुपयोग रोकने के लिए कानून लाया गया. 2005 में इसके लिए विशेष कानून भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट लगाया गया. इसके बाद 2007 में इसमें कुछ बदलाव किए गए.
क्या होगा अगर राष्ट्रीय चिन्ह का दुरुपयोग किया तो?
भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह एक्ट कहता है, अगर कोई आम नागरिक अपनी मर्जी से अशोक स्तंभ का इस्तेमाल करता है तो उसके लिए सजा का प्रावधान है. उसे 2 वर्ष की कैद हो सकती है. इसके अलावा 5000 रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
अब तक राष्ट्रीय चिन्ह का दुरुपयोग करने के कितने मामले सामने आए?
अब तक राष्ट्रीय चिन्ह का दुरुपयोग करने के कितने मामले सामने आए? इस सवाल के जवाब में लोकसभा में कहा गया कि ऐसे मामलों में कार्रवाई तो की जाती है, लेकिन इसका कोई अलग से रिकॉर्ड नहीं रखा गया है.
क्या है अशोक स्तंभ का इतिहास?
अशोक स्तंभ का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. इसका सम्बंध मौर्य वंश के तीसरे राजा सम्राट अशोक से है. सम्राट अशोक को एक क्रूर शासक माना जाता था, लेकिन कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार को देखकर उनकी सोच बदली. इस घटना के बाद उन्होंने राजपाट त्याग दिया और बौद्ध धर्म की शरण में चले गए. इसके बाद ही अशोक स्तंभ का निर्माण हुआ.
कहा जाता है कि बौद्ध धर्म से जुड़ने के बाद सम्राट अशोक ने इस धर्म के प्रतीक के तौर पर गर्जना करने वाले शेरों की आकृति वाला स्तंभ बनवाया. इसे अशोक स्तंभ का नाम दिया गया. सम्राट अशोक ने स्तंभ के लिए शेरों को ही क्यों चुना, इसके पीछे इतिहास में तर्क दिया गया है. तर्क कहता है, भगवान बुद्ध को सिंह यानी शेर का पर्याय माना जाता है.
सौजन्य : Tv9hindi
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