तीन किमी दूर से पानी लाकर प्यास बुझा रहे हैं तीन गांव के ग्रामीण
श्योपुर। आदिवासी विकास खंड कराहल में गर्मी दिनों में हर सल पेयजल संकट गहरा जाता है। इस बार भी गर्मी शुरू होने से पहले ही पेयजल संकट की आहट सुनाई देने लगी है। जल जीवन मिशन योजना के तहत एक साल पहले नलजल योजना स्थापित कर दी गई है, लेकिन चालू अभी तक नहीं हुई है, जिस कारण लोगों के घरों में पानी पहुंच पा रहा है, ऐसी स्थिति में ग्रामीणों को 3 किमी दूर से पानी लाकर प्यास बुझानी पड़ रही है।
श्योपुर जिले के आदिवासी विकास खंड कराहल में झरेर, अजनोई गांव में पेयजल संकट गहराया हुआ है। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। ग्रामीण मजदूरी छोड़ 3 किलोमीटर दूर से पानी ला रहे हैं। जबकि गांव में पेयजल संकट दूर करने के लिए नल-जल योजना स्थापित की गई थी इस योजना को स्थापित हुए 12 महीने हो गए हैं लेकिन चालू अभी तक नहीं हुई है। पानी की समस्या के चलते झरेर के करीब 150 परिवार परेशान बने हुए हैं। खाली वर्तन लेकर ग्रामीण हैंडपंप और नदियों पर भटकते नजर आ रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, अभी मार्च महीने की शुरूआत हुई है और जलसंकट की स्थिति बनी हुई है ऐसे में आगामी मई और जून के महीने में क्या हालात होंगे।
पानी की समस्या के करण ग्रामीण कर जाते है पलायन –
गर्मी के दिनों में कराहल क्षेत्र में पेयजल संकट गहराने के कई गांव खाली हो जाते हैं। कलमी, गोरस के मारवाड़ी गायों लेकर दूसरे शहरों में चले जाते हैं। 2 से 3 महीने वहां गुजारने के बाद बारिश शुरू होने पर लौटकर आते हैं। पेयजल संकट से निपटने के लिए हर साल लाखों रुपए का बजट आता है, फिर भी पीएचई विभाग द्वारा पेयजल समस्या से निपटने के लिए कोई उपाय नहीं किए जाते, जिस वजह से यह समस्या उत्पन्ना होती है।
पानी के लिए छोड़नी पड़ रही है मजदूरी –
झरेर पातलगढ़ गांव में पेयजल संकट होने के कारण ग्रामीण मजदूरी पर नहीं जा पार रहे हैं। परिवार के चलाने के लिए इन गांव के महिला-पुरूष दोनों ही मजदूरी करते हैं। झरेर, पातलगढ़ में पेयजल संकट होने के कारण महिलाए दिनभर हैंडपंप व खेतों में लगी ट्यूबवेलों पर पानी भरती नजर आती है। अगर व मजदूरी करने भी जाते हैं तो एक व्यक्ति को तो घर पर भरने के लिए छोड़कर जाते हैं।
– जल जीवन मिशन योजना के तहत गांव में पेयजल समस्या को दूर किया जा रहा है। अगर झरेर, डाबली गांव में पानी की समस्या है तो इसको हम दिखवा लेते हैं।
बीएस आंचले, कार्यपालन यंत्री, पीएचई श्योपुर
सौजन्य : Nai dunia
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