केजरीवाल का ‘अंबेडकर मेगा शो’: दलितों की भलाई पर कथनी और करनी में फर्क
25 फरवरी से 12 मार्च तक दिल्ली सरकार दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में डॉक्टर अंबेडकर के जीवन पर आधारित संगीत गाथा के भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर रही है. इससे पहले दिल्ली सरकार ने डॉक्टर अंबेडकर के बनाए संविधान के मूल्यों से छात्रों को अवगत कराने के लिए स्कूलों में 10 महीने की संविधान की क्लास भी चलाई थी.
आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान भी दिल्ली सरकार की ओर से डॉक्टर अंबेडकर की चर्चा की जा रही है. क्या बार-बार डॉक्टर अंबेडकर का नाम लेने वाली सरकार उस समाज के बारे में भी उतनी ही धीर-गंभीर है, जिनके उत्थान, प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण के लिए डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी पूरी ताकत लगा दी?
आंकड़ों में दलितों की कितनी हमदर्द है सरकार?
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली कि कुल 1.67 करोड़ की आबादी में 28.12 लाख (16.75 प्रतिशत) लोग अनुसूचित जाति के हैं, जिनमें से केवल 82,183 लोग दिल्ली देहात या ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. दिल्ली में अनुसूचित जतियों की साक्षारता दर (78.89%) दिल्ली की औसत साक्षारता दर 86.20% से कम है, लेकिन राष्ट्रीय औसत (63.07%) से अधिक है.
दिल्ली सरकार इन अनुसूचित जातियों के विकास के लिए शेड्यूल्ड कास्ट स्पेशल कॉम्पोनेंट (scsp) के तहत उनकी आबादी के अनुपात में बजट का प्रावधान करती रही है. साल 2015-16 में सरकार ने 19,000 करोड़ रुपये के कुल आबंटन से 3470 करोड़ रुपये (18.27%) scsp के लिए आबंटित किए थे. 2019-20 में यह राशि कुल पास बजट का 19.19% था.
लेकिन, जैसा कि केंद्र और अन्य राज्यों सरकार में होता है, scsp का अधिकांश पैसा उन स्कीमों या कार्यक्रमों के अंतर्गत आबंटित किया गया है, जिनका अनुसूचित जातियों को सीधा फायदा शायद ही पहुंचता है. यही वजह है कि scsp में आबंटित फंड को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट में एक जनहित मामला भी विचाराधीन है.
सरकार का बजट बढ़ा, दलितों का बजट घटा
दिल्ली सरकार के दस्तावेज बताते हैं कि डॉक्टर अंबेडकर की बातें करने वाली दिल्ली सरकार अंबेडकर के समाज, अनुसूचित जातियों के विकास के मामले में काफी पिछड़ी हुई है. पिछले पांच सालों में दिल्ली सरकार के बजट और खर्च दोनों में बेतहाशा वृद्धि हुई है. साल 2017-18 में दिल्ली सरकार का बजट 48,000 करोड़ रुपये का था, जो साल 2021-22 में बढ़कर 69,000 करोड़ रुपये का हो गया.
इन पांच सालों में दिल्ली सरकार के बजट में 43.75% की वृद्धि हुई, लेकिन अनुसूचित जातियों का बजट, जो वर्ष 2017-18 में कुल बजट का 0.83% था, पिछले पांच सालों में घट कर दिल्ली के बजट का मात्र 0.68% ही रह गया.
दिल्ली सरकार द्वारा पिछले पांच सालों में अनुसूचित जाति/जनजाति/पिछड़े वर्गों को आबंटित बजट और खर्चे का ब्यौरा नीचे टेबल में दिया गया है.
ऊपर टेबल में दिये गए अनुमानित बजट, संशोधित बजट और वास्तविक खर्चों में भी भारी अंतर है. वर्ष 2020-21, 2020-21, जब दिल्ली कोरोना महामारी से त्राहि-त्राहि कर रही थी, और लाखों अनुसूचित परिवार रोज़ी-रोटी, शिक्षा और स्वास्थ्य के गहन संकट से गुजर रहे थे, दिल्ली सरकार अनुसूचित जातियों के लिए आबंटित बजट का केवल 17.98% ही खर्च कर पाई.
यह अकेला आंकड़ा इस बात का प्रमाण है कि दिल्ली सरकार को सोचना चाहिए कि वह कौन से कारण हैं जिनकी वजह से वह साधनों के बावजूद अनुसूचित जातियों/जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के नागरिकों की सहायता नहीं कर पाई या नहीं कर पा रही है.
सौजन्य : The quint
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