कौन थी उन्नाव की दलित लड़की जिसे मारकर आश्रम के पीछे गाड़ दिया गया?
सिलाई मशीन पर बेतरतीब पड़े कपड़े, कोने में रखा ख़ामोश स्पीकर, दुपट्टे से बंधा छत से लटका पुराना पाइप जिसे कपड़े रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था और आधी खुली खिड़की जिससे बाहर झांका जाए तो ग़रीबी और बेबसी के सिवा कुछ और ना दिखाई दे.
ये 22 साल की अर्चना गौतम (पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिया गया है) की दुनिया थी जहां वो सरकारी नौकरी कर अपने परिवार को आर्थिक मुसीबतों से बाहर निकालने का ख़्वाब देखती थी.
वो शिक्षक भर्ती का इम्तेहान देना चाहती थी. पुलिस भर्ती में अपनी क़िस्मत आज़माना चाहती थी और कुछ ना हुआ तो होमगार्ड बनकर ही संतोष कर लेना चाहती थी.
उन्नाव की एक कॉलोनी के जिस एक कमरे के सरकार से मिले फ्लैट में आराधना अपने पांच लोगों के परिवार के साथ रहती थी वो उसके ख़्वाबों को पूरा करने के लिए छोटा था.
पड़ोस के खाली पड़े जर्जर फ्लैट को उसने अपना जिम, अपनी वर्कशॉप और अपने ख़्वाबों को पूरा करने का ठिकाना बना लिया था. वो यहां कसरत करती, कुछ पैसे कमाने के लिए बच्चियों को सिलाई सिखाती.पड़ोस की बच्चियों के लिए वो मॉडल थी और मां के लिए हालात बेहतर होने की उम्मीद. उसके मोबाइल फ़ोन में इंस्टाग्राम रील और टिकटॉक शॉर्ट्स जैसे वीडियो थे, जिन्हें शायद ही कभी उसी ने पोस्ट किया था.
उसकी मोबाइल की गैलरी में सेव तस्वीरों और वास्तविक ज़िंदगी में बहुत बड़ा फ़ासला दिखता था.
लेकिन हालात अर्चना गौतम के ख़िलाफ़ थे. जूता फ़ैक्ट्री में मज़दूरी करने वाले पिता की आमदनी काम न मिलने से कम हुई तो परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी उस पर आ गई. वो घर की सबसे बड़ी बेटी जो थी. उसे न चाहते हुए भी कपड़ों की एक दुकान पर पांच हज़ार रुपये महीना की नौकरी करनी पड़ी थी.
अर्चना की मां गीता (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “दुकान मालिक की उस पर बुरी नीयत थी. वो इसे भांप गई थी लेकिन घर में भुखमरी के हालात थे. एक दिन वो काम से लौटी तो बहुत गुमसुम थी. उसके साथ बलात्कार हुआ था. उसने मुझे बताया, लेकिन मैं पुलिस से शिकायत करने की हिम्मत ना जुटा सकी.”
ये कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन से कुछ दिनों पहले की बात है. गीता कहती हैं, “मैंने बेटी का काम छुड़ा दिया और उससे कहा कि मैं घरों में चूल्हा-बर्तन करके ख़र्च चला लूंगी लेकिन तुम परेशान ना हो.”
लेकिन दुकान मालिक ने अर्चना का पीछा नहीं छोड़ा. गीता कहती हैं, “वो बार-बार उसे फ़ोन करके धमकी देते, पैसों का लालच देते और अपने पास आने के लिए कहते. वो नंबर बदलती तो नए नंबर पर फ़ोन करते. बहुत परेशान होकर वो लखनऊ रहने चली गई और वहीं परीक्षा की तैयारी करने लगी.”
ये दुकान मालिक पूर्ववर्ती सरकार में राज्यमंत्री रहे दिवंगत फ़तेह बहादुर सिंह के बेटे राजौल सिंह हैं जिनका रसूख और ख़ौफ़ ऐसा था कि गीता पुलिस में शिकायत देने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं. बहुत हिम्मत करके वो कॉलोनी के पास ही स्थित पुलिस चौकी गईं लेकिन उनका कहना है कि उनकी फ़रियाद को अनसुना कर दिया गया.
गीता कहती हैं, “राजौल का हौसला बढ़ता गया और वो बेटी को परेशान करता रहा. 7 दिसंबर को वो लखनऊ से लौटी थी और 8 दिसंबर को सुबह 11 बजे घर से निकली और फिर वापस ज़िंदा नहीं लौटी.”
8 दिसंबर 2021 को लापता हुए अर्चना की लाश उन्नाव से क़रीब पांच किलोमीटर दूर बने एक धार्मिक आश्रम से सटे एक प्लाट में बने टॉयलेट टैंक से 11 फ़रवरी को पुलिस को मिली थी.
फ़तेह बहादुर सिंह परिवार के इस आश्रम के बाहर भगवान की बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं और भीतर कई मंदिर हैं. आश्रम के बाहर खड़े होकर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि धर्म के इस परिसर में ऐसा वीभत्स हत्याकांड हुआ होगा.
अर्चना की मौत ने उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था और पुलिस पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी रैली में अपने भाषणों में क़ानून व्यवस्था को लेकर दावे करते हैं. यूपी पुलिस भी अपराधियों को पकड़ने और उनके ठिकानों पर बुलडोज़र चलाने की बात करती है.
लेकिन अर्चना की गुमशुदगी और उसके बाद के घटनाक्रम ने राज्य की ऐसी छवि पेश की है जहां बेटियां असुरक्षित हैं और अपराधी बेख़ौफ़ हैं.
टालती रही पुलिस
अर्चना की मां गीता का आरोप है कि उन्होंने अपनी बेटी की तलाश के लिए कॉलोनी में स्थित पुलिस चौकी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के घर तक के चक्कर काटे लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी.
पुलिस ने एफ़आईआर तब दर्ज की जब वो आत्महत्या करने के इरादे से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर पहुंची और उनकी कार के आगे कूद गईं.
गीता कहती हैं, “कासगंज के सीओ और एसएसपी के दफ़्तर के बाहर रखे एंट्री रजिस्टर मेरे नाम से भरे पड़े हैं. लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनीं.”
कहां-कहां लगाई गुहार
गीता का कहना है कि 8 दिसंबर को वो और उनके पति सुरेश गौतम (बदला हुआ नाम) पुलिस चौकी गए, अपनी शिकायत में अभियुक्त राजौल सिंह का ज़िक्र किया, लेकिन उनकी शिकायत नहीं ली गई.
9 दिसंबर को वो फिर थाने गए, गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही. लेकिन रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई.
10 दिसंबर को वो फिर थाने गए. उनकी बेटी की गुमशुदगी की एफ़आईआर तो दर्ज कर ली गई लेकिन शिकायत में नामित अभियुक्त राजौल सिंह का नाम नहीं लिखा गया.
अपनी बेटी की तलाश में गीता ने दर्जनों बार थाने, सीओ दफ़्तर और एसएसपी दफ़्तर के चक्कर काटे, लेकिन मुख्य अभियुक्त से पूछताछ तक नहीं की गई.
गीता कहती हैं, “हम उन्नाव के भाजपा नेताओं से भी मिले लेकिन किसी ने हमारी मदद नहीं की. एक विधायक ने हमारी मदद के लिए थाने में फ़ोन किया लेकिन कोई असर नहीं हुआ.”
इस दौरान अर्चना के परिजनों ने कई बार उत्तर प्रदेश सरकार के जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई, लेकिन उनका कहना है कि इस पर भी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई.
हताश होकर गीता और उनके पति लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास पहुंचे और आत्मदाह का प्रयास किया लेकिन पुलिस ने रोक दिया. हालांकि इस बार भी कुछ नहीं हुआ.
ये परिवार इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने पहुंचा, लेकिन फनकी मुलाक़ात नहीं हो सकी.
गीता का आरोप है, “इस दौरान थाने की पुलिस हम पर ख़ामोश होने और घर बैठने का दबाव बनाती रही. हमसे कहा जाता तुम्हारी बेटी किसी के साथ भाग गई है, चुपचाप अपने घर पर बैठो.”
आख़िरकार जब 24 जनवरी को उन्होंने अखिलेश यादव की कार के आगे कूदने का प्रयास किया तब उन्नाव पुलिस हरकत में आई और देर रात राजौल सिंह को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया. इसी दिन एफ़आईआर में राजौल सिंह का नाम जोड़ा गया.
मीडिया ने भी की अनदेखी
गीता कहती हैं कि उनकी बेटी की गुमशुदगी को मीडिया ने जगह नहीं दी. कुछ अख़बारों में दो लाइन छपी और किसी ने कुछ नहीं लिखा.
वहीं अर्चना के पिता सुरेश गौतम कहते हैं, “कई बार पत्रकार आए, वीडियो बनाया लेकिन कहीं चलाया नहीं. हम दर-दर भटक रहे थे लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी.”
वो कहते हैं, “दलित टाइम्स वेबसाइट ने हमारे बारे में लिखा. कुश अंबेडकरवादी हमसे मिलने आए और जोर-शोर से हमारे मुद्दे को उठाने की कोशिश की. तब जाकर मीडिया ने कहीं हमें जगह दी.”
बीबीसी से बात करते हुए दलित टाइम्स के कुश अंबेडकरवादी ने कहा, “एक दलित छात्रा लापता थी. ऊंची जाति के दबंग पर आरोप था और पुलिस अनदेखी कर रही थी. हमें पता चला तो हमने इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की.”
पुलिस पर गंभीर आरोप
सुरेश गौतम स्थानीय चौकी इंचार्ज प्रेम प्रकाश दीक्षित पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “वो शुरू से ही अभियुक्त से मिले थे. जब हम शिकायत लेकर गए थे तब उन्होंने अर्चना का मोबाइल लिया और उसकी कॉल हिस्ट्री और व्हाट्सएप चैट डिलीट कर दिए.”
सुरेश दावा करते हैं, “मैंने उसकी कॉल हिस्ट्री का स्क्रीनशॉट ले लिया था. थाने में दी शिकायत में इसका ज़िक्र किया और राजौल सिंह पर बेटी को अग़वा करने का आरोप लगाया. लेकिन पुलिस ने हमारे आरोपों की अनदेखी की.”
गीता कहती हैं, “मैं जब भी थाने या पुलिस अधिकारियों के दफ़्तर गई हर बार यही कहा गया कि तुम्हारी बेटी भाग गई है, चुपचाप घर जाओ. किसी ने मेरी बेटी को खोजने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.”
वहीं गीता के पति सुरेश गौतम कहते हैं कि लाश मिलने और सच सामने आ जाने के बाद भी पुलिसकर्मियों पर कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई है.
वो कहते हैं, “हम ये मानते हैं कि हमारी बेटी के अपहरण और हत्या की साज़िश में स्थानीय पुलिस कर्माचरी भी शामिल है. उनका नाम मुक़दमे में दर्ज होना चाहिए. जब तक लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों का नाम मुक़दमे में नहीं जुड़ेगा हम संघर्ष करते रहेंगे.”
पुलिस पर लग रहे आरोपों पर उन्नाव पुलिस का पक्ष जानने के लिए बीबीसी ने वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक से बात करने का प्रयास किया लेकिन ख़बर के खपने तक उनसे संपर्क नहीं हो सका.
‘तो जिंदा होती मेरी बेटी’
अर्चना के परिजनों का मानना है कि उसे अग़वा किए जाने के तुरंत बाद नहीं मारा गया होगा बल्कि वो कुछ दिन ज़िंदा रही होगी. उन्हें आशंका है कि उसके साथ रेप या गैंगरेप भी किया गहो सकता है.
गीता कहती हैं, “अभी सिर्फ़ बेटी की हत्या का मुक़दमा है लेकिन हम चाहते हैं कि बलात्कार का मुक़दमा भी दर्ज हो क्योंकि उसके साथ बलात्कार भी किया गया होगा.”
वो कहती हैं, “मैं तब अपनी बेटी के साथ हुए बलात्कार को दर्ज नहीं करा पाई थी लेकिन अब मैं बलात्कार का मुक़दमा दर्ज किए जाने की अर्ज़ी दूंगी.”
वो कहती हैं, “यदि पुलिस ने हमारी बेटी को खोजने का प्रयास किया होता तो वो शायद ज़िंदा ही मिल जाती.”
अर्चना के शव का दो बार पोस्टमार्टम किया गया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ शव 45 दिन पुराना हो सकता है. हालांकि उनके लापता होने के 65वें दिन उसकी लाश मिली थी.
पोस्टमार्टम से ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि अर्चना के साथ बलात्कार हुआ था या नहीं. उनकी स्लाइड लेकर फोरेंसिक जांच के लिए भेजी गई है और कहा जा रहा है कि इसकी रिपोर्ट आने में समय लगेगा.
वहीं जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों का मानना है कि अर्चना की हत्या अपहरण के दिन ही हो गई थी.
जांच से जुड़े एक पुलिस अधिकारी अपना नाम न ज़ाहिर करते हुए बताते हैं, “हमारे पास टेक्निकल सबूत और फोरेंसिक डेटा है जिससे साबित होता है कि अपहरण के दिन ही रात में अर्चना की हत्या कर दी गई थी.”
पुलिस अधिकारी के मुताबिक़, “गिरफ़्तार अभियुक्तों राजौल सिंह और सूरज सिंह ने क़बूल किया है कि उन्होंने 8 दिसंबर की रात को ही अर्चना की हत्या कर दी थी.”
पुलिस बोली- आसान नहीं था मामला
अर्चना जब अपने घर से गई थी तो वो साथ में अपना मोबाइल फ़ोन लेकर नहीं गई थी. 24 जनवरी के घटनाक्रम से पहले उन्नाव पुलिस ने न तो अर्चना की खोजबीन के लिए कोई प्रयास किया, और ना ही शिकायत में नामित अभियुक्त को हिरासत में लिया.
24 जनवरी के घटनाक्रम के बाद रात में ही राजौल सिंह को हिरासत में लेकर अगले दिन जेल भेज दिया गया था. 25 जनवरी को जांच उन्नाव पुलिस की एसओजी (स्पेशल ऑपरशन ग्रुप) टीम को दे दी गई थी और फिर 28 जनवरी को इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी गई थी.
एसआईटी में शामिल एक अधिकारी के मुताबिक़, “पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि मामले में कोई सुराग़ नहीं था. राजौल सिंह जिस मोबाइल फ़ोन को इस्तेमाल कर रहा था वो 8 दिसंबर को पूरा दिन उसके घर ही था. कॉल डीटेल के आधार पर कई लोगों से पूछताछ की गई लेकिन कुछ ठोस सबूत नहीं मिला.”
राजौल सिंह की गिरफ़्तारी के बाद पुलिस पर अर्चना की तलाश बरामद करने का दबाव बढ़ रहा था. लेकिन राजौल ने पुलिस पूछताछ में अपना मुंह नहीं खोला.
जांच में शामिल पुलिस अधिकारी के मुताबिक़, “हमारी टीमों ने आगरा और लखनऊ समेत कई शहरों का दौरा किया लेकिन कहीं से कुछ भी ठोस सबूत नहीं मिल पा रहा था. फिर सीडीआर की जांच किए जाने के बाद एक नंबर से 39 सेकंड की एक कॉल मिली. इस कॉल नंबर के डेटा से हम राजौल सिंह तक पहुंचे.”
पुलिस को चकमा देने के लिए राजौल सिंह ने नए नंबर का इस्तेमाल किया था ताकि घटना के दिन उसकी लोकेशन घर पर ही दिखती रहे. लेकिन एसओजी की टीम एक कॉल से मिले सुराग से उस फ़ोन तक पहुंच गई जिसका इस्तेमाल घटना के दिन किया गया था.
गीता कहती हैं, “एसओजी प्रभारी गौरव कुमार ने हमारी बेटी को खोजने में दिन रात मेहनत की. हमारी हर बात सुनी और वो मेरी बेटी की लाश तक पहुंच गए. यदि उन्नाव पुलिस पहले ही ऐसी मेहनत करती तो मेरी बेटी ज़रूर ज़िंदा मिल जाती.”
अभियुक्त के सज़ा की मांग
अर्चना का परिवार चाहता है कि मामले की सीबीआई जांच हो और अभियुक्त को फ़ांसी दी जाए. परिजन लापरवाही करने वाले और राजौल की मदद करने वाले पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ भी मुक़दमा दर्ज करने की मांग कर रहे हैं.
उन्नाव पुलिस के एक अधिकारी के मुताबिक़ अर्चना के लापता होने के बाद राजौल सिंह कई बार संबंधित थाने गए थे. उनके मोबाइल की लोकेशन से ये पता चला है.
राजौल सिंह के संपर्क में रहे पुलिसकर्मी संदेह के घेरे में हैं लेकिन अभी तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
दिल्ली के निर्भया रेप कांड और हाथरस रेप कांड की वकील सीमा कुशवाहा ने भी पीड़ित परिवार से मुलाक़ात की है और क़ानूनी लड़ाई में मदद का भरोसा दिया है. मीडिया को दिए बयान में उन्होंने कहा है कि वो इस मुक़दमे को लड़ना चाहती हैं. हालांकि अभी उन्होंने ये केस नहीं लिया है.
सुरेश गौतम कहते हैं, “हम चाहते हैं कि सीमा कुशवाहा इस केस को लड़े और हत्या में शामिल सभी लोगों को सज़ा दिलवाएं.”
कौन है राजौल सिंह?
अभियुक्त राजौल सिंह के पिता फ़तेह बहादुर सिंह पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री थे.
एक स्थानीय पत्रकार के मुताबिक़, “राजौल सिंह का राजनीतिक रसूख़ है और वो अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते रहे हैं. उनकी छवि एक दबंग व्यक्ति की है.”
अर्चना की हत्या के बाद से ही कॉलोनी में ख़ौफ़ का माहौल है. यहां कोई भी इस मामले पर ख़ुलकर बात नहीं करता. लोग बस इतना ही कहते हैं कि इस घटना के बाद से दहशत का माहौल है.
सबा बारहवीं की छात्रा हैं और अर्चना के घर के ठीक सामने रहती हैं. वो अपने घर के बाहर छोटी-सी दुकान भी चलाती हैं.
वे कहती हैं, “हम अर्चना के साथ ही पले-बढ़े. वो ख़ूबसूरत लड़की थी और कुछ बनना चाहती थी. उसके साथ इतना बुरा हुआ कि हमें डर लग रहा है. हम यहां सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं.”
सौजन्य : bbc
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