देश के आम बजट में दलित-आदिवासियों की गई उपेक्षा
मेदिनीनगर।दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन-एनसीडीएच के राज्य समन्वयक मिथिलेश कुमार ने कहा कि देश के आम बजट में दलित आदिवासियों की घोर उपेक्षा की गई है। नीति आयोग ने दलितों के लिए बजट में 14.9 फिसदी खर्च का प्रावधान करने की अनुशंसा की थी परंतु पेश किए गए 2022-23 के बजट में दलितों के लिए के महज 4.4 प्रतिशत बजट का आवंटन किया गया है।
आदिवासी समुदायों के लिए 8.2 प्रतिशत बजटीय आवंटन प्रतिवर्ष करने की अनुसंधान की गयी है। मीडिया से बातचीत के दौरान मिथिलेश ने कहा कि बजट कटौती और कम आवंटन से दलितों व आदिवासी के विकास पर सीधा नकारात्मक असर पड़ेगा। झारखंड नरेगा वॉच राज्य समन्वयक जेम्स हेरेंज ने कहा कि देश के लिए वर्ष 2021 एक चुनौतीपूर्ण वर्ष रहा है जहां सैकड़ों नागरिकों ने अपनी जान गंवाई। देश की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली ने कोविड-19 की दूसरी लहर के आगे घुटने टेक दिये। देश ऑक्सीजन की अनुपलब्धता और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के संकट तथा अनियंत्रित होती स्थिति के बीच कराह रहा था।
दलितों और आदिवासियों के खिलाफ सुरक्षा के एकमात्र गारंटर अत्याचार निवारण अधिनियम को इसके कार्यान्वयन के लिए 600 करोड़ रुपये का आवंटन प्राप्त हुआ जो कि दलितों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ जाति-आधारित अत्याचारों के कभी न खत्म होने वाले अत्याचारों को देखते हुए अपर्याप्त राशि है। मौके पर रसोइया संघ के प्रमंडलीय प्रभारी रवींद्र भुइयां, अंबेडकर सामाजिक ट्रस्ट के सचिव गणेश रवि समेत कई छात्र नेता उपस्थित थे।
सौजन्य : Live hindustan
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