20 साल बाद भी आदिवासियों को नहीं मिला मालिकाना हक
सरकार अपने आपको आदिवासी हितैशा होने का दावा करती है, लेकिन उनके लिए करती कुछ नहीं। इसका जीता-जागता उदाहरण रामपुर तहसील के इटमा नदी तीर में देखा जा सकता है।
सतना. सरकार अपने आपको आदिवासी हितैशा होने का दिखावा तो करती है, लेकिन उनके लिए करती कुछ नहीं। इसका जीता-जागता उदाहरण मध्य प्रदेश के सतना जिले के अंतर्गत आने वाले रामपुर तहसील के इटमा नदी तीर में देखा जा सकता है। यहां की आराजी नंबर 659, 660, 661, 662 पर कई आदिवासी परिवार पिछले 20 साल से खेती कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक जमीन का पट्टा नहीं दिया गया है। जबकि, इसके लिए कई बार ज्ञापन सौंपा जा चुका है।
उक्त आराजी पर कुलपुरा व इटमा नदी तीर के आदिवासी परिवार भी काबिज हैं, लेकिन किसी को पट्टा नहीं मिला। वनभूमि की इस आराजी पर कूलपुरा के रामबिहारी कोल, दसइयां कोल, प्रेमलाल कोल, लटोरा कोल, अगनू कोल, फूलचंद कोल, पुरषोत्तम कोल व इटमा नदी तीर के राजभान कोल, सेखन कोल, रामसेवक कोल, भानू कोल वर्षों से खेती करते आ रहे हैं।
‘झूठे मुकदमे दर्ज’
विभाग पट्टा देने की वजाय वर्ष 2003 में अन्य आराजी पर कब्जा दिखाकर झूठे मुकदमे दर्ज कर दिए। 18 साल तक चले इस मामले में न्यायालय ने 27 दिसम्बर को आदिवासी परिवारों को बरी कर दिया। मुख्यमंत्री ने वर्ष 2006 से वनभूमि में काबिज आदिवासियों को पट्टा देने का ढिंढोरा पीट रहे हैं, आज तक इन्हें पटटे नहीं दिए जा सके। स्थानीय प्रशासन सकल दर्ज कर जेल भेजने का सडयंत्र रचता रहता है।
कांग्रेस की मांग
कांग्रेस प्रवक्ता अतुल सिंह ने इस संबंध में कलेक्टर से मांग की है कि, उक्त आदिवासी परिवारों को जल्द से मालिकाना हक दिया जाए। बताया जा रहा है कि, यहां रहने वाले परिवार बेहद गरीब व लाचार हैं। जमीन के अलावा गुजर बसर का अन्य कोई साधन इनके पास नहीं है।
सौजन्य : Patrika
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