सख्त कानून के बावजूद जारी है महिलाओं के खिलाफ हिंसा
Bharat Mein Apradh: 2012 में निर्भया कांड के बाद ऐसा लगा था कि महिलाओं की सुरक्षा का सवाल देश की प्रमुख चिंता बन गया है। उस समय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेएस वर्मा की अगुआई में बनी एक कमेटी ने 29 दिनों के भीतर जनवरी 2013 में 631 पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट आने के तीन महीने के भीतर अप्रैल 2013 में संसद के दोनों सदनों से पास होते हुए रेप के खिलाफ सख्त कानून भी बन गया।
भारत के लिहाज से ये ऐतिहासिक तेजी थी। लेकिन अगले साल जब फिर से एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट जारी की, तो पता चला कि औरतों के साथ हिंसा और बलात्कार की घटनाएं 13 फीसदी बढ़ चुकी थीं। उसके बाद से यह ग्राफ लगातार बढ़ता ही गया है। 2016-17 में अकेले देश की राजधानी में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में 26.4 फीसदी का इजाफा हुआ था। सात साल पहले भारत में महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा पर एक रिपोर्ट तैयार करते हुए यूएन ने लिखा था – यूं तो पूरी दुनिया में औरतें मारी जाती हैं, लेकिन भारत में सबसे ज्यादा बर्बर और क्रूर तरीके से लगातार लड़कियों को मारा जा रहा है।” दरअसल, सब कुछ करने के बाद भी भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है।
2018 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में भारत को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क बताया गया था। 193 देशों में हुए इस सर्वे में महिलाओं का स्वास्थ्य, शिक्षा, उनके साथ होने वाली यौन हिंसा, हत्या और भेदभाव जैसे कुछ पैमाने थे, जिन पर दुनिया के 193 देशों का आकलन किया गया था। भारत हर पैमाने में पीछे था। दरअसल, नारी को छोटा व दोयम दर्जा का समझने की मानसिकता भारतीय समाज की रग-रग में समा चुकी है। असल प्रश्न इसी मानसिकता को बदलने का है। अब तो अपराध को छुपाने और अपराधी से डरने की प्रवृत्ति खत्म होने लगी है। समाज और सरकार की प्रतिक्रिया भी सबके सामने है। हालात और मानसिकता सुधरने के बजाये और कठोर व बदतर होते चले जा रहे हैं।
बढ़ गए मामले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल औरतों के साथ होने वाली हिंसा में 7.3 फीसदी का इजाफा हुआ है। इतना ही इजाफा दलित महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में भी हुआ है। महिलाओं के साथ हिंसा की वारदातों में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। बिगड़ते हालात 2018 के मुकाबले 2019 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2018 में महिलाओं के खिलाफ हुए 3,78,236 अपराधों के मुकाबले 2019 में 4,05,861 अपराध दर्ज किए गए। प्रति एक लाख महिलाओं पर अपराध की दर 62.14 दर्ज की गई, जो 2018 में 58.8 प्रतिशत थी।
सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए (59,853) और असम में प्रति एक लाख महिलाओं पर सबसे ज्यादा अपराध की दर दर्ज की गई (177.8) । रोजाना 87 बलात्कार 2019 में भारत में बलात्कार के कुल 31,755 मामले दर्ज किए गए, यानी औसतन प्रतिदिन 87 मामले। सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में दर्ज किए गए (5,997)। उत्तर प्रदेश में 3,065 मामले और मध्य प्रदेश में 2,485 मामले दर्ज किए गए। प्रति एक लाख आबादी के हिसाब से बलात्कार के मामलों की दर में भी राजस्थान सबसे आगे है (15.9 प्रतिशत), लेकिन उसके बाद स्थान है केरल (11.1) और हरियाणा का (10.9)। ये हाल तब है जब केरल सबसे शिक्षित और प्रगतिशील राज्य होने का दावा करता है। दहेज संबंधी अपराध देश में दहेज से संबंधित अपराध अभी भी हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में दहेज की वजह से उत्पीड़न के कुल 2,410 मामले दर्ज किए गए और बिहार में 1,210। इसके अलावा 2019 में पूरे देश में कुल 150 एसिड अटैक के मामले दर्ज किए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए और 36 पश्चिम बंगाल में।
सौजन्य : News track
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