हर साल पलायन की त्रासदी में पिसता बचपन, 37 फीसदी झेल रहे कम वजन का दंश
श्योपुर : कुपोषण के साथ पलायन का कलंक भी हर साल श्योपुर के माथे पर लगता है। इसकी त्रासदी शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों को झेलना पड़ती है। नेशनल हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार शून्य से पांच वर्ष तक के 37 फीसदी बच्चे कम वजन का दंश झेल रहे हैं। इसकी वजह जिले के विजयपुर और कराहल विकासखंड भी हैं जहां से हर साल करीब 4 हजार 81 आदिवासी परिवार रोजगार के लिए घर छोड़ते हैं। ऐसे में आदिवासी परिवारों का पलायन जिले की अनचाही पहचान बन गया है। बावजूद इसके पलायन रोकने के लिए जनप्रतिनिधियों ने न तो कोई ठोस प्रयास किए और न ही शासन-प्रशासन ने कोई ठोस कार्ययोजना बनाई।
आदिवासी विकासखंड कराहल और विजयपुर क्षेत्र के लगभग 80 गांवों से हर साल फसल कटाई के लिए चेतुआ मजदूर के रूप में आदिवासी परिवार श्योपुर क्षेत्र के साथ ही राजस्थान की ओर पलायन करते हैं। हर साल फरवरी के अंत में इनका पलायन शुरू होता है और अप्रेल के दूसरे पखवाड़े में लौटने लगते हैं। हालांकि फसल कटाई के लिए होने वाला ये पलायन इन मजदूरों के लिए एक परंपरा सी बन गया है, लेकिन जब ये लौटते हैं तो इनके अधिकांश बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं, साथ ही अन्य बीमारियां बच्चों व मजदूरों को जकड़ लेती हैं। जिससे कुपोषण का आंकड़ा बढऩे लगता है।
खाली नजर आते हैं गांव
पलायन के चलते गांव के गांव खाली नजर आते हैं। हालांकि जनप्रतिनिधि और नेता क्षेत्र में वनोपज आधारित किसी उद्योग धंधे की वकालत करते तो नजर आते हैं, लेकिन इस दिशा में कोई प्रयास करते नहीं दिखते। यही वजह है कि रोजगार की तलाश में इन चेतुआ मजदूरों के अलावा भी क्षेत्र के सैकड़ों आदिवासी परिवार और एकल युवा भी जयपुर, अजमेर, जेसलमेर अहमदाबाद, सूरत जैसे शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं।
खून की कमी से जूझ रहे बच्चे
पलायन का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर न केवल प्रभाव डाल रहा है बल्कि उनको कमजोर करने के साथ एनीमिक बना रहा है। जिले में 6 से 59 माह के 71 फीसदी बच्चे खून की कमी से जूझ रहे हैं। यह आंकड़ा नेशनल हेल्थ सर्वे-5 का है। वहीं शून्य से पांच वर्ष तक के 37.7 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं। कम वजन के बच्चों को खोजने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग जोरआजमाइश करता है, लेकिन पलायन के चलते बच्चे कुपोषण की दहलीज पर पहुंच ही जाते हैं।
एनआरसी में भर्ती कराने में होती है परेशानी
पलायन से लौटकर आने वाले परिवार का बच्चा जब कुपोषित होता है तो उसे एनआरसी में भर्ती कराने की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास विभाग की होती है। महिला एवं बाल विकास की टीम जब बच्चे को भर्ती कराने के लिए परिजनों से कहती है तो वह उसे एनआरसी में भर्ती कराने से इनकार कर देते हैं। जैसे तैसे बच्चे को एनआरसी तक पहुंचा दिया जाता है, लेकिन परिवार के लोग बच्चे को एनआरसी से लेकर भाग जाते हैं।
फैक्ट फाइल
विजयपुर से पलायन करते हैं: 2500 परिवार
कराहल से पलायन करते हैं: 1581 परिवार
पलायन के कारण बीमारी झेलते बच्चे: 3500
जिले में 0 से 5 वर्ष तक कम वजन के बच्चे: 37 फीसदी
जिले में 6 से 59 माह के एनीमिक बच्चे: 71 फीसदी
इनका कहना है
गांव में पंचाायत के माध्यम से मिलने वाली मनरेगा मजदूरी नहीं मिलने के कारण मजबूरी में रोजगार के लिए पलायन करना पड़ता है।
घन्सू आदिवासी, निवासी कराहल क्षेत्र
वर्सन
आदिवासी परिवारों के पलायन करने के चलते काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जब परिवार वापस लौटते हैं तो बच्चों में कुपोषण के लक्षण नजर आते हैं। इनके बाहर जाने के कारण मानीटरिंग में परेशानी होती है।
राघवेन्द्र धाकड़
परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग विजयपुर
सौजन्य :Patrika
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