देश में जारी है मासिक धर्म के दौरान महिलाओं का आत्म-उत्पीड़न
समाज शास्त्रियों का कहना है कि नेपाल में जाति प्रथा भी गहरे से पैठी हुई है। नेपाल में जातीय भेदभाव आज भी उसी तरह जारी है, जैसा यह 50 साल पहले थी। इसके साथ ही लैंगिक भेदभाव प्रचलित है। ये भेदभाव मासिक धर्म के दिनों में सबसे खुल कर जाहिर होता है…
विस्तार : नेपाल में बच्चियों और महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान आम जिंदगी से बाहर कर देने की कुप्रथा बेरोक जारी है। इस दौरान उन्हें या तो घर के किसी कमरे में बंद कर दिया जाता है या फिर घर से बाहर ऐसी कोई जगह बना कर रखी जाती है, जहां उन पांच दिनों में महिलाएं रहती हैं। नेपाली समाज में ये आम धारणा है कि मासिक धर्म के दिनों में महिलाएं अपवित्र रहती हैं।
कई जातियों में यह प्रथा
अखबार काठमांडू पोस्ट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक ये कुप्रथा ज्यादातर कथित उच्च जातियों में प्रचलित है। लेकिन बहुत-सी जनजातियों और दलित समुदायों में भी इसका पालन किया जाता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक इस कुप्रथा के खिलाफ समाज में जागरूकता लाने की कोई मुहिम इस समय नहीं चल रही है। नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में जेंडर स्टडीज (लैंगिक अध्ययन) की प्रोफेसर मीरा मिश्रा ने इस अखबार से कहा- ‘जाति आधारित समाज में पितृ-सत्ता को जबरन थोपा जाता है।’
समाज शास्त्रियों का कहना है कि नेपाल में जाति प्रथा भी गहरे से पैठी हुई है। नेपाल में जातीय भेदभाव आज भी उसी तरह जारी है, जैसा यह 50 साल पहले थी। इसके साथ ही लैंगिक भेदभाव प्रचलित है। ये भेदभाव मासिक धर्म के दिनों में सबसे खुल कर जाहिर होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि मासिक धर्म के साथ पाप-पुण्य की धारणा को जोड़ दिया गया है। लोगों के मन में ये बात बैठा दी गई है कि ऐसे नियमों का पालन न करना पाप है।
अमेरिका की नॉदर्न एरिजोना यूनिवर्सिटी में नस्लीय अध्ययन विषय की लेक्चरर निकिता शर्मा ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘एक बार जब ईश्वर का भय आप में बैठ जाए, तो लोग स्वेच्छा से कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। ये बात मन में बैठा दी गई है कि जो स्त्री मासिक धर्म संबंधी वर्जनाओं का पालन नहीं करेगी, वह पाप में शामिल होगी।’ शर्मा ने कहा कि ऐसी बातों को जब महिलाएं स्वीकार कर लेती हैं, तो मासिक धर्म के दिनों वे खुद ही अपने को सबसे अलग-थलग कर लेती हैं। उस दौरान वे खुद किसी से मिलने-जुलने से इनकार कर देती हैं।
शिक्षा से नहीं पड़ा ज्यादा असर
इस रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा के प्रसार से भी सूरत ज्यादा नहीं बदली है। इसके बावजूद शिक्षा ने महिलाओं में जागरूकता लाने में एक खास भूमिका निभाई है। मीरा मिश्रा ने कहा- ‘पुरानी पीढ़ी की महिलाओं ने ये बात पूरी तरह स्वीकार कर रखी थी कि मासिक धर्म महिलाओं को अपवित्र कर देता है। लेकिन उनकी बेटियों और पोतियों के युग में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो इस सोच को चुनौती दे रही हैं।’
नेपाल में सामाजिक नजरिए को समझने के लिए 2014 और 2019 में नेपाल मल्टीपल इंडिकेटर क्लस्टर सर्वे किया गया था। उनसे सामने आया कि शिक्षित होने के बावजूद महिलाएं धार्मिक प्रथाओं का पालन करती हैं। मासिक धर्म के दौरान भी ज्यादातर महिलाएं खुद को धार्मिक स्थल, रसोई घर आदि से अलग रखती हैं। हालांकि अब पहले की तरह मासिक धर्म के दौरान घर से बाहर की किसी जगह पर रहने का चलन बदल रहा है।
सौजन्य : Amar ujala
नोट : यह समाचार मूलरूप से amarujala.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है|