CJP की मदद से असम डिटेंशन सेंटर से रिहा हुए दो भाई
सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस की टीम के लिए, असम में सभी भारतीयों के अधिकारों की रक्षा और बचाव के लिए हमारे मिशन का भी एक और महत्वपूर्ण लक्ष्य है… परिवारों को फिर से जोड़ना। इस प्रयास में हमारे पास भाइयों के बंधन को सम्मान देने की भी परंपरा है।
मार्च 2020 में, हमने गोलपारा डिटेंशन सेंटर से दो भाइयों अब्दुर रशीद और शमसुल अली हक की रिहाई को सुरक्षित कराने में मदद की। अब, हमने अन्य दो भाइयों महिरुद्दीन (40) और मैनुद्दीन (45) को तेजपुर डिटेंशन सेंटर से बाहर निकालने में मदद की है।
मैनुद्दीन ने अपनी रिहाई के बाद कहा, “मैंने सीजेपी द्वारा लोगों की मदद करने के बारे में सुना था, अब मैंने खुद इसका अनुभव किया है। मैं बहुत आभारी हूं।”
संक्षिप्त पृष्ठभूमि
ये दोनों भाई डलगांव खुटी गांव के रहने वाले हैं, जो असम के दरांग जिले के डलगांव पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में आता है। उनके दो-दो बच्चे हैं और वे अपने परिवार के लिए खाने का इंतजाम करने के लिए रिक्शा चलाते थे। लेकिन उन्हें नोटिस दिया गया और एक-दूसरे के एक साल के भीतर विदेशी घोषित कर दिया गया और उन्हें तेजपुर डिटेंशन कैंप भेज दिया गया।
सीजेपी द्वारा रिहाई कराने से पहले महिरुद्दीन ने एक साल, दस महीने और आठ दिन सलाखों के पीछे बिताए, जबकि मैनुद्दीन ने चार महीने और सात दिन सलाखों के पीछे बिताए।
सीजेपी असम राज्य टीम के प्रभारी नंदा घोष कहते हैं, “हमने अधिकारियों द्वारा प्रदान की गई बंदियों की सूची में उनके नाम पाए, और उनकी पत्नियों द्वारा परिवार चलाने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में पता चला।”
सीजेपी के जिला वॉलंटियर मोटिवेटर (डीवीएम) जॉइनल आबेदीन कहते हैं, “दोनों महिलाओं ने एक स्थानीय कारखाने में काम किया, दोनों के परिवार अभी भी आमने-सामने रहते थे। उनके पास इतने कम पैसे थे कि वे जेल में अपने पतियों से मिलने जाने के लिए बस का किराया भी नहीं अरेंज कर सकती थीं।” जॉइनल आबेदीन 1 अगस्त, 2021 से इन दोनों भाइयों को रिहा कराने के लिए काम कर रहे हैं।
हरकत में आई सीजेपी
12 अगस्त 2021 को घोष, आबेदीन, एडवोकेट अभिजीत चौधरी, धुबरी जिला डीवीएम हबीबुल बेपारी और ड्राइवर आशिकुल अली की सीजेपी टीम दोनों भाइयों की पत्नियों के साथ तेजपुर डिटेंशन कैंप गई। वे लंबे समय के बाद अपने पतियों से मिल रही थीं और अपने साथ कुछ खाना, कपड़े और पैसे ले गई थीं।
नंदा घोष बताते हैं, “हमने पाया कि परिवार ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन यह कुछ छोटी त्रुटियों के कारण अटक गई थी। इसलिए सीजेपी ने जमानत प्रक्रिया में उनकी मदद की। अंतत: 16 नवंबर को गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें जमानत दे दी गई। लेकिन हमें जमानतदारों की व्यवस्था भी करनी थी और यह सुनिश्चित करना था कि उनके दस्तावेजों का सत्यापन और क्रम सही हो। इसमें कुछ समय लगा।”
इसके बाद, हमने सीमा पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए आवश्यक कागजी कार्रवाई शुरू की। 29 नवंबर, 2021 को घोष, आबेदीन और कानूनी टीम के सदस्य एडवोकेट सिद्दीक अली ने पुलिस अधीक्षक, दरांग (सीमा शाखा) के कार्यालय में जाकर विभिन्न औपचारिकताएं पूरी कीं। लेकिन अधिकारियों ने आवेदन को ठंडे बस्ते में डाल दिया। लेकिन 8 दिसंबर, 2021 को उन्होंने हमें यह कहते हुए बुलाया कि वे उन लोगों को डिटेंशन कैंप से लाएंगे और हमारी टीम उन्हें पुलिस स्टेशन में रिसीव कर सकती है। इसलिए, आबेदीन, दोनों की पत्नियों के साथ, भाइयों को घर वापस लाने के लिए पुलिस स्टेशन गए।
रिहा होने के बाद, महिरुद्दीन की पत्नी मुमताज ने सीजेपी के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मेरे जैसे अनपढ़ व्यक्ति के लिए जमानत के लिए आवश्यक जटिल कागजी कार्रवाई और प्रक्रिया को समझना बहुत मुश्किल है। मेरे पति को रिहा कराने में मदद करने के लिए मैं सीजेपी का शुक्रिया अदा करती हूं।”
सौजन्य :सबरंग इंडिया
नोट : यह समाचार मूलरूप से https://hindi.sabrangindia.in/article/two-brother में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है|