सही समझौता हो जाए तो SC/ST एक्ट के केस को खत्म किया जा सकता है, बोला सुप्रीम कोर्ट
एससी / एसटी अधिनियम के तहत मामलों के निर्णय पर सभी अदालतों को दिशा-निर्देश प्रदान करते हुए, बेंच ने कहा, आमतौर पर, एससी / एसटी अधिनियम जैसे विशेष कानूनों से उत्पन्न होने वाले अपराधों से निपटने के दौरान, अदालत अपने दृष्टिकोण में बेहद चौकस होगी।
हाइलाइट्स
SC ने कहा- एससी और एसटी का उत्पीड़न एक निराशाजनक वास्तविकता
कोर्ट ने बोला कि ऐसे मामलों के निपटान में अदालतों का दृष्टिकोण सजग होगा
कोर्ट ने पीड़ित और आरोपी के बीच एक उचित समझौता होने की दी तरजीह
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि सवर्णों की तरफ से एससी और एसटी का उत्पीड़न एक “निराशाजनक वास्तविकता” है। कोर्ट ने कहा कि अगर एससी-एसटी अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने से पहले पीड़ित और आरोपी के बीच एक उचित समझौता हो जाता है, तो संवैधानिक अदालतें मामले को रद्द करक सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 की सजा को रद्द किया
एक मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने दोषी और शिकायतकर्ता के बीच हुए समझौते के आधार पर एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 1994 की सजा को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह अधिनियम निराशाजनक वास्तविकता की मान्यता है कि कई उपाय करने के बावजूद, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति को उच्च जातियों के हाथों विभिन्न अत्याचारों का शिकार होना पड़ता है।
अदालत अपने दृष्टिकोण में बेहद चौकस होगी
एससी / एसटी अधिनियम पर शीर्ष अदालत की बेंच ने कहा कि आमतौर पर, एससी / एसटी अधिनियम जैसे विशेष कानूनों से उत्पन्न होने वाले अपराधों से निपटने के दौरान, अदालत अपने दृष्टिकोण में बेहद चौकस होगी। सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, “जहां अदालत को यह प्रतीत होता है कि अपराध, हालांकि एससी / एसटी अधिनियम के तहत कवर किया गया है, प्राथमिक रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है, या जहां कथित अपराध की जाति के आधार पर नहीं किया गया है। पीड़ित, या जहां कानूनी कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, अदालत कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है।
सौजन्य: नव भारत टाइम्स
नोट : यह समाचार मूलरूप से navbharattimes.indiatimes.com में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है !