मायावती के महारथियों पर अखिलेश की नजर:तीन माह में 9 बड़े चेहरों ने बदला पाला, BSP को काउंटर करने में जुटी SP
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से निकाले गए नेता लालजी वर्मा और रामअचल राजभर समाजवादी पार्टी (सपा) जॉइन करने वाले हैं। 7 नवंबर को सपा मायावती के सबसे बड़े राजनीतिक केंद्र अंबेडकरनगर में बड़ी जनसभा करने वाली है। दोनों नेता उसी जनसभा में सपा का दामन थामेंगे।
बसपा नेताओं का समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ने का सिलसिला 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से शुरु हुआ। तब सपा-बसपा गठबंधन टूटा था। ये सिलसिला अब भी जारी है। पिछले दो माह में 9 बड़े चेहरे बसपा का साथ छोड़ गए। तीन सालों में तो कई बड़े और कद्दावर चेहरे बसपा को छोड़ सपा में शामिल हो चुके हैं। इसे समाजवादी पार्टी का BSP को काउंटर करने की रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है।
अंबेडकरनगर (अकबरपुर) वही जिला है, जहां से मायावती मायावती तीन बार 1998, 1999 और 2004 में चुनाव जीतकर सांसद बनी थीं। यहां 2009 और 2019 में भी बसपा उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। इससे जाहिर होता है कि अंबेडकरनगर बसपा का एक बड़ा राजनीतिक केंद्र है।
जानिए कौन-कौन नेता साथ छोड़ गए
30 अगस्त को पूर्वांचल की सियासत में खासा प्रभाव रखने वाले बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी अपने समर्थकों के साथ सपा में शामिल हो गए। उनके साथ बसपा नेता अंबिका चौधरी ने भी सपा में घर वापसी कर ली है। इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के बेहद करीबी वीर सिंह ने 3 अक्टूबर को पार्टी छोड़ सपा का दामन थामा।
कुछ दिनों पहले ही एटा लोकसभा से बसपा के पूर्व प्रत्याशी इंजीनियर नूर मोहम्मद ने सपा की सदस्यता ले ली। इसके अलावा पूर्व सांसद यशवीर सिंह और पूर्व विधायक शेख सुलेमान भी सपा में आ गए। अखिलेश यादव की उपस्थिति में इन नेताओं को सपा की सदस्यता दी गई।
कुशीनगर के बसपा नेता हरिशंकर राजभर और राजेंद्र उर्फ मुन्ना यादव भी बसपा छोड़कर सपा में आ गए। जुलाई महीने में दो बार विधायक रहे डॉ. धर्मपाल सिंह ने साइकिल की सवारी कर ली है। वहीं, बसपा में कभी वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले कुंवरचंद वकील भी सपा में शामिल हो गए।
दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद में सपा
बसपा के नेताओं को तोड़ते हुए सपा दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की मुहिम में जुटी है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद अचानक सपा से गठबंधन तोड़ने के मायावती के फैसले से खफा अखिलेश यादव बदला लेने के लिए बसपा को कमजोर करने में जुटे हैं।
अखिलेश की बसपा को कमजोर करने की मुहिम के चलते ही सोशल इंजीनियरिंग के मंत्र से कभी सत्ता के शिखर तक पहुंची बसपा के महारथी लगातार पार्टी छोड़ सपा का दामन थाम रहे हैं। फिलहाल बसपा अपने दिग्गजों को सपा में जाने से रोक नहीं पा रही है।
बसपा के वोट बैंक पर है सपा की नजर
दूसरी तरफ बसपा के दलित वोटबैंक को रिझाने के लिए अखिलेश यादव ने बाबा साहब वाहिनी विंग का गठन किया है। अखिलेश ने इस विंग का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती को बनाया है। बसपा से सपा में आए दलित नेताओं के सुझाव पर यह वाहिनी बनाई गई है, जिसका उद्देश्य दलित वोटर्स को सपा से जोड़ने का है।
मिठाई लाल भारती कुछ समय पहले बसपा छोड़ कर सपा में शामिल हुए थे। बलिया के रहने वाले मिठाई लाल भारती बसपा के पूर्वांचल जोनल के कोआर्डिनेटर भी रहे चुके हैं। सपा नेताओं का मत है कि बसपा नेताओं का सपा की तरफ लगातार रुझान बढ़ रहा है।
2007 की बसपा सरकार के बड़े चेहरे भी छोड़ चुके है माया का साथ
सोशल इंजीनियरिंग के सहारे 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई बसपा सरकार में जिन दिग्गजों को मंत्री बनाया गया था उनमें आज नाम मात्र के ही नेता बचे हैं। उस समय स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, चौधरी लक्ष्मी नारायण, लालजी वर्मा, नकुल दुबे, रामवीर उपाध्याय, ठाकुर जयवीर सिंह, बाबू सिंह कुशवाहा, फागू चौहान, दद्दू प्रसाद, वेदराम भाटी, सुधीर गोयल, धर्म सिंह सैनी, इंद्रजीत सरोज, राम अचल राजभर, राकेश धर त्रिपाठी और राम प्रसाद चौधरी को महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गए थे। इनमें से अब नकुल दुबे जैसे नेता ही बसपा में बचे हैं।
गैर जाटव दलितों के बड़े चेहरों को जोड़ रहें है अखिलेश
यूपी में जाटव के अलावा अन्य जो उपजातियां हैं। उनकी संख्या 45-46 प्रतिशत के करीब है। इनमें पासी 16 प्रतिशत, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 प्रतिशत और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 प्रतिशत हैं। कुल मिलाकर पूरे उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिले हैं, जहां दलितों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है। इन्हीं जिलों में बसपा से जुड़े नेताओं को पार्टी में लाकर बसपा को कमजोर करने का लक्ष्य अखिलेश यादव ने तय किया है। 2017 में चुनाव जीते बसपा के 19 विधायकों में से अब सिर्फ छह विधायक ही बसपा में रह गए हैं।
साभार : दैनिक भास्कर
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