शिवपुरीः कुपोषण और व्यवस्थाओं से जंग हारी लक्ष्मी, ग्वालियर में इलाज के दौरान मौत
शिवपुरी : कुपोषण खत्म करने के लिए सरकार कितने भी नारे बुलंद कर ले, योजनाओं का ढे?र लगा दे, लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी ग्रामीण अंचल में कुपोषण बच्चों की जान ले रहा है। शनिवार को कोलारस में सामने आए कुपोषण के मामले में एक साल की लक्ष्मी ने व्यवस्थाओं से जंग हारकर अपनी जान गंवा दी।
शनिवार को कोलारस के चंद्रभान आदिवासी अपनी एक साल की बच्ची लक्ष्मी को लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे। यहां से बच्ची को शिवपुरी रैफर कर दिया गया और रविवार को उसे शिवपुरी से ग्वालियर रैफर कर दिया गया। आखिर में ग्वालियर में लक्ष्मी में दम तोड़ दिया। एक साल की लक्ष्मी का वजन महज ढ़ाई किलो था। शरीर इतना कमजोर था कि हड्डियां गिन सकते थे। शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि वह ठीक से बैठ भी पाए। चंद्रभान ने रविवार को कोलारस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सकों पर ठीक से इलाज न करने के आरोप भी लगाए थे। उसका कहना था कि तीन दिन से चक्कर लगाने के बाद भी इलाज नहीं मिल पाया। यदि चंद्रभान के लगाए आरोप सही हैं तो लक्ष्मी की मौत के लिए कुपोषण के साथ अव्यवस्थाएं भी जिम्मेदार होंगी। यदि बच्ची को समय पर इलाज मिल पाता तो शायद वह बच जाती। लक्ष्मी के भाई कान्हा भी कुपोषण का शिकार है और सोमवार को उसे भी एनआरसी में भर्ती कराया गया है।
शुरू में झांड़फूंक में उलझे माता-पिता
लक्ष्मी के माता-पिता कोलारस के वार्ड क्रमांक 3 में कच्ची टपरिया बनाकर रहते हैं। वह महुरानीपुर में मजदूरी कार्य करने के लिए गए थे और 10-12 दिन पूर्व ही कोलारस वापस लौटे थे। पांच दिन पहले ही उनकी बालिका लक्ष्मी और बालक कान्हा की तबियत खराब हुई जिन्हें लेकर वह तांत्रिक और ओझाओं के चक्कर में झाडफ़ूंक कराते रहे। लेकिन हालत में सुधार न हो पाने के बाद बालिका लक्ष्मी को कोलारस स्वास्थ्य केन्द्र में भर्ती कराया गया और फिर यहां से बच्ची के एक से दूसरी जगह रैफर होने का सिलसिला चलता रहा। सोमवार को डीपीओ देवेंद्र सुंदरियाल परियोजना अधिकारी एवं कार्यकर्ता के साथ कोलारस वार्ड क्रमांक 3 पहुंचे एवं चन्द्रभान आदिवासी को समझा बुझाकर उनके दूसरे बच्चे कान्हा को एनआरसी में भर्ती कराने हेतु राजी किया। परिवार को जिला प्रशासन द्वारा पांच हजार रूपए की आर्थिक सहायता राशि प्रदान की गई है।
पिछले साल मिले 2600 कुपोषित बच्चे, सरकारी योजनाएं हो रहीं फेल
कुपोषण से बचाने के लिए कई योजनाएं हैं, लेकिन इस तरह के मामले सामने आने पर सभी की पोल खुल जाता है। आदिवासी समुदाय में एक परिवार में बच्चों की संख्या 5 से 6 होती है। इसके कारण बाद में होने वाले बच्चों में कुपोषण होता है। यहां शासन की परिवार नियोजन योजना की पोल खुल जाती है। इस समुदाय में कुपोषण का मुख्य कारण इनका माइग्रेशन भी है। जिले के अधिकांश आदिवासी मजदूरी के लिए ुमुरैना के साथ उत्तरप्रदेश के जिलों में जाते हैं। इसके बाद प्रशासन की पहुंच से दूर हो जाते हैं। इनकी कोई ट्रैकिंग नहीं होती है। जब यह लौटते हैं तो बच्चों में कुपोषण संबंधी परेशानी बढ़ जाती है। पिछले साल ही जिले में 2600 बच्चों में कुपोषण पाया गया था। इसनें से 2 हजार को सामान्य की श्रेणी में लाया जा सका था। अभी भी जिले में सैकड़ों बच्चे कुपोषण से और उनके अभिभावक व्यवस्थाओं से लड़ाई लड़ रहे हैं।
इनका कहना है
इस मामले में हमने जांच कमेटी बना दी है जिसके प्रमुख डॉ. संजय ऋषिश्वर होंगे। यह कमेटी तीन दिन में अपनी रिपोर्ट देगी और इस रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करेंगे।
– डॉ. पवन जैन, सीएमएचओ
साभार : नई दुनिया
नोट : यह समाचार मूलरूप से https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/shivpuri-shivpuri-kuposhan-7088969l में प्रकाशित हुआ है. मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है|