जोश और गुस्से से लबरेज किसानों ने यूपी के बाद करनाल में दिखाया ‘दम’, मिनी सचिवालय पर ताना तंबू
जोश और गुस्से से लबरेज किसानों ने यूपी के बाद करनाल में एकजुटता का ‘दम’ दिखाया है। मिनी सचिवालय पर तंबू तान किसानों ने ”सिर फोड़ने” का आदेश देने वाले अफसर पर कार्रवाई की मांग को लेकर बेमियादी धरना शुरू कर दिया है। इससे पूर्व कड़ी सुरक्षा के बावजूद किसान मिनी सचिवालय परिसर को घेरने में कामयाब रहे। दो दौर की वार्ता विफल होने पर बुधवार को किसानों ने लड़ाई लंबी चलने की संभावनाओं के चलते सचिवालय के बाहर पक्के पंडाल लगाते हुए, लंगर चालू कर दिए हैं। खास है कि करनाल में किसान नेताओं और पुलिस-प्रशासनिक अफसरों के बीच बुधवार को सवा 3 घंटे चली दूसरे दौर की बातचीत भी नाकाम हो गई थी। उधर, जिले में गुरुवार को भी करनाल में इंटरनेट सेवाएं बंद रहेंगी। हालांकि जींद आदि 4 जिलों में बुधवार आधी रात के बाद इंटरनेट सेवाएं बहाल कर दी गई हैं।
28 अगस्त को हुए बसताड़ा टोल प्लाजा पर हुए पुलिस लाठीचार्ज और करनाल एसडीएम के ”सिर फोड़ने” वाले बयान के विरोध में मंगलवार को किसानों ने महापंचायत की और करनाल में हुए पुलिस लाठीचार्ज को लेकर कार्रवाई की मांग की थी। ऐसा नहीं होने पर उन्होंने मिनी सचिवालय का घेराव करने की धमकी दी थी। मंगलवार को प्रशासन से वार्ता फेल हो जाने के बाद हजारों की संख्या में किसानों ने जिला सचिवालय परिसर की ओर मार्च किया था। पुलिस ने उन्हें रोकने को पानी की बौछार की। लेकिन किसानों के जोश और गुस्से के आगे पुलिस प्रशासन की तैयारियां फीकी नजर आईं। किसान मिनी सचिवालय न पहुंच सकें, इसके लिए प्रशासन ने बीएसएफ आदि केंद्रीय बलों की 40 कंपनियों को लगाया था। यही नहीं, करनाल व आसपास के ज़िलों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने की अवधि को बुधवार आधी रात तक के लिए बढा दिया गया था। इससे पहले यह सेवाएं करनाल के अलावा कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद व पानीपत में मंगलवार आधी रात तक के लिए निलंबित की गई थीं।
हालांकि किसानों की भारी संख्या और उनके जोश और गुस्से को देखकर, प्रशासन पहले दिन से ही बैकफुट पर आ गया गया था। इसी से मंगलवार सुबह महापंचायत शुरू होने के बीच स्थानीय प्रशासन ने किसानों की मांगों पर चर्चा करने के लिए 11 नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल को बातचीत के लिए बुलाया था। करीब 3 घंटे बाद किसान नेताओं ने घोषणा की कि प्रशासन के साथ उनकी बातचीत नाकाम हो गयी है। इसके बाद हजारों किसानों ने सचिवालय की ओर पैदल मार्च शुरू कर दिया था व पानी की बौछार और बैरिकेडिंग आदि अवरोधों को पार करते हुए किसान, मिनी सचिवालय का घेराव करने में कामयाब रहे। किसान नेताओं ने भी सूझबूझ का परिचय देते हुए, किसानों से आह्वान किया कि वे पुलिसकर्मियों के साथ किसी भी तरह का टकराव मोल न लें और जहां भी उन्हें रोका जाए, वे विरोध में वहीं बैठ जाएं। स्वराज इंडिया के प्रमुख तथा संयुक्त किसान मोर्चा नेता योगेंद्र यादव ने बाद में कहा, ‘‘हमें मिनी सचिवालय के अंदर प्रवेश करने की जरूरत नहीं है और हमें केवल बाहर से घेराव करना है।’’ रात होने के बीच किसान नेताओं ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक घेराव जारी रहेगा।
यादव ने कहा कि मंगलवार को प्रशासन से बातचीत के दौरान किसान नेताओं ने केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (एसडीएम) के निलंबन पर जोर दिया और कोई अन्य मांग नहीं की गयी। उन्होंने कहा कि मामला सम्मान का है। प्रशासन ने अधिकारी के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग को खारिज कर दिया। अधिकारियों ने किसान नेताओं से कहा कि जांच करायी जाएगी। यादव ने एक ट्वीट में दावा किया कि राकेश टिकैत सहित मोर्चा के कई नेताओं को करनाल पुलिस ने कुछ समय के लिए हिरासत ले में लिया जब वे सचिवालय की ओर मार्च कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसानों के ‘भारी दबाव’ में उन्हें पुलिस बस से बाहर निकाला गया।
28 अगस्त को प्रदर्शन के दौरान पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज से किसान सुशील काजला की मौत हो गई थी। उसी दिन एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें तत्कालीन एसडीएम आयुष सिन्हा पुलिस वालों से यह कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि किसानों के सिर फोड़ दो। मैं देख लूँगा। उन्होंने कई बार दोहराया कि बात समझ में आ गई ना? इस वीडियो के आधार पर संयुक्त किसान मोर्चा और किसान संगठनों ने आईएएस आयुष सिन्हा पर धारा 302 के तहत केस दर्ज करने और उसे बर्खास्त करने की माँग रख दी है। उनका कहना है कि किसान सुशील काजला के परिवार को मुआवज़ा दिया जाए और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए। 10 घायल किसानों को भी 2-2 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की है।
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) नेता राकेश टिकैत ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के उस अधिकारी को निलंबित करने की मांग की थी, जिन्होंने कथित तौर पर पुलिसकर्मियों से प्रदर्शन कर रहे किसानों का ‘‘सिर फोड़ने’’ को कहा था। किसान नेता राकेश टिकैत से सवाल किया गया कि एसडीएम पर भी प्रशासन की ओर से सफाई आई है कि ऐसा बोला नहीं गया था। इसका जवाब देते हुए राकेश टिकैत ने कहा, “जी हां, सफाई आई है। सफाई देने की कोशिश करते हैं ये। कोर्ट में जब चोर भी जाता है तो वहां पर कहता है कि मैंने चोरी नहीं की है।” किसान नेता राकेश टिकैत ने आगे कहा, “वह पकड़ा जाता है, लेकिन अंत तक वह यही कहता है कि मैंने चोरी नहीं की है।” ऐसे में रिपोर्टर ने उनसे कहा कि प्रशासन का काम है उसे साबित करना। इसपर जवाब देते हुए राकेश टिकैत ने कहा, “साबित कहां से करेगा, जब प्रशासन ही एक तरफ हो रहा है। जब गवाह, कोर्ट और मुजरिम एक जगह इकट्ठा हो जाएगा तो सजा तो होगी ही नहीं।”
यही नहीं इससे पहले महापंचायत को संबोधित करते हुए योगेंद्र यादव ने कहा, ‘हम सरकार से यह सवाल करने आए हैं कि कौन संविधान, कौन कानून किसी आईएएस अधिकारी को किसानों के सिर फोड़ने का आदेश देने की अनुमति देता है… किस कानून के तहत पुलिस को बर्बर लाठीचार्ज करने की अनुमति है, जिसकी वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गयी और कई अन्य घायल हो गए।” हालांकि, अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया है कि 28 अगस्त को हुई हिंसा में किसी किसान की मौत हुई है।
हरियाणा में किसान आंदोलन को कुचलने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। एक तरह से देखा जाए तो किसानों ने अपनी सधी हुई रणनीति से हरियाणा की खट्टर सरकार को पराजित कर दिया। किसान नेताओं ने करनाल में 7 सितंबर को सिर्फ़ जिला स्तरीय प्रदर्शन की ही घोषणा की थी। लेकिन हरियाणा सरकार ने 24 घंटे पहले करनाल, जींद, पानीपत, कैथल और कुरुक्षेत्र में इंटरनेट पर पाबंदी और धारा 144 लगाकर इस आंदोलन को और हवा दे दी। हालाँकि अभी तो इसमें हरियाणा सरकार की नासमझी दिख रही है लेकिन हो सकता है कि आगे चलकर यह बात साफ़ होगी कि हरियाणा सरकार ने अचानक ही करनाल में किसानों के प्रदर्शन को इतनी हवा क्यों दे दी और बाद में घुटने टेक दिए?
खास है कि किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी जब बाक़ी नेताओं के साथ कल शाम डीसी निशांत यादव से मिलने गए तो यह आंदोलन ज़िला स्तरीय था। लेकिन ‘ऊपर’ के लोगों के इशारे पर डीसी ने जिस लहजे में किसान नेताओं से बात की, उसी से साफ़ हो गया कि सरकार आंदोलन कुचलना चाहती है। डीसी दफ़्तर से बाहर निकलने के बाद चढ़ूनी ने बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शन पाल, योगेन्द्र यादव और राकेश टिकैत को हालात की जानकारी दी। इसके बाद ये नेता भी करनाल पहुँचे। इस बीच हरियाणा के सीएम ने चंडीगढ़ में मीडिया से बात करते हुए कहा कि लोकतंत्र में सभी को प्रदर्शन का अधिकार है। करनाल में किसानों से बातचीत चल रही है, कोई न कोई रास्ता निकलेगा। हरियाणा कृषि मंत्री जेपी दलाल ने किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी पर राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने और कांग्रेस के इशारे पर काम करने के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह किसानों के खिलाफ नहीं है और वास्तव में, उनके कल्याण के लिए कई पहल की है जो किसी अन्य सरकार ने नहीं की।
उधर दिल्ली में, कांग्रेस ने भी कहा कि अगर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर प्रदर्शन कर रहे किसानों से बात नहीं कर सकते हैं तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना ‘अहंकार ‘ छोड़ देना चाहिए और उन तीन ‘काले कानूनों’ को तत्काल वापस लेना चाहिए।
सौजन्य :सबरंग
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