क्रोनी कैपिटलिज्म से फसल और नस्ल बचाने के साथ, दंगों से उपजी खाई भरने का काम करेगी किसान महापंचायत”
“आतंकी तालिबानियों से बातचीत कर सकती है @BJP4India सरकार, लेकिन पिछले 9 माह से दिल्ली #FarmersProtest पर बैठे अपने देश के किसानों से बात नहीं कर सकती !! Why ? याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष बडा भीषण होगा !!
#किसानो_मुजफ्फरनगर_चलो”
“घमंडी भाजपा किसानों की मांग नहीं मानेगी, वो किसानों को बदनाम करने, आन्दोलन को कमजोर करने, किसानों में फूट डालने में लगी है। हमें किसान आन्दोलन को हर हाल में सफल बनाना है, जन जन तक पहुंचाना है।
“5 सितंबर किसान महापंचायत चलो मुजफ्फरनगर, देश अडानी अंबानी की जागीर नही हिन्दुस्तान हमारा है”
ट्विटर पर ट्रेंड हो रहे ऐसे तमाम नारों के साथ देशभर में 5 सितंबर “किसानों मुजफ्फरनगर चलो” का आह्वान गांव-गांव गूंज रहा है। मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत मिशन यूपी-उत्तराखंड से कहीं ज्यादा “कॉरपोरेट राज से फसल (किसानी) और नस्ल (पगड़ी) बचाने के लिए अहम है। तो वहीं, मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से देश में बिगड़े सामाजिक सौहार्द को पटरी पर लौटाने में मील जा पत्थर साबित होने जा रही है। किसान नेता योगेंद्र यादव और राकेश टिकैत का कहना है कि यह समय नस्ल और फसल बचाने का है। योगेंद्र यादव ने कहा कि किसान अपने हक की आवाज बुलंद करें। योगेंद्र यादव ने कहा कि किसान आंदोलन को 9 माह हो गए हैं। सरकार के पेट में बहुत दर्द है। आंदोलन में कुछ ऐसा पैदा हुआ है कि 75 साल में पहली बार जगाने से किसान में आत्म सम्मान जाग्रत हो चुका है। साथ ही 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के चलते देश में सामाजिक सौहार्द का जो ताना बाना टूट गया था उसे फिर से बुनने के लिए किसान महापंचायत खासी अहम होगी। उन्होंने कहा कि मुजफ्फरनगर को राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए जलाया गया था, हम मुजफ्फरनगर को दोबारा जोडे़ंगे, जिसकी गवाह 5 सितंबर की महापंचायत बनेगी। जिसमें भाग लेने के लिये देश भर के किसान चल पड़े हैं।
भारत खेतों खलिहानों और गांवों का देश है तो भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। जबकि ‘क्रोनी कारपोरेट’ राज किसान, गांव, खेत खलिहान, जल जंगल जमीन, पर्यावरण सभी के खिलाफ है। तीनों कृषि कानून देश के खाद्य व प्राकृतिक संसाधनों के साथ जल, जंगल, जमीन की खुली लूट का चाकचौबंद इंतज़ाम है। खाद्य, जल और जलवायु के संकट से देश का हर नागरिक प्रभावित है। इसी से किसानों के लिए ही नहीं, हर भारतवासी के लिए किसानों की यह अभूतपूर्व लड़ाई जीने मरने की लड़ाई है। सांगवान खाप 40 के प्रधान व दादरी के निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान कहते हैं कि मुज्जफरनगर की प्रस्तावित महापंचायत, किसान आंदोलन के लिए विजय गाथा लिखने जा रही है और ये इस आंदोलन का टर्निंग प्वाइंट होगी। इसलिए सभी खापें, किसान व अन्य जनसगंठन इस महापंचायत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएं। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि आज केंद्र व राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों से हर वर्ग दुखी है और महंगाई आसमान छू रही है। आए दिन पेट्रोल, डीजल व गैस के दाम बढ़ाए जा रहे हैं। खाद्य तेलों का भाव पिछले एक वर्ष में 100 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। गरीबों का निवाला छीन कर पूंजीपतियों की जेब भरी जा रही हैं। कहा गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश में किसान के टमाटर 5 रुपये किलो भी कोई नहीं ले रहा है। टमाटर उत्पादक बर्बाद हो रहे हैं और केंद्र सरकार कोई हस्तक्षेप नही कर रही है।
इसी से आज सड़क व राजधानी में ही नहीं, हर जिले में हर गांव में किसान आंदोलन की जरूरत है। वैचारिक लड़ाई के साथ सत्ता के प्रचारतंत्र के मुकाबले की जरूरत है। किसानों के लिए नहीं, क्रोनी कारपोरेट राज के खिलाफ यह अभूतपूर्व लड़ाई हर भारतवासी के लिए जीने मरने की लड़ाई है। आम जनता और गांव किसान को आह अपने हक हकूक और आंदोलन के बारे में सही सूचना नहीं मिल रही है। ये तमाम लोग कारपोरेट सत्ता और बाज़ार के शिकंजे में हैं। इसी से यह जितनी वैचारिक और राजनीतिक लड़ाई है, उतनी ही सामाजिक लड़ाई भी है, उतनी ही सूचना की लड़ाई है। गलत सूचना व ब्रेन वाशिंग के खिलाफ वैकल्पिक मीडिया की लड़ाई है।
इसी नजरिए से देंखे तो 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में होने जा रही किसान महापंचायत यूपी व देश के सियासी समीकरण बदल सकती है। इस दिन मंच पर हिन्दू और मुस्लिम किसान एक साथ नजर आ सकते हैं जिसका सीधा लाभ विपक्ष को होगा। इससे पहले 7 सितंबर 2013 को जिले के नंगला मंदौड़ गांव में हुई ऐसी ही एक महापंचायत के बाद हुए दंगों ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ऐसी हवा बहाई थी जिसने भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान कर दी थी। दंगों की इसी हवा को भांपते हुए तब भाजपा के पीएम कैंडिडेट नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान के आगाज के लिए वेस्ट यूपी को चुना था। मोदी ने 2 फरवरी 2014 को मेरठ में विजय शंखनाद रैली में पूरे वेस्ट यूपी से भीड़ जुटाई। उस वक्त मोदी के भाषण में सबसे बड़ा मुददा मुजफ्फरनगर दंगा ही था। 2013 में कवाल में सचिन और गौरव की हत्या के बाद शाहनवाज की हत्या हुई थी। हत्या से उपजे गुस्से की आग में वेस्ट यूपी सुलग उठा था। 8 साल बाद यह वही सितंबर का महीना है। धरती भी मुजफ्फरनगर की है। बस इस बार महापंचायत की तारीख 7 नहीं बल्कि 5 सितंबर है।
अब 9 माह से दिल्ली के बॉर्डरों पर चले रहे आंदोलन में 500 से ज्यादा किसानों की मौत से उपजा गुस्सा भी किसानों के सीने में धधक रहा है। 8 साल पहले जाटों व मुसलमानों के बीच संघर्ष चरम पर था। अब फिजाओं में किसान एकता के नारे की गूंज है। तब ध्रुवीकरण को भुनाने के लिए भाजपा फ्रंट फुट पर थी अब किसानों के गुस्से की हवा में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का ख्वाब लिए विपक्षी दल एकजुट हैं। दंगे के वक्त तत्कालीन सपा सरकार जनआक्रोश को भांप नहीं सकी थी तो अबकी बार दिल्ली और यूपी की भाजपा सरकारों किसान आंदोलन को समझने में चूक करती दिखाई दे रही हैं। 9 महीने लंबे ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने किसानों को जाति एवं धर्म के आगे जाकर एकजुट होने का रास्ता दिखाया है। दंगे के वक्त चौधरी अजित सिंह पर चुप रहने के आरोप लगे तो उन्होंने 2019 में मुजफ्फरनगर से ही लोकसभा चुनाव लड़कर प्रायश्चित किया। चौ अजित सिंह पूरे चुनाव कहते रहे कि वह यहां चुनाव लड़ने नहीं, आपसी भाईचारा कायम कर भाजपा को उखाड़ने आए हैं। अजित चुनाव तो नहीं जीत पाए पर यहां किसानों के बीच सदभाव बनाने में उन्होंने जरूर बड़ी भूमिका निभाई। आपसी सद़भाव की इसी जमीन पर किसान आंदोलन की फसल को ताकत मिली है। दंगे के पहले नंगला मंदौड़ की पंचायत में भी भीड़ किसानों की थी पर मंच भाजपा नेताओं के कब्जे में था। अबकी बार किसान महापंचायत का मंच संयुक्त किसान मोर्चा की 40 जत्थेबंदियों और खाप चौधरियों के हाथ में होगा।
2014 में जब लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा तो भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी थे। मोदी ने विजय शंखनाद रैली की शुरूआत वेस्ट यूपी के मेरठ से की। 2 फरवरी 2014 को नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस धरती को मैं नमन करता हूं, यह चौधरी चरण सिंह की धरती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषण में बहन बेटियों की सुरक्षा, गोकशी के मुददे और किसानों को लेकर लगातार बोलते रहे हैं। खास यह है कि योगी सरकार ने भाजपा नेताओं मंत्री और विधायकों से 2013 दंगों के केस वापस ले लिए हैं। हालांकि अभी हाईकोर्ट की अनुमति का पेंच फंसा है। जबकि दूसरी ओर, 2013 के दंगों के दौरान भड़काऊ भाषण देने के मामले में यहां की एक विशेष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री सईदुज्जमा व 9 अन्य नेताओं के खिलाफ आरोप तय करने पर दलीलों की सुनवाई को 9 सितंबर की तारीख तय की है। इस मामले में सईदुज्जमा के बेटे सलमान सईद, बसपा के पूर्व सांसद कादिर राणा, पूर्व विधायक नूर सलीम राणा और मौलाना जमील, व्यापारियों अहसन कुरैशी, सुल्तान मुशीर और नौशाद आदि के खिलाफ भी आरोप तय किए जाने हैं। इन सभी पर कथित तौर पर निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने और भड़काऊ भाषण देकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का मामला दर्ज किया गया था। खास है कि सितंबर 2013 में मुजफ्फरनगर एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में सांप्रदायिक दंगों में 40 लोगों की जान चली गयी थी और 50,000 से अधिक लोग बेघर हो गए थे।
खैर सवाल यह है कि ऐसे वक्त में जब भाजपा विधायक किसानों की नाराजगी झेल रहे है। तब 5 सितंबर की महापंचायत के बाद भी भाजपा अपने चुनाव अभियान का आगाज वेस्ट यूपी से करने की स्थिति में होगी या फिर रणनीति बदली जाएगी और चुनाव अभियान का आगाज अयोध्या या काशी से होगा। 2022 में वेस्ट यूपी में पहले चरण में चुनाव होगा या फिर अंतिम चरण में, यह संकेत भी 5 सितंबर की महापंचायत में जुटी भीड़ से ही मिल जाएगा। कुल मिलाकर संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर मुजफ्फरनगर की धरती पर 5 को किसान इतिहास रचने की तैयारी में हैं। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अलावा कर्नाटक, तमिलनाडू और केरल आदि सभी राज्यों से भी जत्थे आ रहे हैं। उम्मीद जाहिर की जा रही है कि इस पंचायत में लाखों किसान जुटेंगे और इससे भी बड़ी बात यह होगी कि इस महापंचायत में देश के हर राज्य का प्रतिनिधित्व होगा। यूपी, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अलावा कर्नाटक और सुदूर दक्षिण से तमिलनाडू और केरल जैसे राज्यों से भी किसानों की जत्थे आने शुरू हो गए हैं। राकेश टिकैत ने कहा कि पांच सितंबर की पंचायत को किसान और मजदूर अपनी अस्मिता से जोड़कर देख रहे हैं। महापंचायत में कितने लोग पहुंचेंगे, के सवाल पर उन्होंने कहा कि संख्या की बात छोड़ो, मुजफ्फरनगर की पंचायत ऐतिहासिक होगी।
5 सितंबर की किसान महापंचायत मुजफ्फरनगर के सबसे बड़े जीआईसी मैदान में होगी। आसपास के 4 मैदानों में भी किसानों के लिए व्यवस्था की गई है। इन सभी मैदानों में मंच का सीधा प्रसारण करने के लिए बड़े-बड़े स्क्रीन लगाए जा रहे हैं। पूरे शहर में करीब 500 लंगर महापंचायत में पहुंचने वाले किसानों के लिए लगाए जाने की बात कही जा रही है। इनमें से ट्रैक्टर-ट्रालियों में लगने वाले कुछ लंगर मोबाइल होंगे। महापंचायत के लिए बनाए गए पार्किंग स्थलों में लंगर सेवा रहेगी। राकेश टिकैत ने बताया बाहर से काफी संख्या में किसान मजदूर इस पंचायत में पहुंचेंगे। इतनी भीड़ के बीच व्यवस्था बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को देखते हुए पांच हजार वालंटियर तैयार किए गए हैं। इन्हें बाकायदा पूरी पड़ताल के बाद आईकार्ड जारी किए जा रहे हैं। पुलिस के साथ मिलकर वालंटियर व्यवस्था को संभालने में मदद करेंगे।
किसान महापंचायत की व्यवस्था में लगे भाकियू मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि रविवार को शहरवासियों से सहयोग की अपील की गई है। जरूरी काम एक दिन पहले ही निपटा लें और आगे बढ़कर किसानों का स्वागत करें। धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि दूसरे प्रदेशों से किसानों का मुजफ्फरनगर पहुंचना शुरू हो गया है। लंगर सेवा शुरू कर दी गई है। किसान परिवारों से और किसानी के प्रति लगाव रखने वाले चिकित्सकों और चिकित्सालयों की मदद से करीब सौ मेडिकल कैंप लगाए जाएंगे। एंबुलेंस की व्यवस्था रहेगी। शहर को जाम से बचाने के लिए पार्किंग बनाई गई हैं। किसान पंचायत में आने वाले किसानों से अपने वाहन पार्किंग में लगाकर आयोजन स्थल पर पैदल ही जाने की अपील की गई है। रविवार को शहर में वाहन का इस्तेमाल कम करने की अपील की गई है ताकि व्यवस्था बनाने में सहुलियत हो और जाम की समस्या से बचा जा सके।
भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान महापंचायत से सरकार डरी हुई है और इसे डिस्टर्ब करने का प्रयास कर रही है। टिकैत ने मुजफ्फरनगरवासियों से अपील की है कि बाहर से आने वाले लोग हमारे मेहमान हैं, उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो, इसके लिए सभी सहयोग करें और पूरे देश के सामने मिशाल पेश करें। उन्होंने ज़िलेवासियों से कहा है कि रिश्तेदार और जानने वाले आपके घर भी पहुंचेंगे, परंपरा के मुताबिक हमें मेहमाननवाजी के लिए तैयार रहना है। शहर के दुकानदार भाई भी पंचायत में आने वाले लोगों का ख्याल रखें, ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो।
महापंचायत को लेकर पुलिस प्रशासन भी एक्टिव मोड में है। अधिकारी, भाकियू पदाधिकारियों के साथ लगातार सुरक्षा व्यवस्था की मानिटरिंग कर रहे हैं। आसपास के जिलों में भी सुरक्षा व्यवस्था कसी गई है। शासन ने मुजफ्फरनगर और उसके आसपास के जिलों में कई आईपीएस भेजे हैं। एडीजी राजीव सभरवाल, आईजी प्रवीण कुमार खुद पूरी व्यवस्था की निगरानी कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, मुजफ्फरनगर में रह चुके अफसरों को भी बुलाया गया है। सहारनपुर, शामली और बागपत में विशेष आईपीएस तैनात किए गए हैं। आकाश कुल्हरी, अनुराग वत्स, कुंवर अनुपम, नरेन्द्र कुमार सिंह, सिद्धार्थ शंकर मीणा जैसे अफसरों की तैनाती की गई है।
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि महापंचायत में शामिल होने वाले किसानों की संख्या बता पाना मुश्किल है लेकिन ये संख्या बहुत बड़ी होगी। उन्होंने कहा, किसानों को महापंचायत जाने से कोई नहीं रोक सकता। यह सरकारी कार्यक्रम नहीं है, कहा अगर वे रोकेंगे तो हम तोड़कर जाएंगे। टिकैत ने बताया कि वालंटियर्स को जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने बताया कि इमरजेंसी नंबर शेयर किया गया है। इसके अलावा किसान कल से ही वहां पहुंचना शुरू हो गए हैं, ऐसे में उनके लिए सभी व्यवस्थाएं की गई हैं। टिकैत ने कहा, महापंचायत का चुनाव से कोई लेना देना नहीं है। चुनाव तो 6 माह बाद हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में किसानों को भारी परेशानी हो रही है। पिछले 5 साल से राज्य में गन्ने के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन तेल व बिजली के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार गन्ने के दाम में 5 पैसे प्रति किलो की बढ़ोतरी कर, महंगाई में किसानों का अपमान करने का काम कर रही हैं। कहा महापंचायत किसान आंदोलन का भविष्य तय करने वाली है।
सौजन्य :सबरंग
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