‘लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध जताने का अधिकार मौलिक’, HC ने दिल्ली दंगे में हेड कांस्टेबल की हत्या के केस में 5 आरोपियों को दी जमानत
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, यह गंभीर है और हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों के खिलाफ है कि एक आरोपी को मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सलाखों के पीछे रहने दिया जाए, जमानत नियम है और जेल अपवाद है|
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में पांच लोगों को जमानत देते हुए कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध और असहमति जताने का अधिकार मौलक है। कोर्ट ने कहा कि इस विरोध के अधिकार का इस्तेमाल करने वालों को कैद करने के लिए इस कृत्य का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अदालत का संवैधानिक कर्तव्य है कि राज्य की अतिरिक्त शक्ति की स्थिति में लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने पांच अलग-अलग फैसलों में आरोपियों मोहम्मद आरिफ, शादाब अहमद, फुरकान, सुवलीन और तबस्सुम को जमानत दी है। ये सभी आरोपी 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के केस का सामना कर रहे हैं। तबस्सुम दो नाबालिग बच्चों की मां हैं। दिल्ली पुलिस ने फुरकान, आरिफ, शादाब, सुवलीन और तबस्सुम को पिछले साल क्रमश: 1 अप्रैल, 6 अप्रैल, 17 मई और 3 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तर किया था।
जज ने कहा, “अदालत द्वारा प्रत्येक आरोपी के अपराध की एकछत्र धारणा नहीं हो सकती है, और मामले में हर निर्णय तथ्यों और परिस्थितियों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के आधार पर लिया जाना चाहिए।” जमानत याचिका का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. राजू ने बताया कि 24 फरवरी 2020 की सुबह मुख्य वजीराबाद रोड पर डंडा, लाठी, बेसबॉल बैट, लोहे की छड़ और पत्थर जैसे विभिन्न हथियारों को लेकर एक भीड़ ने वरिष्ठ अधिकारियों और अधिकारियों और पुलिस बल के आदेशों पर ध्यान देने से इनकार कर दिया। सॉलिसीटर जनरल एस. राजू ने कहा कि भीड़ जल्द ही नियंत्रण से बाहर हो गई और पुलिस अधिकारियों पर पथराव शुरू कर दिया, और परिणामस्वरूप, 50 से अधिक पुलिस कर्मियों को चोटें आईं और हेड कांस्टेबल रतन लाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। राजू ने कहा कि प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए, निजी और सार्वजनिक वाहनों के साथ-साथ आसपास की अन्य संपत्तियों को जला दिया, जिसमें एक पेट्रोल पंप और एक कार शोरूम भी शामिल है।
अदालत ने कहा कि सार्वजनिक गवाहों और पुलिस अधिकारियों के बयानों की निश्चितता और सत्यता को इस चरण में नहीं देखा जाना चाहिए और यह सुनवाई का मामला है, लेकिन इस अदालत की राय है कि यह याचिकाकर्ताओं के लगातार कारावास को सही ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने कहा कि विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या जब किसी गैरकानूनी भीड़ द्वारा हत्या का अपराध किया गया तो इस भीड़ में शामिल प्रत्येक व्यक्ति को जमानत से वंचित किया जाना चाहिए। दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के उल्लेख करते हुए कहा कि अदालतों को स्पेक्ट्रम के दोनों छोरों तर जागरूक रहने की जरूरत है। यानि यह सुनिश्चित करना अदालतों का कर्तव्य है कि आपराधिक कानून को उचित तरीके से लागू किया जाए तथा कानून लक्षित उत्पीड़न का कोई औजार न बने। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, यह गंभीर है और हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों के खिलाफ है कि एक आरोपी को मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सलाखों के पीछे रहने दिया जाए, जमानत नियम है और जेल अपवाद है।
सौजन्य :जनज्वार
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